नई दिल्ली। प्रेस की आजादी आज के समय में कितनी ज़रूरी है, उसे किन समस्याओं से दो चार होना पड़ रहा है और उसकी रक्षा के लिए पत्रकारों को क्या रास्ता अपनाना चाहिए, इन विषयों पर विचार करने के लिए इंडियन वुमेन प्रेस कार्प्स ने अंतरराष्ट्रीय प्रेस फ्रीडम डे की पूर्व संध्या पर एक महत्वपूर्ण परिसंवाद का आयोजन किया।
एक नयी मीडिया नीति बनाने की मांग करते हुए प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी ने कहा कि आज प्रेस की आजादी पर गंभीर खतरा है और इससे निपटने के लिए हमें एकजुट होना होगा और विरोध में आवाज उठानी होगी। मीडिया के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि मीडिया सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने पेश कर रहा है और सरकार की नीतियों की आलोचना करने पर पत्रकारों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक कानून जैसे काले कानूनों के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह मानवाधिकार उल्लंघन का मामला भी है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने प्रेस की आजादी को मानवाधिकार का मुद्दा बताया है।। उन्होंने कहा कि सरकारी प्रचार माध्यमों में विपक्ष की आवाज को पूरी तरह नज़र अंदाज़ किया जा रहा है। पर खेद है कि कोई भी राजनीतिक दल अपने मैनिफेस्टो में इस बात को नहीं उठा रहा। प्रधानमंत्री मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं और पत्रकारों को सरकारी महकमों और यहां तक कि संसद से भी दूर कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि प्रेस क्लब आफ इंडिया ने एक नई मीडिया नीति की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक कमेटी बनाई है जो देश की नई सरकार को अपनी सिफारिशें भेजेगी ।
फारेन कारेस्पोंडेंट क्लब आफ साउथ एशिया के अध्यक्ष एस वेंकट नारायण ने कहा कि आज हर देश के शासक मीडिया पर नियंत्रण करना चाहते हैं चाहे वह ट्रंप हो , पुतिन हो, शी हो या हमारा देश। उन्होंने कहा कि मीडिया किसी भी सामाजिक व्यवस्था का एक अनिवार्य अंग है और उसे अपना काम करने से रोकना ग़लत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि देश की नयी सरकार इस बारे में सही और संतुलित सोच अपनाएगी।
दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट की अध्यक्ष सुजाता मधोक ने कहा कि पत्रकारों को अपने काम से रोकने के लिए उनपर शारीरिक हमलों के साथ ही कानूनी जाल में फंसाने , इंटरनेट के जरिए ट्रोल करने, उन्हें बदनाम करने और महिला पत्रकारों के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां करने जैसे काम किए जा रहे हैं। साथ ही पत्रकारों की कार्यस्थल पर सुरक्षा के लिए बने कानूनों को भी लगभग खत्म कर दिया गया है। इनके खिलाफ आवाज उठाना हमारा कर्तव्य है।
डीजी पब के सह संस्थापक और महा सचिव अभिनंदन केसरी ने कहा कि पत्रकारों को इन खतरों से निपटने का रास्ता तलाशने के साथ साथ समाज और लोकतंत्र में मीडिया की वास्तविक भूमिका को समझने , अपनी विश्वसनीयता को कायम रखने और सही मंशा से अपना काम करने पर ध्यान देना चाहिए।
प्रेस एसोसिएशन के जयशंकर गुप्त ने कहा कि असलियत यह है कि हमने अपने इस कथित प्रेस फ्रीडम को अपने मालिकों और सरकार के पास गिरवी रख दिया है। उन्होंने कहा कि प्रेस की आजादी के मामले में भारत 180 देशों में 161वें स्थान पर आ गया है जबकि पिछले साल यह150वें स्थान पर था । उन्होंने कहा कि हमें इसकी रक्षा के लिए एकजुट होकर लड़ना होगा और इसकी कीमत चुकानी होगी।
सेंटर फार प्रोटेक्शन आफ जर्नलिस्ट्स के इंडिया रिप्रेजेंटेटिव कुणाल मजुमदार की अनुपस्थिति में उनका वक्तव्य पढ़ा गया जिसमें उन्होंने महिला पत्रकारों के सामने पेश चुनौतियों की चर्चा की और कहा कि उन्हें अपने काम के दौरान सबसे ज्यादा असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों से
अपराधी की तरह व्यवहार किया जाना भी बहुत बड़ा खतरा है। इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करने के लिए आईडब्ल्यूपीसी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि आनलाइन सेंसरशिप भी प्रेस फ्रीडम के लिए एक बड़े खतरे की तरह उभरा है।
इस मौके पर इन सभी वक्ताओं ने एक संयुक्त वक्तव्य भी पारित किया जिसमें कहा गया है कि /प्रेस की आजादी के पक्ष में हम मिलकर आवाज उठाएंगे। हमारा दृढ़ता से मानना है कि एक मजबूत और दृढ़ लोकतंत्र के लिए अभिव्यक्ति की आजादी अपरिहार्य शर्त है । सरकारी और गैर सरकारी तत्वों द्वारा मीडिया को निशाना बनाने और सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक कानून जैसे कठोर कानूनों के प्रावधान लागू करने की बढ़ती घटनाओं पर हम अपनी गंभीर चिंता जताते हैं और इन हालात में भी अडिग रहकर अपने कर्तव्य का पालन करने वाले पत्रकारों के प्रति पूरी एकजुटता जाहिर करते हैं।
आईडब्ल्यूपीसी की अध्यक्ष पारुल शर्मा ने परिसंवाद का संचालन करते हुए कहा कि इस चुनौतीपूर्ण दौर में हम उन सभी बहादुर और समर्पित पत्रकारों को सलाम करते हैं जो विषम परिस्थितियों में भी अपनी लेखनी के जरिए दुनिया के सामने सच्चाई लाने का खतरा उठाते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि हम मीडिया के सरकारीकरण की भर्त्सना करें,ग़लत सूचनाओं के खिलाफ एकजुट होकर स्वतंत्र मीडिया पटलों की पैरवी करें।