नई दिल्ली: ‘आज यह बहुत स्पष्ट है कि कश्मीर मुद्दे (Kashmir Issue) को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में ले जाना एक बुनियादी गलती (Fundamental Error) थी.’ पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम लिए बिना उन पर निशाना साधते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अगर समझ होती तो कश्मीर को यूएन में नहीं ले गए होते. जयशकंर ने कहा कि हमें उन देशों के एक समूह ने धोखा दिया था, जिन्होंने अपने भू-राजनीतिक एजेंडे (Geo-Political Agenda) और कश्मीर में असुरक्षा के मुद्दे का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि यह तथ्य आज नहीं बल्कि 1970 के दशक तक बहुत स्पष्ट हो गया था.
‘मोदी सरकार में हम अपने इतिहास को फिर से हासिल कर रहे हैं’
कर्नाटक में पीईएस विश्वविद्यालय में स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित करने के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बेंगलुरु दक्षिण से सांसद तेजस्वी सूर्या के साथ अपनी किताब ‘व्हाई भारत मैटर्स’ और कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि हम अपने इतिहास को फिर से हासिल कर रहे हैं. जयशंकर ने केंद्र की मोदी सरकार से पहले और बाद की विदेश नीति के अंतर पर बात करते हुए कश्मीर मुद्दे को यूएनएससी में ले जाने को बुनियादी गलती करार दिया.
कश्मीर मुद्दे के संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचने से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य क्या हैं
इससे पहले संसद में गृहमंत्री अमित शाह और अपने एक लेख में पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भी इसे नेहरूवियन ब्लंडर करार दिया था. आइए, जानते हैं कि कश्मीर मुद्दे के संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचने से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य क्या हैं? इस ऐतिहासिक मामले का सच क्या है और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू देश के आंतरिक मसले को क्यों संयुक्त राष्ट्र में ले गए. साथ ही कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तत्कालीन परिस्थिति कैसी थी?
ऐसे बना और भारत में मिला था जम्मू कश्मीर रियासत
पहले एंग्लो-सिख युद्ध के बाद अमृतसर की संधि के तहत मार्च 1846 में अंग्रेजों ने 75 लाख नानकशाही रुपये में जम्मू के डोगरा जागीरदार गुलाब सिंह के हाथों कश्मीर को बेच दिया था. जम्मू और कश्मीर दोनों मिलने से जम्मू-कश्मीर रियासत अस्तित्व में आई थी. आजादी से पहले जून 1947 में वायसराय लुईस माउंटबेटन ने श्रीनगर में हरि सिंह के प्रधानमंत्री को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने की सलाह दी थी. इसके जवाब में महाराजा गुलाब सिंह के वंशज हरि सिंह ने भारत या पश्चिमी पाकिस्तान में मिलने के बजाय स्वतंत्र रहकर ‘पूरब के स्विट्जरलैंड’ की तरह जम्मू कश्मीर के विकास करने की बता कही थी.
‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ के बाद भारतीय सैनिक पहुंचे
ब्रिटिश लेखिका विक्टोरिया स्कोफील्ड की किताब ‘कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट’ के मुताबिक उन्होंने 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ ‘स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट’ का प्रस्ताव रखा था. हालांकि बाद में पाकिस्तानी साजिश, धोखे और कबाइलियों के हमले के बाद हरि सिंह ने भारत में विलय कर सैनिक मदद मांगी. भारत के शीर्ष राजनयिक वीपी मेनन को ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ यानी विलय पत्र सौंपा. एजी नूरानी की किताब ‘द कश्मीर डिस्प्यूट’ में माउंटबेटन को लिखे महाराजा हरि सिंह के विलय पत्र का पूरा मजमून है. इसके बाद रक्षा समिति की बैठक में गवर्नर-जनरल माउंटबेटन की सलाह पर पंडित नेहरू ने भारतीय सेना को भेजा, जिसने कबाइली हमलावरों को कश्मीर घाटी से खदेड़कर बाहर किया.
नेहरू को माउंटबेटन ने दी थी सलाह और क्लेमेंट एटली ने चेतावनी
माउंटबेटन और हरि सिंह के पत्र व्यवहार और पंडित नेहरू और लियाकत अली खान के टेलीग्राम में कश्मीर के विलय को लेकर उचित समय पर जनमत संग्रह करवाने का जिक्र भी सामने आया. इस बीच भारतीय सैनिकों ने द्रास, कारगिल और पुंछ की पहाड़ियों पर कब्जा करके सफलता हासिल कर ली थी. लड़ाई थमी नहीं थी और इसके पंजाब तक फैलने की आशंका भी थी. तब माउंटबेटन ने कश्मीर मामले में संयुक्त राष्ट्र को शामिल करने की सलाह दी.