मुकेश मंगल
लाख जतन के बाद भी यातायात की दशा सुधर नहीं रही। आमजन तो फंसते ही हैं अब अफसर भी उलझने लगे हैं। जिनके कंधों पर सुधार की जिम्मेदारी है वे स्वयं रास्ता बदल रहे हैं। यह किस्सा अफसरों की आपसी बैठक में सामने आया। बातों ही बातों में पता चला कि ऐसा एक दिन नहीं रोजाना हो रहा है। जाम से बचने के लिए अफसरों ने गलियों को चुन लिया है। सबसे बुरे हालात एबी रोड के हैं और अफसरों को इसी रोड से गुजरना होता है। डीसीपी ट्रैफिक प्लान लेकर पहुंचे तो सीनियर ने कहा पहले इसको सुधार दो। रोजाना आठ सिग्नल पार करने पड़ते हैं। एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मैं एक बार में सिग्नल पार कर पाया। एयरपोर्ट जाने के लिए तो मुझे गलियों से जाना होता है। अफसर ने ऐसी-एसी गलियां बताई कि डीसीपी भी हैरान रह गए। आखिर में कहा कि कभी-कभी मैं भी फंस जाता हूं।
साहब की विदाई पार्टी का पैसा जीम गए साहब
पूर्वी क्षेत्र में पदस्थ एक अफसर मातहतों को खटक रहे हैं। छोटे-छोटे मसलों पर खिंचाई करने वाले साहब इस बार हेराफेरी को लेकर निशाने पर हैं। थाना प्रभारी से लेकर थाने का स्टाफ उनकी चर्चा कर रहा है। मसला बड़े साहब की विदाई पार्टी से जुड़ा हुआ है। पार्टी के लिए भव्य आयोजन रखा गया था। तय हुआ था कि पार्टी एबी रोड के होटल में रखी जाएगी। ऐनवक्त पर स्थान बदलना पड़ा और क्षेत्र के थाना प्रभारी को व्यवस्था की जिम्मेदारी दी गई। दो-तीन थाना प्रभारियों से भी कहा कि आयोजन में थोड़ा-थोड़ा सहयोग करें। बताते हैं साहब ने उन थाना प्रभारियों से मिले सहयोग में ही गड़बड़ कर दी। यह बात उस वक्त सामने आई जब होटल संचालक ने तकादा करना शुरू किया। जैसे-तैसे हिसाब तो कर दिया लेकिन टीआइ ने दूसरी पार्टी से हाथ खींच लिए।
आयुक्त की रिपोर्ट से घबराहट में उपायुक्त
पुलिस आयुक्त मकरंद देऊस्कर ने धीरे-धीरे नकेल कसनी शुरू कर दी है। कम समय में आयुक्त जान गए कि कौन कितने पानी में है। उनकी सख्ती से उपायुक्त ज्यादा घबराहट में है। वे निचले स्तर पर होने वाली गड़बड़ी के लिए उपायुक्त से सवाल-जवाब करने में देरी नहीं करते। पुलिस हलकों में चर्चा है कि पिछले दिनों हुए तबादलों की वजह भी आयुक्त का फीडबैक ही है। सबसे पहले उन्होंने अपराध शाखा के उपायुक्त निमिष अग्रवाल को रोका। कद्दावर मंत्री के निशाने पर आए उपायुक्त को पीटीसी भेज दिया था। ईमानदार छवि होने के कारण आयुक्त उनका तबादला निरस्त करवा कर माने। एक अन्य उपायुक्त का तबादला हुआ तो चर्चा हुई कि आयुक्त कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं थे। पूर्वी क्षेत्र में पदस्थ प्रमोटी आइपीएस को लेकर भी उन्होंने कुछ ऐसा ही फीडबैक भेजा है। सीएम के पसंदीदा होने से उनकी बात को महत्व मिलता है।
एसपी की खाली पड़ी कुर्सी का सच
एएसपी मनीष खत्री के तबादले के बाद एसटीएफ में किसी की पोस्टिंग नहीं हुई। कंफर्ट जोन में जाने के लिए लालायित कई अफसरों ने जाने का मन बनाया लेकिन एडीजी विपिन माहेश्वरी के कारण किसी की हिम्मत नहीं हुई। स्पेशल टास्क फोर्स के मुखिया माहेश्वरी कागज के मामले में बारीक हैं। खरगोन जाने के पहले खत्री एसपी के रूप में काम कर रहे थे। इसके बाद डीएसपी सोनू कुर्मी ने प्रभार संभाला लेकिन वो भी चले गए। उनके स्थान पर डीएसपी राजेश चौहान आ गए लेकिन एसपी की कुर्सी खाली पड़ी है। इंदौर में लंबा वक्त गुजार चुके एएसपी ने इंदौर जाने की मंशा जताई लेकिन एडीजी के पीछे हट गए। उप पुलिस अधीक्षक से अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बनने वाले अधिकारी भी एडीजी के कारण लूप लाइन में जाने का मन बना रहे हैं। पहला अवसर है जब किसी वरिष्ठ अफसर की सख्ती से छोटे अफसर पोस्टिंग से दूरी बनाने लगे हैं।