नई दिल्ली : अव्वल तो कांग्रेस ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस को भी बीजेपी खेमे का सदस्य करार दिया है, ठीक वैसे ही जैसे AIMIM है. राहुल गांधी का सवाल है कि आखिर केसीआर सरकार के भ्रष्टाचार में डूबे होने के बावजूद ED, CBI और Income Tax के छापे क्यों नहीं पड़ते?
राहुल गांधी ने तो BRS को एक नाम भी दे दिया है – बीजेपी रिश्तेदार समिति. ऐन उसी वक्त INDIA गठबंधन में साथ होने के बावजूद आम आदमी पार्टी को लेकर भी कांग्रेस में कोई अपनापन नहीं लगता. आपको याद होगा, भारत जोड़ो यात्रा के समापन के मौके पर कांग्रेस में केसीआर और अरविंद केजरीवाल दोनों के बार में एक जैसी राय रही.
बाद के दिनों में बहुत कुछ बदला भी है. आम आदमी पार्टी के दबाव में कांग्रेस को झुकना भी पड़ा है. दिल्ली सेवा बिल के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ देने की घोषणा के बाद ही बेंगलुरू बैठक में दोनों दल साथ देखने को मिले थे.
दिल्ली सेवा बिल के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को खुले सपोर्ट के बाद भी, कांग्रेस नेताओं को नहीं लग रहा है कि आने वाले दिनों में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ बने रहेंगे. खासकर दिल्ली और पंजाब कांग्रेस के नेताओं को आम आदमी पार्टी पर बिलकुल भी भरोसा नहीं हो रहा है.
और ये चीज 2019 के चुनाव में भी देखी जा चुकी है. हैदराबाद में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद तो ऐसा लगने लगा है जैसे पांच साल बाद भी कांग्रेस और आप के रिश्ते में कोई भी तब्दीली नहीं आने वाली है.
AAP को लेकर कांग्रेस नेताओं को भरोसा क्यों नहीं हो रहा है
आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के चुनावी कैंपेन को लेकर दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस नेताओं के कई सवाल हैं – और ऐसे सवाल हैं जिसे नजरअंदाज करने का हिम्मत न तो मल्लिकार्जुन खड़गे में दिखायी पड़ रही है, न 2019 में राहुल गांधी ही दिखा पाये थे.
CWC से सूत्रों के हवाले खबर आयी है कि पंजाब और दिल्ली के कुछ नेताओं का कहना था कि आम आदमी पार्टी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. दिल्ली कांग्रेस के नेता अजय माकन और पंजाब कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने अपने अपने राज्यों में अरविंद केजरीवाल के साथ चुनावी गठबंधन को लेकर कड़ा ऐतराज जताया है.
ऐसे नेताओं ने गंभीर सवाल खड़ा किया है. ये सवाल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के हाल के चुनावी अभियान को लेकर हैं. कांग्रेस नेतृत्व से पूछा जाने लगा है, अगर आम आदमी पार्टी पर भरोसा है, तो वो उन राज्यों में प्रचार क्यों करती है जहां कांग्रेस की बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई है? क्या आम आदमी पार्टी की इस हरकत से बीजेपी को मदद नहीं मिल रही होगी?
अजय माकन ने कांग्रेस नेतृत्व को ध्यान दिलाया कि आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार रही है. अजय माकन छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के लिए बनी कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अजय माकन और प्रताप सिंह बाजवा की बातों को गंभीरता से ले रहे हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस नेताओं को भरोसा दिया है कि राज्य इकाई से बातचीत के बाद ही सीट शेयरिंग पर कोई फैसला लिया जाएगा. असल में विपक्षी गठबंधन INDIA में फिलहाल सीटों के बंटवारे पर भी जोर है.
दिल्ली और पंजाब में INDIA गठबंधन में सीट शेयरिंग पर संकट
पहले तो ये जानना होगा कि 2019 के आम चुनाव में क्या हुआ था. दरअसल, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सामने दिल्ली, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में चुनावी गठबंधन का प्रस्ताव आया था. पश्चिम बंगाल से ये प्रस्ताव मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से था. दिल्ली से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से – और आंध्र प्रदेश से टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू ने दिया था.
जैसे पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी शिद्दत से ममता बनर्जी के खिलाफ डटे रहे, दिल्ली में तब शीला दीक्षित ने भी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का प्रस्ताव सीधे सीधे खारिज कर दिया था. और फिर राहुल गांधी ने ऐसे प्रस्तावों को लेकर कांग्रेस की राज्य इकाइयों से बात करके आगे बढ़ने की बात कही. अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी वैसी ही बात कर रहे हैं.
कांग्रेस की राज्य इकाइयां तो पहले से ही विरोध में रहीं. राहुल गांधी ने भी न तो कोई अलग फैसला लिया, न ही बात आगे बढ़ी. पश्चिम बंगाल और दिल्ली की तरह आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस 2019 में अकेले मैदान में उतरी और नतीजे तो आपको याद होंगे ही. अपडेट ये है कि चंद्रबाबू नायडू ने विपक्षी गठबंधन INDIA से पहले से ही दूरी बना रखी है – हाल तक वो एडीए के करीब जाते तो समझे जा रहे हैं, लेकिन उससे ऐन पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की पुलिस ने भ्रष्टाचार के एक मामले में टीडीपी नेता को जेल भेज दिया है.
कांग्रेस नेताओं ने पार्टी के प्रभाव वाले राज्यों को लेकर अरविंद केजरीवाल की चुनावी मंशा को लेकर सवाल उठाया है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ही तरह अरविंद केजरीवाल पहले कर्नाटक और गुजरात में भी चुनाव कैंपेन कर चुके हैं. कर्नाटक में तो कांग्रेस ने सरकार बना ली है, लेकिन गुजरात काफी नुकसान उठाना पड़ा था. आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट तो काटे ही, ऐसी पांच सीटें भी हथिया ली, जो कांग्रेस के हिस्से में आ सकती थीं. ऐसे में कांग्रेस नेता अगर केजरीवाल को लेकर शक जता रहे हैं, तो वे बहुत हद तक गलत नहीं माने जा सकते.
दिल्ली को लेकर तो ज्यादा ही विवाद हो चुका है
करीब महीने भर पहले की बात है, जब कांग्रेस नेता अलका लांबा के एक बयान पर काफी बवाल मचा था. अगस्त, 2023 में दिल्ली कांग्रेस के नेताओं को लेकर एक बड़ी बैठक बुलायी गयी थी. बैठक के बाद अलका लांबा ने मीडिया के सामने आकर बोल दिया कि दिल्ली में कांग्रेस लोक सभा की सभी सात सीटों पर अकेले चुनाव में उतरने जा रही है – ये सुनते ही आम आदमी पार्टी की तरफ से आपत्ति जतायी गयी.
अलका लांबा ने कहा था, ‘2024 कैसे जीतना है… इसे लेकर हमें आदेश हुआ है… सातों सीटों पर मजबूती के साथ संगठन के हर नेता को निकलना है… सात महीने, सात सीटें हैं… मीटिंग में ये बात हुई कि जिसकी दिल्ली उसका देश होता है… ये दिल्ली का इतिहास बताता है. संगठन से जो भी जिम्मेदारियां तय होंगी उस पर हम लोग काम करेंगे.’
आम आदमी पार्टी की आपत्ति के बाद कांग्रेस की तरफ से सफाई दी जाने लगी. क्योंकि ये सवाल भी उठने लगा कि विपक्षी एकता में अभी से फूट पड़ने लगी. ये सवाल इसलिए भी बवाल मचा रहा था क्योंकि महीने भर पहले ही विपक्षी गठबंधन INDIA को खड़ा करने की कोशिश हुई थी.
और तभी AICC के दिल्ली कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया सामने आये. पहले तो ये कह कर मामला शांत करने की कोशिश की कि बैठक में ऐसी कोई चर्चा ही नहीं हुई. लेकिन जब याद दिलाया गया कि जो बात सामने आयी है वो कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा है. फिर दीपक बाबरिया ने समझाया, अलका लांबा प्रवक्ता हैं, लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के लिए वो अधिकृत प्रवक्ता नहीं हैं… मैं अलका लांबा के बयान का खंडन करता हूं.’ बाद में अलका लांबा को भी अपने बयान पर सफाई देनी पड़ी थी.
आखिर कैसे समझा जाये कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रिश्ते सुधरने लगे हैं. INDIA गठबंधन के मंच पर दोनों दलों के नेता साथ तो नजर आ रहे हैं, लेकिन एक दूसरे के प्रति अविश्वास को नहीं छिपा पा रहे हैं – ऐसे में 2019 और 2024 नहीं दोहराया जाएगा, भला कैसे समझा जाये?