कौशल किशोर
नई दिल्ली। रविवार को मेरठ की रैली में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी भारत और श्रीलंका के बीच राम सेतु के समीप हिन्द महासागर में स्थित एक द्वीप का जिक्र करते हैं। इसके साथ अयोध्या और राम राज की तरह राष्ट्रीय अस्मिता और भारत की गौरव गाथा पर बहस छिड़ गई। ठीक उसी समय नई दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटे विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा खा रहे अपने ही सहयोगियों के समर्थन में सहानुभूति की लहर पैदा करने का प्रयास किया। इनसे अठारहवीं लोक सभा का यह चुनाव राष्ट्रवाद बनाम भ्रष्टाचार की बात के साथ अठारहवीं सदी में रॉबर्ट पाक के नाम से परिभाषित पाक जलडमरूमध्य और राम सेतु तक की यात्रा करवाती है। यह वाणिज्य क्षेत्र, सेतु समुद्रम परियोजना और जल में भारत की शक्ति का भी ध्यान दिलाती है।
प्रधान मंत्री मोदी तमिलनाडु में कमल खिलाने के लिए साल के आरंभ से ही सक्रिय हैं। राम सेतु के पास रामेश्वरम में पूजा आराधना कर अयोध्या पर्व का श्री गणेश किया था। बदले में मिले वॉच बैंक में पेट्रो केमिकल और हाइड्रो कार्बन खंगालने की कोशिश भारत सरकार ने इसके बाद ही शुरु किया। यह भारत, श्रीलंका व मालदीव की जमीनी राजनीति से संबंधित है। पचास साल पहले इंदिरा गांधी की सरकार तमिलनाडु के इस हिस्से को श्रीलंका को सौंप चुकी है।
यह मामला सड़क और विधान सभा से लेकर कोर्ट तक उठता रहा है। पिछले साल बंगलुरु में विपक्षी गठबंधन की घोषणा के तत्काल बाद सूबे के मुख्य मंत्री और द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन ने प्रधान मंत्री को पत्र लिख कर श्रीलंका से इस द्वीप की वापसी का मुद्दा उठाया था। द्रमुक सांसदों ने श्रीलंका के राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की भारत यात्रा के दौरान मछुआरों की बात पर इसे उठाया था। इन मुद्दों पर तमिलनाडु की राजनीति के सबसे बड़े दल ने 24 सदस्यों के लिए व्हिप जारी किया। विक्रमसिंघे मल्लाडी जेल से 15 मछुआरों को रिहा कराते हैं। और उनके विदा होते ही श्रीलंका की नौसेना फिर उसी क्षेत्र से 9 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार कर लेती है।
बहरहाल कच्चातिवु नामक इस द्वीप की चर्चा की वजह तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई की आरटीआई से मिला जवाब है। इससे एक नई बात सामने आती है। संसद में 23 जुलाई 1974 को द्रमुक सांसद ईरा सेझियान ने इसका जोरदार विरोध किया था। इसे तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्य मंत्री करुणानिधि का ही स्वर माना जाता रहा है। परंतु इस आरटीआई से पता चलता है कि तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और करुणानिधि के बीच आपसी सहमति से ही हस्तांतरण का यह खेल संभव हो सका था। इसके साथ ही जनता को भ्रमित करने की कोशिश की गई। इस मामले में केन्द्र और राज्य की सरकार ने सच को देश से छिपाने का काम किया था। हैरत की बात है कि इन दोनों नेताओं ने अपनी ही पार्टी और सरकार में शामिल लोगों को भी भरोसे में लेना जरूरी नहीं माना और अपनी निजी जागीर समझ कर इस मामले में निर्णय लिया।
इंदिरा गांधी की सरकार ने श्रीलंका के राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ समझौता किया था। लंबे अरसे बाद इस पर रहस्य खुल रहा। जयराम रमेश और दूसरे कांग्रेसी नेता श्रीलंका से तमिल शरणार्थियों की वापसी की बात कह रहे हैं। लेकिन 1961 में देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु ने इस द्वीप के मुद्दे पर संसद में चर्चा से परहेज करते हैं। इस द्वीप पर दावा छोड़ने से पहले विचार भी नहीं करने की बात कहते हैं। हालांकि तत्कालीन अटॉर्नी जनरल एम.सी. सीतलवाड़ द्वारा 19 अक्टूबर 1958 को कहा गया था कि इसकी संप्रभुता भारत के पक्ष में है और श्रीलंका के दावे में दम नहीं है। इस मामले में कांग्रेस के दावे मछुआरों को संतुष्ट नहीं कर सका है।
धनुषकोडी में 1800 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार 22-23 दिसंबर 1964 की आपदा से पहले रामेश्वरम द्वीप के इस नगर तक चलने वाली बोट मेल चेन्नई और कोलंबो को जोड़ती रही है। भारतीय तट से 33 किलोमीटर और जाफना से 62 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कच्चातिवु द्वीप 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बना था। बंगाल की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ने वाले सामरिक और आर्थिक महत्व का पॉक जलडमरूमध्य स्थित यह टापू 150 से 285 एकड़ तक पसरता है। 17वीं शताब्दी में यह मदुरई के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश राज में मद्रास प्रेसीडेंसी का अंग हुआ। गवर्नर रॉबर्ट पॉक 18वीं सदी में इस जलडमरूमध्य को परिभाषित करते हैं। अगली पीढ़ी ने चर्च बना कर श्रीलंका और भारत के बीच सिल्क रूट पर बोट मेल से गुजरने वाले मुसाफिरो के लिए ठिकाना उपलब्ध कराया। मछुआरे भी मछली पकड़ने के लिए इसका इस्तेमाल करने लगे। भारत सरकार द्वारा श्रीलंका को सौंपने के बाद क्या इसके स्वामित्व पर कोई संशय रहता है?
विदेश मंत्री एस. जयशंकर पिछले दो दशकों में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा गिरफ्तार करने का आंकड़ा पेश करते हैं। इसी कालखण्ड में 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को भी श्रीलंका ने जब्त किया। इस विषय में प्रधान मंत्री रहते विक्रमसिंघे ने 2015 में इस द्वीप के निकट पहुंचे भारतीय मछुआरों को गोली मारने का फरमान जारी किया था। इन्हीं सब वजहों से तमिलनाडु के सामाजिक राजनीतिक जीवन पर इसका बड़ा प्रभाव है। द्रमुक और अन्नाद्रमुक से जुड़े नेता इस पर बराबर राजनीति करते रहे हैं।
सूबे की पूर्व मुख्य मंत्री जे. जयललिता ने इस हस्तांतरण में राज्य सरकार की सहमति से इंकार किया। विधान सभा में प्रस्ताव पारित कर असंवैधानिक घोषित किया। इस द्वीप को पुनः प्राप्त करने का प्रयास शुरु किया गया तो तमिलनाडु की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया गया। अटॉर्नी जनरल ने अदालत को बताया कि ऐसी मांगें निश्चित रूप से दोनों पड़ोसियों के बीच के रिश्ते में खटास ही पैदा करेगी। सत्तर के दशक के मध्य दिल्ली हाई कोर्ट में भी केस दायर किया गया था। जिसे इमरजेंसी में खारिज कर दिया गया।
लोक सभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को तमिलनाडु के सभी 39 सीटों पर मतदान होना है। तटीय क्षेत्र के मछुआरों पर इसका सीधा असर पड़ता है। अब इसका प्रभाव क्षेत्र तमिलनाडु तक सीमित नहीं रह गया। राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा होने के कारण यह देश भर के लोगो को प्रभावित करने वाला है। कांग्रेस और बीजेपी नेताओं के बीच जारी वाकयुद्ध की वजह यही है। बेहतर संबंध की कोशिश दोनों देशों की संसद में इस पर चर्चा से ही संभव होगी। बोट मेल सेवा के साथ मछुआरों की सुविधा से तमिल ईलम प्रेम की नई इबारत भी गढ़ी जा सकती है। समुद्र में भारतीय शक्ति के विस्तार के साथ यह क्षेत्र खनिज और तेल की आपूर्ति में भी योगदान कर सकता है।
सत्रहवीं लोक सभा चुनाव से पहले हिमालय की वादियों में हुए आतंकवादी हमले का असर पड़ा। सर्जिकल स्ट्राइक की सत्यता पर सवाल उठाने वाले राजनीतिक दलों को जनता की अदालत में मुंह की खानी पड़ी। पुलवामा की तरह आज कच्चातिवु द्वीप सुर्खियों में बनी है। दूसरी ओर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर राजनीति की दशा बदलने का दावा करने वाले एक एक कर जेल भेजे जा रहे। विपक्षी गठबंधन उनके पीछे खड़े होकर सहानुभूति के बूते चुनाव जीतने का सपना देखती है। शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर वोट मांगने वाले अब शराब नीति में रिश्वत खाने के आरोप में फंसे हैं। निश्चय ही इस आम चुनाव के परिणाम पर इन सभी बातों का प्रभाव पड़ने वाला है।