डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
हिंदू धर्म मे वट अमावस्या का पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।इस बार वट सावित्री पर्व 30 मई को है। ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 29 मई दिन रविवार समय दोपहर 02:54 बजे से हो रही है। इस तिथि का समापन 30 मई दिन सोमवार समय शाम 04:59 बजे होगा। ऐसे में वट सावित्री व्रत 30 मई को रखा जाएगा।इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी प्रात: 07:12 बजे से लग जा रहा है, जो पूरे दिन रहेगा। इस दिन व्रत पूजन अति पुण्य फलदायी होगा।इस पर्व पर सुहागिन स्त्रियां वट वृक्ष की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।इसे वट सावित्री व्रत भी कहते ,सौभाग्य प्राप्ति का यह एक महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है।वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना जाता है। वट वृक्ष को देव वृक्ष भी कहा गया है।कहते है कि देवी सावित्री भी इस वृक्ष में निवास करती हैं।इतिहास साक्षी है, वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति सत्यवान को अपनी तपस्या के बल पर पुन: जीवित किया था। तब से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है।इस दिन विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं। वृक्ष की परिक्रमा करते समय इस पर 108 बार कच्चा सूत लपेटा जाता है और महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं।सावित्री की कथा सुनने से कहते है ,सुहागिनों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और पति के सारे संकट दूर होते हैं। एक कथा के अनुसार सावित्री, मद्रदेश में अश्वपति नाम के राजा की बेटी थी।विवाह योग्य होने पर सावित्री को वर खोजने के लिए कहा गया तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान का को पसंद किया।यह बात जब नारद जी को पता चली तो वे राजा अश्वपति से बोले कि सत्यवान अल्पायु हैं और एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह सच्चाई जानकर भी सावित्री सत्यवान से ही विवाह के लिए अड़ी रही। सावित्री के सत्यवान से विवाह के पश्चात सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में जुट गई। नारद जी ने मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन में चली गई।वन में सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढऩे लगा, उसके सिर में असहनीय दर्द शुरू हो गया।वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया। कुछ देर बाद सावित्री ने देखा यमराज अनेक दूतों के साथ वहां पहुंचे और वे सत्यवान के प्राणों को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए।
सावित्री को अपने पीछे आते हुए देख कर यमराज ने कहा, हे पतिपरायणे! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया।अब तुम लौट जाओ।सावित्री ने कहा, जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यह मेरा पत्नि धर्म है। यमराज ने सावित्री की धर्मपरायण वाणी सुनकर वर मांगने को कहा।सावित्री ने कहा, मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें।
यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा, किंतु सावित्री उसी प्रकार यमराज के पीछे चलती रही। यमराज ने उससे पुन: वर मांगने को कहा, सावित्री ने वर मांगा, मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए। यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे फिर से लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री नहीं मानी। सावित्री की पति भक्ति व निष्ठा देखकर यमराज भावुक हो गए। उन्होंने एक और वर मांगने के लिए कहा, तब सावित्री ने वर मांगा, मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें।
सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो, इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया और चले गए।सावित्री अब उसी वट वृक्ष के पास आई। वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हुआ और वह उठकर बैठ गया। सत्यवान के माता-पिता की आंखें ठीक हो गईं और उन्हें उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया।
सावित्री व्रत के दिन सूर्यग्रहण भी लग रहा है। हालांकि यह सूर्यग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इस कारण यहां पर इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा।इस पर्व को मनाने के लिए सुहागिन महिलाएं सुबह जल्दी उठें और स्नान करें। स्नान के बाद व्रत करने का संकल्प लें। शृंगार करें। इस दिन पीला सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। वट व्रक्ष के पास या वृक्ष की टहनी रखकर सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें। वट वृक्ष में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं। वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें। वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद हाथ में काले चना लेकर इस व्रत का कथा सुनें। कथा सुनने के बाद पंडित जी को दान देना न भूलें। दान में आप वस्त्र, पैसे और चने दें। अगले दिन व्रत को तोडऩे से पहले बरगद के वृक्ष का कोपल खाकर उपवास समाप्त करें।इस पर्व का महत्व प्रकृति से भी जुड़ा है।वृक्ष चूंकि हमे आक्सीजन देते है और प्राकृतिक संतुलन में वृक्षों का बहुत बड़ा योगदान है।तभी तो स्त्रियां इस पर्व पर वट की पूजा करती है।वट की आयु बहुत अधिक होती है।हर सुहागिन चाहती है कि उसके पति की उम्र भी वट वृक्ष की तरह अधिक हो,यही इस पर्व को मनाने का उद्देश्य भी है।