नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव की घड़ी अब करीब आ गई है और सियासी दलों ने रणनीति का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया है. राजनीतिक दलों का फोकस संगठन से लेकर गठबंधन तक है और चुनावी नारे भी अब गढ़े जाने लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने ‘तीसरी बार मोदी सरकार, अबकी बार 400 पार’ नारा दे भी दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी जनसभाओं में बीजेपी को 370 और एनडीए को 400 से अधिक सीटें देने की अपील कर रहे हैं.
बीजेपी ने 400 सीटें जीतने का लक्ष्य तय कर तैयारी भी शुरू कर दी है. अब चर्चा बीजेपी के इस लक्ष्य को लेकर हो रही है कि इसमें कितना दम है? यह नारा महज नारा भर है या साकार रूप भी ले सकता है? अगर बीजेपी इस लक्ष्य तक पहुंच सकती है तो कैसे? इसकी बात से पहले इस लक्ष्य की पृष्ठभूमि की चर्चा भी जरूरी है.
दरअसल, बीजेपी के लक्ष्य के पीछे 1984 के चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को आधार माना जा रहा है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए तब के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 414 सीटों पर जीत मिली थी. तब कुल 38 करोड़ वोटर थे जिनमें से 24 करोड़ ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था और कांग्रेस को करीब 50 फीसदी यानी करीब 12 करोड़ वोट मिले थे. यह आजाद भारत के इतिहास में किसी लोकसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है.
अब बीजेपी ने 2024 के चुनाव में अकेले दम 370 सीटें जीतने और एनडीए की सीटों का आंकड़ा 400 पार पहुंचाने का लक्ष्य रखा है तो उसके अपने कैलकुलेशन भी हैं. बीजेपी यह समझ रही है कि अगर उसे लक्ष्य तक पहुंचना है तो उसे करीब 50 फीसदी वोट शेयर तक भी पहुंचना होगा. अब बीजेपी के नजरिए से देखें तो बीजेपी का वोट शेयर और सीटें, चुनाव दर चुनाव बढ़ती ही नजर आई हैं. साल 2009 के आम चुनाव के बाद के आंकड़े इसकी गवाही भी देते हैं.
साल 2009 में 18.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 116 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने 2014 में 31.34 फीसदी वोट शेयर के साथ 282 सीटें जीत अकेले दम पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 273 लोकसभा सीटों का आंकड़ा पार कर लिया. 2019 में बतौर सत्ताधारी दल उतरी बीजेपी का वोट शेयर 37.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 303 सीटों तक जा पहुंचा. इसके ठीक उलट कांग्रेस का वोट शेयर 1984 के बाद 2014 तक गिरता ही चला गया. 2019 में पार्टी का वोट शेयर बढ़ा तो लेकिन पॉइंट टू फीसदी.
लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकती है बीजेपी
अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि बीजेपी ने चार सौ से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य तो निर्धारित कर दिया, लेकिन पार्टी इस लक्ष्य तक पहुंचेगी कैसे? 2019 के लोकसभा चुनाव को आधार मान लें तो बीजेपी को 37.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 303 सीटों पर जीत मिली थी जबकि एनडीए की बात करें तो गठबंधन 38.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 352 सीटें जीतने में सफल रहा था.
बीजेपी भी समझ रही है कि अगर उसे लक्ष्य तक पहुंचना है तो 1984 चुनाव की तर्ज पर वोट शेयर को करीब 50 फीसदी के स्तर तक ले जाना होगा और यही वजह है कि पार्टी ने 400 पार सीटों के साथ 50 फीसदी से अधिक वोट शेयर का लक्ष्य भी रखा है. इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बीजेपी को करीब 13 फीसदी या एनडीए के पक्ष में 12 फीसदी वोट स्विंग की जरूरत होगी.
सीटों की ही बात करें तो 72 सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी के उम्मीदवार दूसरे, 31 सीटों पर तीसरे स्थान पर रहे थे. इन 72 में से करीब 40 सीटें ऐसी हैं जहां तीन से चार फीसदी वोट स्विंग होने की स्थिति में पार्टी को लीड मिल सकती है. अगर बीजेपी के पक्ष में इन सीटों पर वोट स्विंग होता है और साथ ही पार्टी मौजूदा सीटें बरकरार रखने में सफल रहती है तो बीजेपी की सीटों का आंकड़ा 350 के करीब पहुंच सकता है.
अब गठबंधन की बात करें तो बीजेपी को छोड़कर एनडीए के अन्य घटक दलों ने पिछले चुनाव में 49 सीटें जीती थीं. एनडीए के अन्य घटक दल पिछले चुनाव का प्रदर्शन ही दोहरा दें, तब भी बीजेपी चार सौ पार के लक्ष्य को हासिल कर सकती है. इसीलिए बीजेपी साथ छोड़ गए पुराने सहयोगियों को फिर से साथ लाने के साथ ही एक-एक सीट पर जनाधार वाले नेताओं को भी जोड़ने पर फोकस किए हुए है. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में और पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा के शिवसेना में शामिल होने को भी इसी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.
कैसा रहा था 1984 का चुनाव परिणाम
साल 1984 के आम चुनाव से पहले 1981 में संजय गांधी की मृत्यु हो गई थी. चुनाव करीब थे कि इंदिरा गांधी की उनके सुरक्षाकर्मियों ने ही अंधाधुंध गोलियां बरसाकर हत्या कर दी. पहले संजय और फिर इंदिरा, कुछ साल के भीतर दो बड़े नेताओं को खो चुकी कांग्रेस को इन झटकों से उबारने का बीड़ा राजीव गांधी ने उठाया.
राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बने अभी दो महीने ही हुए थे कि लोकसभा चुनाव हो गए. तब 515 सीटों के लिए हुए इन चुनावों में कांग्रेस को सहानुभूति की लहर का लाभ मिला और पार्टी 49 फीसदी से अधिक वोट शेयर के साथ 414 सीटें जीतने में सफल रही थी. तब असम की 14 और पंजाब की 13, 27 लोकसभा सीटों पर 1985 में चुनाव हुए थे.