प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
तेहरान: ईरान के परमाणु खतरे को पूरी तरह खत्म होने का दावा नहीं किया जा सकता, हालांकि इजरायल और अमेरिका ने इसके खिलाफ महत्वपूर्ण सैन्य कार्रवाइयां की हैं। 12 दिन तक चली इजरायल-ईरान जंग (13 जून से 24 जून) में इजरायल और अमेरिका ने ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों नतांज, फोर्डो, इस्फहान, और अराक पर हमले किए। इन हमलों में बंकर बस्टर बम और सटीक हवाई हमलों का इस्तेमाल हुआ, जिससे इन साइटों को काफी नुकसान पहुंचा। IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के प्रमुख राफाएल ग्रॉसी ने कहा कि फोर्डो में 60% यूरेनियम संवर्धन स्थल पर गड्ढे दिखाई दिए, जो गहरे हमलों का संकेत देते हैं।
क्षतिग्रस्त साइटों तक पूरी पहुंच नहीं
हालांकि, ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ। ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था (AEOI) के प्रवक्ता बेहरोज कमालवंदी ने कहा, “हमारी परमाणु इंडस्ट्री की जड़ें गहरी हैं, और इसे खत्म नहीं किया जा सकता।” ईरान की संसदीय समिति ने यह भी फैसला लिया कि IAEA की निगरानी अब बंद की जाएगी, जिससे पारदर्शिता कम हो सकती है। इसलिए, हालांकि इजरायल और अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पीछे धकेला है, इसे पूरी तरह खत्म नहीं माना जा सकता। IAEA को अभी तक क्षतिग्रस्त साइटों तक पूरी पहुंच नहीं मिली है, जिससे नुकसान का सटीक आकलन मुश्किल है।
इजरायल और अमेरिका ने इस जंग से क्या हासिल किया ?
इजरायल ने ऑपरेशन “राइजिंग लॉयन” के तहत ईरान के परमाणु ठिकानों पर सटीक हमले किए, जिसमें नतांज, फोर्डो, इस्फहान, और अराक शामिल हैं। मैक्सार की सैटेलाइट तस्वीरों से अराक रिएक्टर के भारी नुकसान की पुष्टि हुई।
अमेरिका ने 23 जून को तीन प्रमुख परमाणु साइटों पर बमबारी की, जिसे व्हाइट हाउस ने “ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सालों पीछे धकेलने” वाला कदम बताया। ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिक और सैन्य कमांडर मारे गए, जिससे प्रोग्राम की तकनीकी और नेतृत्व क्षमता को झटका लगा।
सैन्य वर्चस्व का प्रदर्शन
इजरायल ने अपनी सैन्य और खुफिया क्षमता (IDF और मोसाद) का प्रदर्शन किया, यह साबित करते हुए कि वह ईरान के अंदर गहरे ठिकानों को निशाना बना सकता है। अमेरिका ने वैश्विक स्तर पर अपनी सैन्य ताकत दिखाई, खासकर बंकर बस्टर जैसे हथियारों के उपयोग से। यह संदेश दिया गया कि वह मध्य पूर्व में अपने हितों की रक्षा के लिए निर्णायक कार्रवाई कर सकता है।
इजरायल और अमेरिका के हमलों से ईरान क्षेत्रीय स्तर पर अकेला पड़ गया। सऊदी अरब, यूएई जैसे सुन्नी देशों को भी ईरान के परमाणु हथियारों से खतरा है, इसलिए उन्होंने मौखिक निंदा के बावजूद सक्रिय विरोध नहीं किया। ईरान के सहयोगी (जैसे हूती, हिजबुल्लाह) ने सीमित जवाबी कार्रवाई की, लेकिन पाकिस्तान, तुर्की, और रूस जैसे देश केवल निंदा तक सीमित रहे।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने घरेलू स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत की, जनता को यह दिखाकर कि उन्होंने ईरान के खतरे को कम किया। अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह ईरान के खिलाफ कठोर नीति अपना रहा है, जो उनके समर्थकों के बीच लोकप्रिय है।
क्या नहीं हासिल हुआ ?
ईरान का परमाणु कार्यक्रम अभी भी सक्रिय है, और उसकी जवाबी कार्रवाई (जैसे IAEA निगरानी बंद करना) से खतरा बढ़ सकता है। ईरान ने दावा किया कि “वह अपने परमाणु कार्यक्रम को फिर से तेज करेगा, जिससे भविष्य में तनाव बढ़ सकता है।”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी कि इन हमलों से मध्य पूर्व में व्यापक युद्ध का जोखिम बढ़ गया है। ईरान ने स्ट्रेट ऑफ होर्मुज बंद करने की धमकी दी, जिससे वैश्विक तेल आपूर्ति पर संकट मंडरा रहा है।
IAEA की जांच और कूटनीतिक प्रयास
ईरान के परमाणु ठिकानों को भारी क्षति पहुंची, 1000+ नागरिकों की मौत हुई, और सैन्य ढांचे को नुकसान हुआ। ईरान ने इजरायल पर 15 मिसाइलें दागीं और हाइपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया, लेकिन उसकी जवाबी कार्रवाई सीमित रही। अमेरिका ने आखिरी चरण में हस्तक्षेप किया, लेकिन ट्रंप ने शुरू में इसे इजरायल का फैसला बताया। 24 जून को ट्रंप ने 12 घंटे का पूर्ण युद्धविराम घोषित किया, लेकिन इसका स्थायित्व अनिश्चित है।
इजरायल और अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अस्थायी रूप से कमजोर किया और अपनी सैन्य ताकत दिखाई, लेकिन परमाणु खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। ईरान की जवाबी नीतियां और क्षेत्रीय तनाव भविष्य में और जटिलताएं पैदा कर सकते हैं। सीजफायर के बाद IAEA की जांच और कूटनीतिक प्रयास इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होंगे।