पौड़ी ब्यूरो। ल्वाली झील का निर्माण बजट के अभाव में ठप है। आई.आई.टी के इंजीनियर्स ने झील की डिजाइन में बदलाव किया तो बजट बढ़कर लगभग दोगुना हो गया और अब पैसों की कमी की वजह से पिछले कई महीनों से झील के पुनरुत्थान का काम बंद पड़ा हुआ है। मामला उत्तराखंड के पौड़ी जिले के ल्वाली झील का है।
साल 2020 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पौड़ी के ल्वाली झील के पुनरुत्थान के काम का शिलान्यास किया था तब, आस पास के गांव वालों को लगा था कि शायद डबल इंजन की सरकार उनके किस्मत पर छाए काले बादलों को हटाकर उन्हें सुनहरा और चमचमाता भविष्य सौंपेगी। जिसमे घर तक साफ पीने का पानी होगा, खेतों में सिंचाई की सुविधा होगी और बाहर से झील को देखने आने वाले पर्यटक उनकी आमदनी बढ़ाएंगे। शुरुआत तो बहुत ही धमाकेदार हुई। 6 करोड़ 92 लाख 77 हजार के बजट से काम शुरू हुआ तो पुण्डोरी, तमलाग, चमल्याखाल और तमाम क्षेत्रीय गांव के लोगों को लगा कि जल्द ही उनका सपना हकीकत बन जाएगा। लेकिन समय बीतते बीतते उस हकीकत पर ग्रहण लग गया।
आई.आई.टी रुड़की की टीम ने इसकी शुरुआती योजना बनाई थी, उसी ने इसके डिजाइन में बदलाव कर दिया। हाल में दिल्ली निवासी अर्जुन सिंह को आर.टी.आई से मिले जवाब में बताया गया कि बजट बढ़कर अब 11 करोड़ 98 लाख 72 हजार हो गया, जो पहले बजट के मुकाबले लगभग दोगुना है। अब यह बजट प्रस्ताव सरकार के पास अनुमति के लिए पड़ा हुआ है। जानकारी में बताया गया है कि ल्वाली झील का निर्माण रोजगार को बड़ाने। पर्यटन को विकसित किये जाने। जल संरक्षण एवं संवर्द्धन। लघुडाल खण्ड श्रीनगर द्वारा 44 हेक्टेयर सिंचाई सिंचित क्षमता को निर्मित किये जाने और पेयजल आपूर्ति हेतु .15 एम.एल.डी का प्रयोग किया जा रहा है।
पौड़ी जिला प्रधान संगठन के अध्यक्ष कमल रावत का कहना है कि झील का काम रुकने से क्षेत्र का विकास रुक गया है। और लोगो में इसे लेकर उदासीनता है। उन्होंने कहा न तो अनुमति मिल रही है और न ही काम हो पा रहा है। इसकी वजह से लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर पहली योजना में खामी थी तो उसे बनाने वाले विशेषज्ञों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई। और अगर खामी नही थी तो डिजाइन में बदलाव क्यों हुआ ? क्योंकि काम रुकने से केवल इस झील से होने वाले फायदे ही नही रुके, बल्कि पुण्डोरी, तमलाग और चमल्याखाल गांव की अधिग्रहित भूमि भी उनके हाथ से चली गई? अब बड़ा सवाल ये है कि पौड़ी की खूबसूरत गगवाड़स्यू घाटी के लोगो के सपनों की फाइल पर आखिर सरकार कुंडली मारकर क्यों बैठी है और आखिर कब यह काम दोबारा शुरू होगा ?