कौशल किशोर
नई दिल्ली। आज इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की प्रतिबद्धता औषधि और मेडिसिन के भ्रामक विज्ञापनो पर रोक लगाने की है। ऐसा दावा अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और हिमा कोहली जैसे न्यायमूर्तियों की टिप्पणियों में निहित है। आज बाबा रामदेव और आचार्य बाल कृष्ण को कठघरे में खड़ा देख कर महर्षि दयानंद और स्वामी श्रद्धानंद फिर से प्रकट होते प्रतीत होते। इस मामले की सुनवाई देख कर लगता है कि अठारहवीं लोक सभा के चुनाव का नतीजा घोषित होने से पहले इन दोनों महापुरुषों का अंत सभी लोग याद करके रहेंगे। धुव्रीकरण की राजनीति के लिए क्या कोई इससे घातक तीर छोड़ सकता है? सवाल का सटीक जवाब जून में मिलेगा। उससे पहले अटकलें लगाने का आह्वान जब उच्चतम न्यायालय ने कर दिया है तो इसका पालन करना किसी जिम्मेदारी से कम नहीं रही।
भ्रामक विज्ञापन से यदि देश को मुक्ति मिले तो निश्चय ही उल्लेखनीय उपलब्धि होगी। स्वनियमन के इस दौर में सेंसर बोर्ड जैसे पीठ की वकालत सुप्रीम कोर्ट करती प्रतीत होती है। एड्स ठीक करने का दावा करने वाले और गुप्त रोगों का शर्तिया ईलाज करने वाले के इस्तिहार देखने को भी नहीं मिलेंगे। चुटकी बजाते ही सिर दर्द और दूसरी तकलीफ दूर करने वाली गोलियों का क्या होगा? सोडा का नाम लेकर शराब बेचने वाले व इलायची के नाम पर पान मसाले और तंबाकू बेचने तो तबाह हो जायेंगे का। विज्ञापन के इस व्यापार को नियंत्रित करने से अखबार छापने वालों की मुश्किल बढ़ेगी। टी.वी., रेडियो और नई मीडिया के साथ ही कलाकार, चित्रकार और पत्रकार के काम धंधे पर भी खूब असर पड़ेगा। गांधीजी का नैतिक आधार ऊंचा रहा होगा तभी प्रचार के बिना अखबार चला सके थे। आज उनके जैसा दूसरा उदाहरण खोज पाना मुमकिन नहीं है। इन सब के बावजूद यह पाबंदी स्वागत योग्य मानता हूं।
जस्टिस ललित और जस्टिस बोबडे ही नहीं बल्कि जस्टिस गोगोई भी इससे आहत हुए होंगे। बखिया उधेड़ देने और चीर के रख देने जैसी बात कह कर जस्टिस अमानुल्लाह वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को प्रसन्न कर सकते हैं। पटना हाई कोर्ट से पिछले साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे अमानुल्लाह को आज नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए देश के कई पूर्व सी.जे.आई. और सहयोगी न्यायमूर्ति सुझाव दे रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में किसी के नाम का जिक्र किए बिना कोर्ट की शाख पर बट्टा लगाने का प्रतिकार दर्ज किया गया है। 1992 के कृष्णा स्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 1995 में सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम जस्टिस ए.एम. भट्टाचार्जी मामले का अवलोकन करने का सुझाव दिया। सुप्रीम कोर्ट की गरिमा व नैतिकता का ख्याल कैसे रखा जाय, यही इनका उद्देश्य है। साथ ही सवाल खड़ा होता है कि इसमें न्यायालय की अवमानना कौन और क्यों कर रहा है? अधिवक्ता कुमार ओंकारेश्वर इसे बार की अवमानना कह कर आपत्ति दर्ज करते हैं।
न्यायालय की अवमानना के इस मुकदमे में रामदेव और बाल कृष्ण न्याय की पीठ के सामने नतमस्तक खड़े हैं। बिना किसी शर्त के क्षमा याचना भी कर रहे हैं। सहसा यकीन ही नहीं होता है कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक में हरिद्वार स्थित न्यायालय के परिसर में एक वकील का सिर लकड़ी की पादुका से फोड़ने वाले और रामलीला मैदान से किसी स्त्री का वस्त्र धारण कर निकल लेने वाले धैर्य धारण कर बैठे। वाल्मीकि रामायण के ऋषि विश्वामित्र की याद दिलाते हैं, जो शांत चित्त होकर अपने पतन की दास्तान श्रवण करते हैं। यह राम का देश है। राम राज में न्याय सर्वोपरि होता, फैसले नहीं।
न्याय के सर्वोच्च पीठ पर बैठे न्यायमूर्ति भगवाधारी संत के साथ दुर्जनों के लिए प्रयुक्त भाषा बोल कर अपनी ही पहचान जाहिर करते हैं। बिना दोष सिद्ध हुए ही सजा देने की धमकी देते हैं। औषधालय बंद करने की धौंस दिखाते हुए ट्रॉयल कोर्ट के कार्य क्षेत्र का अधिग्रहण करते हैं। अपरोक्ष रूप से एलोपैथिक दवा की आलोचना पर रोक लगाते हुए इनके साइड इफेक्ट्स पर जारी बहस खत्म करने का अच्छा प्रयास करते भी हैं। यहां 2003 से ही नैनीताल हाई कोर्ट में सच्चिदानंद के विरूद्ध लंबित अवमानना का मुकदमा उल्लेखनीय है। जस्टिस इरशाद हुसैन की न्यायिक बुद्धि काषाय वस्त्रधारी साधु को देखते ही विलुप्त हो गई। ऐसी दशा में वैमनस्य और नफरत की ज्वाला में धधकते व्यक्ति से न्याय की आशा मुमकिन नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट धुव्रीकरण की राजनीति में शामिल होकर अपनी ही प्रतिष्ठा भी गंवाने का का काम करेगी।
हिन्दू मुस्लिम की इस राजनीति पर आगे बढ़ने से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी तीन बातें ध्यान में रखना चाहिए। हमास और इजरायल के बीच गाजा पट्टी कब्जाने के लिए संघर्ष जारी है। इसका ईरान, सऊदी अरब और कतर ही नहीं बल्कि अमेरिका, यूरोप, रूस, चीन और भारत पर भी प्रभाव है। दूसरी बात, हाल ही में कतर स्थित कारागृह में बन्द भारतीय नौ सैनिकों की वापसी सुनिश्चित हुई है। तीसरी बात, मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व वाली सऊदी अरब के करीब पांच लाख हिंदुओं के हित में मंदिर का उद्घाटन और ईद के अवसर पर सहिष्णुता और सहअस्तित्व मंत्री शेख नाह्यान बिन मुबारक अल नाह्यान और अन्य मंत्रियों की उपस्थिति। सऊदी अरब ने कट्टर इस्लाम का लबादा पीछे छोड़ दिया है। आम भारतीय मुस्लिम भी इसे समझने लगे हैं। सिर तन से जुदा करने वाली शक्ति का उदय नष्ट होने के लिए ही होता है। आज इसे समझने वाले भारत में कम नहीं रहे। घर वापसी का राग भी इसी का नतीजा है। पाकिस्तान के मुजाहिर की तरह यह ऐसी नई जाति गढ़ेगा, जिनकी हैसियत उनसे बेहतर होगी।
इस मुकदमे का तर्कसंगत समाधान तक पहुंच पाना आसान नहीं है। एलोपैथी को आगे बढ़ाने वाली आईएमएफ ने सुप्रीम कोर्ट पर ही आयुर्वेदिक औषधियों का विज्ञापन सेंसर की जिम्मेदारी सौंप दिया। मेडिसिन के साइड इफेक्ट्स को छिपा कर रोग छूमंतर करने के विज्ञापन और एड्स ठीक करने वाले पादरियों के पाखण्ड को दूर किए बिना क्या उन्हें ऐसा करने का नैतिक अधिकार है? आज शर्तिया ईलाज करने वाले हकीमों के दावों पर चुप्पी साधने वाले न्यायमूर्ति की नैतिकता पर भी सवाल खड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायमूर्तियों ने इस पर सवाल किया है। अपराधियों को कठघरे में खड़ा करने वाले सुप्रीम कोर्ट को ही कठघरे में खड़ा कर बैठे। यह ‘इमरजेंसी’ में मौलिक अधिकारों का हरण करने वाले फैसले की याद दिलाती है।
राजनीति में नैतिकता का पाठ पढ़ाने को आए नेताजी आज मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपक कर बेशर्मी की सारी हदें लांघ चुके हैं। निर्लज्जता के इस युग की सभ्यता की पहचान विज्ञापन खूब कराती है। पीठासीन महिला संन्यासी की खिंचाई में लगी रही। उन्हें यह भी दिखाई नहीं देता कि विज्ञापनों में आधुनिक महिला की छवि आदिम युग की तरह वस्त्रविहीन हो गई है। इस युग में अवमानना की बात करने वाले नैतिकता भूलने की राजनीति करते हैं। सुप्रीम कोर्ट पर कीचड़ उछालने के दोषी प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से इंकार कर दिया था। उनकी गलती पर सबक सिखाने के लिए महज एक रुपया का जुर्माना लगाया गया और इसे चुकाने के लिए 15 दिन की मोहलत देने वाले खुद ही कांप रहे थे।
भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगा कर ही यह मुकदमा युक्तिसंगत समाधान तक पहुंच सकता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह चुनाव के मौसम में धुव्रीकरण की राजनीति ही साबित होगी। इसका साईड इफेक्ट भी अनुमान से पड़े नहीं है। विज्ञापन को पूरी तरह बंद करने के बाद भी पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य योग फार्मेसी के उत्पादों की मांग बढ़ेगी। स्वदेशी बाजार से लेकर ईसाइयत और इस्लाम के पैरोकार मुल्कों तक इनकी खपत बढ़ने जा रही है।