नई दिल्ली: जियो-पॉलिटिक्स को अपने हिसाब से चलाने के लिए डिप्लोमेसी सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर्स में से एक है और इटली में हाल ही में खत्म हुए जी7 शिखर सम्मेलन में भारत को बतौर अतिधि आमंत्रित किया गया था और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जैसी मौजूदगी देखी गई है, उससे साबित होता है, कि भारत तेजी से ग्लोबल डिप्लोमेसी का खिलाड़ी बन रहा है।
भारत में लोकसभा चुनाव खत्म होने और लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी की ये पहली विदेश यात्रा थी और जी7 शिखर सम्मेलन में उनकी ये लगातार पांचवीं भागीदारी थी। हालिया समय में जी7 शिखर सम्मेलन में लगातार प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रण मिलना बताता है, कि विकसित दुनिया में भारत का महत्व कैसे बढ़ता जा रहा है।
भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा के मुताबिक, जी7 शिखर सम्मेलन में भारत की नियमित भागीदारी स्पष्ट रूप से उन कोशिशों की बढ़ती मान्यता और योगदान की तरफ इशारा करती है, कि नई दिल्ली लगातार शांति, सुरक्षा, विकास और पर्यावरण संरक्षण समेत कमाम ग्लोबल चुनौतियों को हल करने के लिए लगातार काम कर रहा है।
विनय क्वात्रा ने कहा है, कि “इस जी7 शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी, भारत की तरफ से पिछले साल आयोजित की गई जी20 के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है, जहां भारत ने कई विवादास्पद मुद्दों पर वैश्विक सहमति बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है।”
उन्होंने आगे कहा, कि “जैसा कि आप भी जानते हैं, कि भारत ने अब तक वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन के दो सत्रों का आयोजन किया है, जिसका मकसद वैश्विक मंच पर ग्लोबल साउथ के हितों, उनकी जरूरतों, उनकी प्राथमिकताओं और चिंताओं को सामने लाना है। जी7 में भी, हमने हमेशा ग्लोबल साउथ के मुद्दों को सबसे आगे रखा है।”
जियो-पॉलिटिक्स में भारत की बढ़ती भूमिका
पिछले 10 सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की डिप्लोमेसी ने लगातार तरक्की की है और ऑस्ट्रेलिया स्थित लोवी इंस्टीट्यूट की तरफ से जारी “2024 ग्लोबल डिप्लोमेसी इंडेक्स” में कहा गया है, कि “भारत, जिसने अपने जनसांख्यिकीय और आर्थिक वजन के मुताबिक, अपने राजनयिक नेटवर्क के आकार में ऐतिहासिक रूप से कम निवेश किया था, वो अब दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते राजनयिक नेटवर्क में से एक बन गया है।”
2024 ग्लोबल डिप्लोमेसी इंडेक्स में 194 पोस्ट में भारत का इंडेक्स 11वें नंबर पर पहुंच गया है और भारत ने कनाडा, दक्षिण कोरिया और स्पेन जैसे देशों को डिप्लोमेसी में पीछे छोड़ दिया है। भारत ने साल 2021 से 11 नये राजनयिक मिशन खोले हैं, जिनमें से ज्यादातर देश अफ्रीका से हैं।
अफ्रीका में भारत की पांव फैलाने की कोशिश
भारत लगातार ग्लोबल साउथ की मुख्य आवाज बनने की कोशिश कर रहा है और इस रिपोर्ट में कहा गया है, कि इसके लिए भारत ने अफ्रीका में तेजी से पांव फैलाना शुरू किया है और 2021 से भारत ने जितने राजनयिक मिशन खोले हैं, उनमें से 75 प्रतिशत मिशन अफ्रीकी देशों में हैं। इसके अलावा, लिथुआनिया और काबो वर्डे में भारतीय मिशन स्थापित किए जाने की प्रक्रिया चल रही है।
वहीं भारतीय और प्रशांत महासागर के बीच स्थित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्वीप देश तिमोर-लेस्ते में भी भारत, एक मिशन खोलने की तैयारी कर रहा है।
इस साल के ग्लोबल डिप्लोमेसी इंडेक्स में क्या पाया गया है?
1- महाशक्तियों के बीच करीबी लड़ाई- ग्लोबल डिप्लोमेसी इंडेक्स में पाया गया है, कि अफ्रीका, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में चीन की डिप्लोमेसी काफी तेजी से फैला है और वो सबसे आगे है, वहीं अमेरिका का, अमेरिका महाद्वीप, यूरोप और दक्षिण एशिया में बढ़त बरकरार है। लेकिन कुल मिलाकर, ग्लोबल डिप्लोमेसी में चीन पहले स्थान पर है और उसके बाद अमेरिका दूसरे स्थान पर है।
2- मध्यम शक्तियों का विस्तार- ग्लोबल इंडेक्स में पाया गया है, कि तुर्की और भारत जैसे देशों ने अपने राजनयिक नेटवर्क का तेजी से विस्तार किया है, लेकिन फिलहाल तुर्की, भारत से काफी आगे है। इस इंडेक्स में तुर्की को तीसरे नंबर पर रखा गया है और वो जापान और फ्रांस जैसे देशों से आगे है। तुर्की के पूरी दुनिया में 252 डिप्लोमेटिक पोस्ट्स हैं और उसने मध्य पूर्व और अफ्रीका में अपने नेटवर्क का लगातार विस्तार किया है।
3- भारत को इस लिस्ट में इस साल 11वें नंबर पर रखा गया है। भारत को लेकर कहा गया है, कि इसने पिछले कुछ सालों में कई स्थापित वैश्विक शक्तियों को पीछे छोड़ दिया है और मोदी सरकार आने के बाद भारत ने डिप्लोमेसी में काफी तेजी से पांव फैलाए हैं। मोदी सरकार आने से पहले भारत की रैकिंग काफी नीचे थी। भारत ने एशिया के साथ साथ अफ्रीका और यूरोप में तेज विस्तार किया है। इसके अलावा, भारत को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात ये कही गई है, कि एशिया, पूर्वी अफ्रीका और हिंद महासागर क्षेत्र के हर देश में भारत ने अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है।
4- डिप्लोमेसी सेंटर में एशिया- ग्लोबल इंडेक्स में जापान, जो चौथे स्थान पर है, उसने ग्लोबल डिप्लोमेसी में अपनी मजबूत मौजूदगी बरकरार रखी है, जबकि इंडोनेशिया दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच अपनी डिप्लोमेसी में आगे चल रहा है।
5- युद्ध की कीमत- यूक्रेन में रूस के युद्ध की वजह से उसकी वैश्विक कूटनीतिक पहुंच को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। रूस की डिप्लोमेसी मौजूदा रैंक 6वें स्थान पर आ गई है।
6- यूरोपीय देशों को बढ़त- सबसे व्यस्त कूटनीतिक राजधानियों की सूची में यूरोपीय शहर सबसे ऊपर हैं (फ्रांस 5वें स्थान पर, इटली, यू.के., जर्मनी और इटली क्रमशः 7वें, 8वें और 9वें स्थान पर हैं।)
मोदी मैजिक का देखने को मिल रहा असर
रिपोर्ट में कहा गया है, कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की कूटनीति ने तेज रफ्तार पकड़ी है, खासकर चार क्षेत्रों में भारत ने तेज रफ्तार से उन्नति की है। हालांकि, इन चार क्षेत्रों में मौके हैं, तो चुनौतियां भी हैं।
पहला– 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद से, मोदी ने भारतीय प्रवासियों के साथ सक्रिय संपर्क स्थापित किया है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा 1.8 करोड़ हैं, जो मैडिसन स्क्वायर से सिडनी, सुवा से दुबई और लंदन से ह्यूस्टन तक की जगहों पर उनकी विशाल रैलियों से पता चलता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) और भारत के विदेशी नागरिक (OCI) कार्डों को मिलाकर प्रवासी समुदाय को भारत के करीब ला दिया है, जिससे कार्डधारक हर दृष्टि से भारतीय नागरिकों के बराबर हो गए और वोट देने और चुनाव लड़ने के अधिकार की रक्षा हुई।
पीएम मोदी की ये नीति भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल की स्थिति से बिल्कुल विपरीत है, जिनका मानना था, कि प्रवासी भारतीयों को भारत से कोई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, और वो जिन देशों में बस गये हैं, उन देशों के अच्छे नागरिक बनना चाहिए और उन्हें उन देशों के साथ पूरी तरह से अपनी पहचान बनानी चाहिए।
नेहरू ने 1947 में प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय को समाप्त कर दिया था। 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकारप बनी, तब एक बार फिर से प्रवासी भारतीयों के प्रति भारत का नजरिया बदला।
मोदी ने भारतीय प्रवासियों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है, जिससे उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने संबंधों को उच्च स्तर पर ले जाने में बहुत लाभ मिला है। भारतीय-अमेरिकीस, अमेरिका में सबसे हाई-प्रोफाइल जातीय समूहों में से एक हैं।
दूसरा- मोदी यकीनन भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो “ग्लोबल साउथ” का नेतृत्व करने और “जलवायु परिवर्तन” से संबंधित लक्ष्य निर्धारित करने में सक्रिय रहे हैं। मोदी ने “आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन”, “वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन” और “भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा” शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई है।
तीसरा- मोदी सरकार ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और जापान के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ मिलकर इंडो-पैसिफिक में चीन को काउंटर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लिहाजा आज, एक राजनीतिक और आर्थिक इकाई के रूप में इंडो-पैसिफिक को वैश्विक मान्यता मिल गई है, लेकिन चार साल पहले तक, कई प्रमुख देश – खासकर यूरोपीय शक्तियां, आसियान देश और रूस – “इंडो-पैसिफिक” शब्द का उपयोग करने में भी झिझकते थे। इसके बजाय, वे भौगोलिक शब्द “एशिया-पैसिफिक” का उपयोग करते थे।
चौथा- हालांकि, आलोचक नरेन्द्र मोदी को सांप्रदायिक और मुस्लिम विरोधी बताते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य पूर्व के विशाल और मुस्लिम बहुल क्षेत्र में अब तक के सबसे लोकप्रिय भारतीय नेता के रूप में उभरने में सफल रहे हैं। मोदी सरकार ने UAE, सऊदी अरब, ओमान और कतर जैसे देशों के साथ बेहतरीन रिश्ते कायम किए हैं।