नई दिल्ली : बंगाल फिर ‘लहूलुहान’ है। बीते 8 दिनों में 5 लोगों की हत्या और 90 लोग घायल हो चुके हैं। बंगाल में राजनीतिक हिंसा कोई नई बात नहीं है। आलम यह है यहां हर चुनाव ‘खूनी’ हो जाता है। इस बार भी पंचायत चुनाव में नामांकन शुरू होने के साथ ही हिंसा भड़क उठी। हिंसा की 30 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। भाजपा और कांग्रेस इसके लिए सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। बंगाल में बवाल थमता नहीं दिखा तो कलकत्ता हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा। बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास बहुत पुराना है। आइए जानते हैं, आखिर क्यों बंगाल बार-बार हिंसा की आग में जलने लगता है?
राजनीतिक हिंसा की वजहें
चुनाव के दौरान हिंसा की मुख्य वजहें प्रभुत्व की लड़ाई और राजनीतिक जागरूकता है। बंगाल में हिंसा तब चरम पर होती है, जब सत्ताधारी पार्टी को कोई दल चुनौती देता है।
प्रभुत्व की लड़ाई
बंगाल में सत्ताधारी दलों के सामने जब-जब विपक्षी पार्टियों ने चुनौती पेश की है, तब-तब हिंसक घटनाएं बढ़ी है। 2009-11 में राजनीतिक हत्याओं के मामले बढ़े तो तृणमूल की सीटें बढ़ गई और सीपीएम सत्ता से बाहर चली गई। इसी तरह 2018-21 में राजनीतिक हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई। इस दौरान राज्य में बीजेपी की सीटों में इजाफा हुआ। लोकसभा में बीजेपी 1 से 18 और विधानसभा में 3 से 77 पर पहुंच गई।
राजनीतिक जागरूकता
इसके आलावा राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को जब यह लगने लगता है कि चुनाव में गड़बड़ी हो रही है, तो यह संघर्ष बढ़ जाता है। छिटपुट झड़प से शुरू हुए ये विवाद कई बार हिंसक घटनाओं में तब्दील हो जाते हैं।
साल 2021 की कूचबिहार की घटना तो सबको याद ही होगी, जब विधानसभा चुनाव के दौरान में कूचबिहार के सीतलकुची में तृणमूल और बीजेपी में झड़प हो गई थी। आरोप ये था कि मतदान ठीक से नहीं कराया जा रहा है। दोनों पार्टियों के बीच झड़प इतनी बढ़ी कि CISF को फायरिंग करना पड़ी। फायरिंग की इस घटना में 4 लोग मरे गए।
एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर उर्सुला डैक्सेकर और ओसलो पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के हैन फेजेल्डे ने हाल ही में बंगाल में राजनीतिक हिंसा पर अपनी 37 पेज की रिसर्च रिपोर्ट सार्वजानिक की।
सिंडिकेट भी एक बड़ी वजह
इस रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार एक और मुख्य वजह सिंडिकेट भी हैं। ये सिंडिकेट जमीनी स्तर पर काम करते हैं। इन्हीं सिंडिकेटों के जरिए राजनीतिक दल अपनी मजबूती बनाए रखते हैं। सिंडिकेट किसी भी तरह से अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं, खासतौर से चुनाव के समय। इस दौरान ये सिंडिकेट अपने वर्चस्व और सत्ता के लिए पूरी ताकत झोंक देते हैं।