नरेंद्र मोदी सरकार 1 फ़रवरी को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले का आख़िरी पूर्ण बजट पेश कर रही है. 2023 में नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर 2024 में केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी सत्ता में बने रहने की लड़ाई लड़ेगी. लिहाज़ा इस बजट से लोगों की उम्मीदें काफ़ी बढ़ी हुई हैं. वोटरों को लग रहा है कि सरकार चुनाव से पहले पेश किए जाने वाले इस बजट में उनके लिए सौगातों का पिटारा ज़रूर खोलेगी.
ख़ास कर मिडिल क्लास के उन वेतनशुदा लोगों की उम्मीदें काफ़ी बढ़ी हुई हैं जो इनकम टैक्स देनदारी के दायरे में आते हैं. हालांकि सिर्फ़ मिडिल क्लास टैक्सपेयर्स ही छूट और राहत की उम्मीद लगाए नहीं बैठे हैं.
उच्च आय वर्ग में आने वाले टैक्सपेयर्स भी टैक्स स्लैब में बदलाव की उम्मीद लिए बैठे हैं ताकि उनकी भी जेब ज़्यादा हल्की न हो. वो ख़र्च और निवेश में इज़ाफ़ा कर सकें और अर्थव्यवस्था में डिमांड बनी रहे. भारत निम्न मध्य आय वर्ग वाले देशों की कैटेगरी में शामिल है, जहां लगभग 136 करोड़ लोगों की आबादी में सिर्फ़ आठ करोड़ लोग आयकर फ़ाइल करते हैं. सरकार के राजस्व का बड़ा स्रोत अप्रत्यक्ष कर है. सरकार जीएसटी और कुछ सरचार्ज के ज़रिये हर उपभोक्ता से अप्रत्यक्ष कर वसूलती है.
इसलिए इनकम टैक्स देने वालों का मानना है कि उन पर टैक्स का दोगुना बोझ है. एक तो वे अप्रत्यक्ष कर के रूप में वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करने के एवज में टैक्स देते हैं, दूसरा उनकी आय पर इनकम टैक्स लगाया जाता है.
हर बजट में टैक्सपेयर्स ख़ास कर मिडिल क्लास टैक्सपेयर्स टैक्स छूट में कुछ बढ़ोतरी की उम्मीद लगाए रखते हैं. इस बार भी ये उम्मीद बनी हुई है. लेकिन सवाल ये है क्या मोदी सरकार इसे पूरा करेगी? क्या ये सरकार करदाताओं को राहत देने की हालत में हैं. क्या इकोनॉमी के हालात इसकी इजाज़त दे रहे हैं?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पिटारे से टैक्स छूट या राहत की सौगात निकलेगी या नहीं, इससे पहले ये देखना होगा अर्थव्यवस्था की हालत कैसी है?पिछले दो-तीन साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद मुश्किल भरे रहे हैं. कोविड की वजह से आर्थिक गतिविधियों को लगे झटकों ने बड़ी तादाद में लोगों को बेरोज़गार किया है. नौकरीपेशा लोगों की आय घटी है. महंगाई ने लोगों की डिस्पोज़ेबल (ख़र्च की जाने वाली रक़म) इनकम कम कर दी है.
रिज़र्व बैंक महंगाई को काबू करने के लिए लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है. इससे क़र्ज़ लेने वाले लोगों की ईएमआई भी बढ़ गई है. लेकिन नौकरी करने वालों के वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई है.
अर्थव्यवस्था की चुनौतियां
जाने-माने आर्थिक विश्लेषक और स्तंभकार स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर भारतीय अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात पर कहते हैं ,”इस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने से बड़ा सवाल इसे ग्लोबल मंदी से बचाने का है. इस साल दुनिया एक बड़ी मंदी का सामना कर रही है. वर्ल्ड इकोनॉमी में इस वक़्त सब कुछ अनिश्चित है.”
वो कहते हैं ”हमें ये पता नहीं कि ब्याज दरें कितनी ऊपर जाएंगी. हमें ये भी पता नहीं कि मंदी अभी और कितनी गहराएगी और हम ये भी नहीं जानते कि रूस-यूक्रेन युद्ध का क्या होने जा रहा है? ” अंकलेसरिया अय्यर कहते हैं, ”भारतीय अर्थव्यवस्था में रफ़्तार कोई आंतरिक मामला नहीं हैं. यह ग्लोबल अर्थव्यवस्था पर निर्भर है. मौजूदा वित्त वर्ष (2022-23) की 6.8 फ़ीसदी की तुलना में 2023-24 की विकास दर घट कर 5.5 फ़ीसदी रहने की आशंका है.”
”हालात ऐसे हैं कि घरेलू अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने की कोशिश करने की बजाय ग्लोबल अर्थव्यवस्था में गिरावट से लगने वाले झटकों से बचने की तैयारी ज़्यादा बड़ी चुनौती बन गई है. ”
अंकलेसरिया अय्यर का तर्क वाजिब लगता है क्योंकि भारत का आयात और निर्यात दोनों घटा है. लेकिन निर्यात में ज़्यादा गिरावट है. साफ़ है कि ग्लोबल अर्थव्यवस्था में मांग में कमी आ रही है और यह मंदी की ओर बढ़ती जा रही है.
महंगाई का दबाव और बेक़ाबू राजकोषीय घाटा
भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की बाकी अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले ‘ब्राइट स्पॉट’ भले बताया जा रहा हो, लेकिन मैक्रोइकोनॉमिक मोर्चे पर हालात बहुत अच्छे नहीं हैं. अर्थव्यवस्था महंगाई के दबाव में है. कोविड के असर को कम करने करने के लिए किए गए उपायों और ग़रीबों को राहत देने के लिए सरकार ने जो क़र्ज़ लिया है वो पिछले चार साल में दोगुने से भी ज़्यादा बढ़ गया है और रोज़गार पैदा करने की रफ़्तार बेहद धीमी रही है.
ये ठीक है कि सरकार का टैक्स कलेक्शन बढ़ा है, लेकिन अगले वित्त वर्ष के दौरान वह 16 ट्रिलियन रुपये का क़र्ज़ भी उठाने जा रही है. मोदी सरकार इस पैसे का इस्तेमाल इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर ख़र्च करने जा रही है. साथ ही वो राजकोषीय घाटे को भी नियंत्रण में रखना चाहती है.
ऐसे में वह टैक्स छूट देकर अपनी कमाई घटाने का जोख़िम नहीं ले सकती. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को देखना है कि इस हालात में इनकम टैक्सपेयर्स ख़ास कर मिडिल क्लास को राहत देने की गुंजाइश बनती भी है या नहीं.
कितनी पूरी होगी टैक्स छूट की उम्मीद?
आम धारणा ये है कि 2024 के लोकसभा चुनाव और महंगाई से जूझते मध्य वर्ग के लोगों की परेशानियों को देखते हुए मोदी सरकार का 2023 का बजट छूट और राहत वाला बजट होगा. लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि पब्लिक मेमोरी छोटी होती है. चूंकि लोकसभा चुनाव में अभी 15 महीने बचे हैं. इसलिए इस बजट में दी गई छूट को लोग चुनाव आने तक भूल जाएंगे.
जाने-माने टैक्स विशेषज्ञ सत्येंद्र जैन ने बीबीसी से कहा, ”अब तक इस सरकार ने कोई टैक्स राहत नहीं दी है. अगर ये सरकार इनकम टैक्स में कोई छूट या राहत देना भी चाहेगी तो इस वक्त नहीं देगी. सरकार कुछ राहत देगी भी तो सितंबर-अक्टूबर के आख़िर में दे सकती है.”
”सरकार नोटिफ़िकेशन जारी कर इसका एलान कर सकती है. इस समय सरकार टैक्स राहत देने के बजाय वेलफ़ेयर स्कीमों में ख़र्चा बढ़ाने का विकल्प चुनेगी.”
जैन कहते हैं, ”महंगाई से राहत देने के लिए इनकम टैक्स में छूट सही क़दम नहीं होगा क्योंकि इससे लोगों के पास बचा पैसा बाज़ार में आएगा और महंगाई बढ़ेगी. और इस समय महंगाई को काबू करना आरबीआई की सबसे बड़ी प्राथमिकता है. टैक्स कटौती से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला. इसके बजाय सरकार को वेलफ़ेयर स्कीम में ख़र्च बढ़ाना चाहिए ”
टैक्सपेयर्स सरकार से टैक्स में बेसिक छूट ( Basic Exemption), स्टैंडर्ड डिडक्शन, 80सी के तहत मिलने वाली छूट, हेल्थ ख़र्च डिडक्शन और हाउसिंग लोन इंटरेस्ट डिडक्शन लिमिट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.
इसके साथ ही आयकर की धारा 80TTA और 80TT के तहत डिडक्शन और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स की छूट बढ़ाने की मांग भी की जा रही है.
किन-किन मदों में टैक्स राहत की मांग की जा रही है-
- बेसिक छूट 2.5 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपये की जाए
- स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा 50 हजार रुपये से अधिक हो
- 80 सी की सीमा डेढ़ लाख से बढ़ा कर दो लाख रुपये हो
- हेल्थकेयर ख़र्च पर 50 हज़ार का डिडक्शन और बढ़े
- होम लोन अदायगी पर जो टैक्स छूट मिलती है उसकी सीमा और बढ़ाई जाए
- सेविंग अकाउंट और एफ़डी पर ब्याज पर डिडक्शन की लिमिट और बढ़े
- लॉन्ग टर्म कैपिटल टैक्स गेन पर छूट की सीमा को और बढ़ाया जाए
किन मदों में मिले छूट?
टैक्स एक्सपर्ट और अपना पैसा डॉट कॉम के सीएफ़ओ बलवंत जैन कहते हैं,” देखिये सरकार ने बेसिक छूट का दायरा तय किया है, वो डेटा इकट्ठा करने के लिए किया है. सरकार को इससे पॉलिसी बनाने में मदद मिलती है. अगर सरकार बेसिक छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ा कर पांच लाख रुपये कर देती है तो बहुत सारे लोग टैक्स के दायरे से बाहर हो जाएंगे और सरकार के पास उनका डेटा नहीं रहेगा.
”मेरे ख़्याल से सरकार बहुत ज़्यादा करेगी तो बेसिक छूट की सीमा ढाई लाख रुपये से बढ़ा कर तीन लाख कर सकती है.”
जैन 80 सी के तहत दी जाने वाली छूट में बदलाव के हिमायती हैं.
वो कहते हैं, ”2014 में 80 सी में डिडक्शन की सीमा एक लाख रुपये से बढ़ा कर डेढ़ लाख रुपये की गई थी. लेकिन इतने सालों में कई चीज़ें इसमें शामिल हो गई हैं- मसलन एनपीएस में निवेश की राशि, स्मॉल सेविंग स्कीम में निवेश की राशि, बच्चों के लिए दी जाने वाली ट्यूशन फ़ीस वगैरह.
वो कहते हैं” इतने सालों में इतने सारे मदों की एंट्री के बाद भी इसकी सीमा डेढ़ लाख रुपये रखी गई है. इसे बढ़ा कर तीन लाख रुपये किया जाना चाहिए.”
‘होम लोन रीपेमेंट के लिए अलग डिडक्शन की ज़रूरत’
जैन कहते हैं कि ‘सरकार को होम लोन रीपेमेंट के लिए अलग से डिडक्शन शुरू करना चाहिए क्योंकि पिछले कुछ साल में मकान काफ़ी महंगे हुए हैं, लेकिन सेक्शन 80C के तहत मूलधन चुकाने पर 1.5 लाख रुपये का ही इनकम टैक्स डिडक्शन मिलता है. उसमें पहले ही कई चीज़ें घुसी हैं जैसे बच्चों की फ़ीस, इंश्योरेंस के प्रीमियम में मिलने वाली छूट, बच्चों की ट्यूशन फ़ीस वगैरह. इसलिए इसके लिए अलग से डिडक्शन लाने की ज़रूरत है ताकि होम लोन चुकाने वालों को राहत मिल सके.’
जैन कहते हैं कि इनकम टैक्स में छूट की उम्मीद हर साल बंधती है, लेकिन ये बताना मुश्किल है कि वित्त मंत्री बजट में क्या करेंगी. मीडिया में तमाम उम्मीदें जताई जाती हैं, लेकिन संसद में वित्त मंत्री के बजट भाषण से ही पता चलता है कि क्या मिला और क्या रह गया.