शिव सेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि शिव सेना उनकी पार्टी है और उसका तीर-धनुष चुनाव चिन्ह कोई नहीं छीन सकता है। लेकिन सवाल है कि वे अपना चुनाव चिन्ह कैसे बचाएंगे? उनकी पार्टी के 55 में से 40 विधायक उनका साथ छोड़ कर अलग गुट बना चुके हैं। खबर है कि उनके 18 लोकसभा सांसदों में से भी 12 सांसद अलग गुट बनाने की तैयारी में हैं और संभव है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले ही वह गुट बन जाए। बृहन्नमुंबई और ठाणे नगर निगम पर पार्टी का कब्जा था लेकिन निगम का कार्यकाल पूरा हो चुका है। इस बीच ठाणे के 67 में से 66 पूर्व पार्षद बागी गुट के साथ चले गए हैं। बृहन्नमुंबई नगर निगम यानी बीएमसी के भी आधे से थोड़े कम 35 पूर्व पार्षदों ने बागी गुट का समर्थन किया है।
सो, चुने गए प्रतिनिधि और पूर्व प्रतिनिधियों में से ज्यादातर नेता शिव सेना के बागी गुट के साथ चले गए हैं। यह सही है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी, प्रदेश ईकाई और जिला इकाइयों में से ज्यादातर अभी उद्धव ठाकरे के साथ हैं। लेकिन सिर्फ उसके दम पर संगठन पर दावा पूरी तरह से मान्य नहीं है। चुनाव आयोग या अदालत का फैसला संगठन के पदाधिकारियों और चुने गए प्रतिनिधियों के अनुपात पर ही आधारित होगा। यह संभव है कि शिव सेना नाम और तीर-धनुष चुनाव चिन्ह बागी गुट को नहीं मिले लेकिन यह भी संभव है कि वह उद्धव ठाकरे के पास भी न रहे। दोनों को नया नाम और चुनाव चिन्ह आवंटित हो, जैसा कि बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के साथ हुआ। वहां भी छह में से पांच सांसद पशुपति पारस के साथ चले गए, जबकि संगठन के नेता चिराग पासवान के साथ रहे। अंत में आयोग ने पार्टी का चुनाव चिन्ह जब्त कर लिया और दोनों को नया चिन्ह आवंटित किया। सो, उद्धव को तीर-धनुष का निशान बचाना है तो उनको सांसदों को टूटने से बचाना होगा और मंत्रिमंडल विस्तार के बाद नाराज होने वाले विधायकों को वापस अपने साथ लाने का प्रयास करना होगा।