नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति जिसे FIR में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है, वह किसी आपराधिक मामले में किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध नहीं कर सकता है. न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति सी. टी रविकुमार की पीठ ने यूपीपीसीएल (UPPCL) भविष्य निधि निवेश घोटाले के संबंध में लखनऊ के हजरतगंज पुलिस थाने में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. इस मामले की जांच शुरुआत में उत्तर प्रदेश पुलिस ने की थी, लेकिन बाद में इसे सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया था.
पीठ ने कहा, ‘‘यह विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ताओं को उक्त अपराध में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है. यदि याचिकाकर्ताओं को उक्त अपराध में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है, तो उक्त अपराध से संबंधित कथित प्राथमिकी या मामले को रद्द करने का प्रश्न ही नहीं उठता.”पीठ ने अपने हाल के आदेश में कहा कि अदालत हुकुम चंद गर्ग और अन्य द्वारा मांगी गई राहत के अनुरोध की जांच करने का इरादा नहीं रखती है. पीठ ने कहा कि वे उचित उपाय का सहारा ले सकते हैं.
हालांकि, पीठ ने कहा कि सीबीआई के जांच अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले उन्हें 48 घंटे का अग्रिम नोटिस देंगे ताकि वे उचित उपाय का सहारा ले सकें. पीठ ने कहा कि इससे पहले एक मौके पर, अदालत ने गौर किया था कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ‘लुकआउट नोटिस’ जारी किया गया था. पीठ ने कहा, ‘‘अब यह स्पष्ट किया जाता है कि उक्त लुकआउट नोटिस उस समय अपराध की जांच कर रही स्थानीय पुलिस (उप्र पुलिस) द्वारा जारी किया गया था, जो नोटिस समय बीतने के साथ समाप्त हो गया है.” उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) भविष्य निधि निवेश घोटाले के संबंध में प्राथमिकी लखनऊ के हजरतगंज पुलिस थाने में दर्ज की गई थी और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा इसकी जांच की गई थी.
सीबीआई ने पांच मार्च, 2020 को इस मामले की जांच अपने हाथ में ली थी. इस मामले के नामित लोगों में उप्र पावर सेक्टर कर्मचारी ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता और यूपीपीसीएल के तत्कालीन निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी शामिल हैं. मुख्य आरोप यह थे कि कंपनी अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि और भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए भारी अवैध कमीशन अर्जित करने के लिए अवैध और दुर्भावनापूर्ण तरीके से निजी क्षेत्र की कंपनियों में पैसा निवेश किया गया था.