प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: गुजरता वर्ष 2023 राजनीतिक मोर्चे पर उथल-पुथल से भरपूर रहा। नौ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन कर 2024 की पिच तैयार कर ली। वहीं विपक्षी एकजुटता घरातल पर नहीं उतरी। विपक्षी एकजुटता पर सत्तापक्ष का दम देखने को मिला। कांग्रेस ने दक्षिणी राज्यों में अपनी पकड़ जमाकर यह संकेत दिए कि आम चुनावों में दक्षिण में वह बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता रखती है। क्षेत्रीय दलों का सवाल है तो उन्हें झटके ही लगे। यह साल लोकसभा एवं विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने वाले कानून नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पारित होने के लिए याद किया जाएगा।
तीन राज्यों में भाजपा का परचम: फरवरी में तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा त्रिपुरा में अपनी सरकार फिर से बनाने में कामयाब रही। शेष दो राज्यों में संघर्ष क्षेत्रीय दलों के बीच रहा। त्रिपुरा में भाजपा अपनी जीत को लेकर शायद आश्वस्त नहीं थी जिसके चलते उसने नेतृत्व परिवर्तन भी किया था। उसकी यह रणनीति कारगर रही।
जब छिन गई राहुल की सांसदी : भारत जोड़ो यात्रा से सुर्खियों में रहे राहुल गांधी मार्च में फिर से चर्चा में रहे। जब गुजरात की एक निचली अदालत द्वारा मानहानि के मामले में दोषी ठहराये जाने के बाद लोकसभा ने उनकी सदस्यता खत्म कर दी। बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसने निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दी और उनकी सदस्यता बहाल हुई।
कर्नाटक में लगा भाजपा को झटका : छोटे राज्य त्रिपुरा में भाजपा अपनी सरकार बनाने में फिर से सफल तो रही लेकिन मई में हुए कर्नाटक चुनाव में उसे बड़ा झटका लगा। भाजपा ने कर्नाटक में सत्ता विरोधी लहर को थामने के लिए नेतृत्व परिवर्तन किया था लेकिन सरकार नहीं बचा सकी। कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की जिसका श्रेय राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी दिया गया यहां राहुल ने खासा समय बिताया था।
विपक्षी एकजुटता की ऐतिहासिक शुरुआत: साल के मध्य में विपक्षी दलों के एकजुटता की ऐतिहासिक शुरूआत हुई। 18 जुलाई को 28 दलों के गठबंधन नेशनल डवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस (इंडिया) ने आकार लिया। इसके जवाब में एनडीए ने भी नए दलों को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया और आज यह संख्या करीब 36 तक पहुंच चुकी है।
एनसीपी का विभाजन हुआ: जुलाई में राजनीतिक घटनाक्रम के तहत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में विभाजन हो गया। एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार के नेतृत्व में एक गुट ने एक अलग पार्टी बनाते हुए एनसीपी पर अपना दावा ठोका और वह एनडीए खेमे में जा मिला। सूबे में एक साल पूर्व शिवसेना के बंटने के बाद एनसीपी का विभाजन होना क्षेत्रीय दलों के लिए बड़ा झटका साबित हुआ।
आप को लगे कई बड़े झटके: यदि क्षेत्रीय दलों की बात करें तो आम आदमी पार्टी को भी इस साल बड़े – झटके लगे। शराब नीती मामले में उसके तत्कालीन उप – मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और बाद में सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी हुई।
जाति गणना चर्चा का केंद्र : साल के दौरान जाति गणना के मुद्दा भी चर्चा में रहा। बिहार सरकार राज्य स्तर पर जाति गणना करने में सफल रही जिसके आंकड़े अक्तूबर में जारी किए गए। इससे ओबीसी की संख्या को लेकर नई बहस छिड़ी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को लपकते हुए तीनों चुनावी राज्यों में जाति गणना का ऐलान किया न लेकिन यह मुद्दा उसके लिए गेमचेंजर साबित नहीं हुआ। हालाकि केंद्र सरकार ने इस मामले में सावधानी बरती पं और इसका खुलकर विरोध नहीं किया।
तीन राज्यों में भाजपा को पूर्ण बहुमत: नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा चुनाव पूर्वानुमानों को धता बताते हुए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में शानदार जीत हासिल की। कांग्रेस को सिर्फ तेलंगाना में जीत से संतोष करना पड़ा। इस साल नौ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में चार राज्यों में भाजपा ने जीत दर्ज की। इनमें से दो राज्यों में भाजपा की पहले से सरकारें थी। लेकिन उसने एक राज्य कर्नाटक खोया ।
कर्नाटक- तेलंगाना में कांग्रेस: कांग्रेस को देखें तो पिछले चुनाव की तुलना में उसने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीन राज्य हारे। कर्नाटक एवं तेलंगाना में उसने जीत दर्ज कर दो राज्य हासिल किए। इससे चर्चा छिड़ रही कि क्या कांग्रेस दक्षिण में मजबूत होकर उभर रही है। दूसरे हिन्दी भाषी राज्यों में भाजपा की जीत से यह संदेश गया कि मोदी का चेहरा, मोदी की गारंटी, हिन्दुत्व और भाजपा का प्रभाव वहां कायम है जो 2024 के लिए उसके लिए अच्छे संकेत हैं।
तेलंगाना में बीआरएस को झटका: विधानसभा चुनाव में बीआरएस को झटका लगा। बीआरएस तेलंगाना के बाहर हाथ-पैर फैलाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह अपना एकमात्र किला नहीं बचा पाई।
साल के अंत में 146 सांसद निलंबित: संसद में सुरक्षा चूक पर हंगामे के कारण 146 सांसदों को निलंबित किया गया जिसमें सारे पुराने रिकार्ड ध्वस्त हो गए। सरकार को सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 370 पर आए फैसले से एक और बड़ी राहत मिली।
2023 की महत्वपूर्ण घटनाएं
1.दिसंबर में संसद ने भारतीय न्याय सहिता से जुड़े तीन विधेयक संसद से पारित किए हैं। अंग्रेजों के जमाने के आपराधिक कानूनों को बदला गया।
2.समान नागरिक सहिता को लेकर सुगबुगाहट तेज रही। उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित जस्टिस रंजना देसाई कमेटी के द्वारा इस मुद्दे पर व्यापक विमर्श के बाद रिपोर्ट तैयार करने से यह मुद्दा चर्चा में रहा।
3.138 साल पुराने टेलीग्राफ एक्ट की जगह केंद्र सरकार नया दूरसंचार विधेयक लेकर आई जिसमें कई अहम बदलाव किए गए हैं।
4.पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन वन इलेक्शन पर उच्च स्तरीय कमेटी बनाई गई है जो इसकी संभावनाओं का पता लगा रही है।
5.एक महत्वपूर्ण पहल में सरकार की तरफ से इंडिया की जगह भारत नाम को ज्यादा प्रचलित करने की शुरूआत की गई ।
6. भारत सरकार द्वारा जी-20 का सफल आयोजन किया गया। मुख्य शिखर सम्मेलन के अलावा देश के कई शहरों में बैठकें हुईं। भारत की पहल पर अफ्रीकी संघ को जी-20 का सदस्य बनाया गया।
अगले साल क्या…
अप्रैल मई में लोकसभा चुनाव हो सकते हैं। इसके साथ जम्मू कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव भी हो सकते हैं।
जम्मू कश्मीर के अलावा साथ-साथ और राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होंगे, इनमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश,उड़ीसा, सिक्किम में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव संभव है अक्टूबर में हरियाणा हुआ महाराष्ट्र तथा नवंबर में झारखंड विधानसभा चुनाव होगा।
लोकतंत्र का नया मंदिर
सितंबर में दो बड़ी ऐतिहासिक घटनाएं हुई। नई संसद भवन की शुरुआत हुई तथा पहले दिन नारी शक्ति वंदन अधिनियम पेश किया गया और पारित हुआ इस कानून के जरिए लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित की गई। इस प्रकार दशकों पुरानी एक मांग पूरी हुई जो आगे चलकर महिला केंद्रित विकास की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगी।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत छोड़ो यात्रा चर्चा का केंद्र रही। 7 सितंबर 2022 को कन्याकुमारी से शुरू हुई भारत छोड़ो यात्रा 30 जनवरी को श्रीनगर में संपन्न हुई। इस यात्रा की लोगों के बीच अच्छी चर्चा हुई और इनके जरिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और परिपक्वता प्रदर्शित करने में कामयाब रहे।
बीजेपी की रणनीति
लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अपना नारा तैयार कर लिया है. पार्टी ने अगले साल होने वाले चुनाव के लिए ‘सपने नहीं हकीतत बुनते हैं, इसलिए तो सब मोदी को चुनते हैं’ का नारा गढ़ा है. बीजेपी ने ये नारा ऐसे समय पर चुना है जब पार्टी पदाधिकारियों की दो दिवसीय बैठक लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर दिल्ली में शुक्रवार से ही शुरू होनी है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई नेता हिस्सा लेंगे.