आज के भारत की बड़ी मुश्किल यही है कि यहां मिथक और आस्थाओं को वास्तविक इतिहास के रूप में ढूंढने की कोशिश हो रही है। इनके वस्तुगत प्रमाण ढूंढने की कोशिशें पर अब कोई प्रश्न भी नहीं पूछता।
भारत सरकार ने संसद में स्वीकार किया है कि सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों से भी राम सेतु के होने के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं। वर्षों से राम सेतु के अस्तित्व पर चल रहे विवाद के बीच सरकार का यह बयान को बेहद महत्वपूर्ण है। आज के भारत की बड़ी मुश्किल यही है कि यहां मिथक और आस्थाओं को वास्तविक इतिहास के रूप में ढूंढने की कोशिश हो रही है। मनोगत बातों के लिए वस्तुगत प्रमाण ढूंढने और उसके आधार पर राजनीति की गोटियां खेलने की कोशिशें अब इतनी ठोस रूप ले चुकी हैं कि इन पर कोई प्रश्न भी नहीं पूछता। अगर पूछे भी तो बात कहीं आगे नहीं बढ़ती, क्योंकि उस पर विमर्श होने के बजाय प्रश्न पूछने वाले के इरादे और निष्ठाओं को संदिग्ध बनाने की कोशिश की जाती है। बहरहाल, बीते हफ्ते समाप्त हुए सत्र में एक सवाल पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्य सभा में कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच जहां राम सेतु के होने की बात की जाती है, वहां के सैटेलाइट चित्रों के आधार पर सटीक रूप से यह कह पाना मुश्किल है कि वहां किस तरह का ढांचा था। सिंह ने बताया कि इन चित्रों में उस इलाके में कुछ द्वीप और चूने के पत्थर के ढेर तो नजर आते हैं, लेकिन इन्हें सटीक रूप से किसी पुल के अवशेष नहीं कहा जा सकता।
सवाल यह पूछा गया था कि क्या सरकार भारत के प्राचीन इतिहास के वैज्ञानिक आकलन की कोई कोशिश कर रही है या नहीं। जवाब में सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार का अंतरिक्ष विभाग इन कोशिशों में लगा हुआ है। लेकिन राम सेतु के बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है। जबकि बिना प्रमाण मिले सालों तक सेतुसमुद्रम परियोजना पर काम आगे बढ़ाया गया। करोड़ों रुपयों के खर्च होने के बाद भारत सरकार ने अब इस परियोजना को बंद करने का फैसला किया है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार इस परियोजना पर अभी तक कम से कम 800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इस धन का हिसाब-किताब कौन देगा? वैसे सवाल चूंकि आस्था का है, इसलिए ऐसे प्रश्न पूछना भी आज जोखिम भरा हो सकता है।