कौशल किशोर | twitter @mrkkjha
नेशनल हेराल्ड और नवजीवन को अपनी सेवा से उन्नत करने वाले पत्रकार और लेखक दुखी हैं। खतरे में आजादी के नारे के साथ फिरंगियों से लोहा लेने में अव्वल रहे नेहरु की इस कीर्ति पर धन शोधन का आरोप प्रवर्तन निदेशालय में लंबित है। इस मामले में सुब्रमण्यम स्वामी के आरोप पर ई.डी. और न्यायालय के फैसले का देश इंतजार कर रहा है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि कभी हिन्दुस्तान टाइम्स को टक्कर देने वाले इस अखबार की आज क्या हैसियत है?
राहुल गांधी से सवाल जवाब करने में लगे अधिकारियों को संतुष्टि ही नहीं मिल रही है। सोनिया गांधी इस बीच सर गंगा राम हॉस्पिटल में स्वास्थ लाभ कर रही हैं। जुलाई में उन्हें भी जांच में शामिल होना है। पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर प्रर्दशन कर अपने नेता का पता बता रहे हैं। रक्षा मंत्रालय ने आनन फानन में अग्निपथ जैसी योजना शुरु कर इन कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मुश्किल कम करने का मसाला उपलब्ध करा दिया है।
आधुनिक भारत की राजनीति में समाचार पत्रों की भूमिका और नेताओं में छिपे पत्रकारों की कहानी किसी से छिपी नहीं है। महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरु जैसे राजनेता जिस युग में मिलते हैं, उसी जमाने में नवजीवन व नेशनल हेराल्ड जैसे पत्र भी मौजूद हैं। हेराल्ड प्रकाशित करने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने गांधीजी की अनुमति लेकर हिंदी में नवजीवन का प्रकाशन शुरु किया था। इसके अलावा उर्दू में कौमी आवाज के साथ मुख्यधारा के प्रेस को यह बीसवीं सदी में परिभाषित करती रही। आरंभिक संपादक के. रामाराव के अलावा चेलापति राव और खुशवंत सिंह जैसे संपादकों की इसमें अहम भूमिका रही थी। चेलापति राव संजय गांधी के लखनऊ पहुंचने पर स्वागत विज्ञापन छापने से मना कर सकते थे। इंदिरा व संजय गांधी की प्रशंसा को रद्दी की टोकरी के हवाले करना और आपातकाल के दौरान भी सरकार की तीखी आलोचना उनकी पहचान रही। नेहरु और इंदिरा इसमें छपी बातों को गंभीरता से लेते रहे। इमरजेंसी के बाद राव की अपमानजनक विदाई हुई और एजेएल ‘फोर्थ स्टेट’ के बदले रीयल एस्टेट कारोबार का केंद्र बन कर उभरने लगा। कांग्रेस सरकार की मदद से यह काम सहज सुलभ होता रहा।
नेशनल हेराल्ड के बंद होने की बात नई नहीं है। इसकी शुरुआत के तीन साल बाद ही यह क्रम शुरु हो गया था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान फिरंगियों ने इसे बंद किया। इसके बाद 1978 में फिर इसके बंद होने की खबर सुर्खियों में रही। यह सिलसिला 1999 और 2008 में दोहराता भी है। बहरहाल जारी मुकदमे के कारण एक बार फिर इसे जीवनदान मिला, जब 2016 में निलाभ किशोर के नेतृत्व में डिजिटल युग के अनुकूल प्रकाशन के साथ साप्ताहिक प्रकाशन शुरु किया गया। जफर आगा और मृणाल पांडे जैसे संपादक आजकल इससे जुड़े हैं। सड़क पर उतरे कांग्रेस नेताओं को बताना चाहिए कि क्या यह रचनात्मक प्रयास इसी मुकदमे का नतीजा नहीं है? आज शांतिपूर्वक इस मामले की सार्थक परिणति पर विचार करने की जरूरत है।
लखनऊ में सिविल कोर्ट द्वारा इसकी संपत्ति नीलम कर कामगारों को वेतन भत्ता 1998 में दिया गया था। फिर उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार निपटारा के बाद एक बार फिर 1999 में इसे बंद किया गया था। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने नेशनल हेराल्ड चलाने में असफल रहे नेहरु गांधी परिवार को आईना दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। खतरे में पड़ी आज़ादी की रक्षा करने वाली कांग्रेस और नेशनल हेराल्ड की यह दास्तान दोनों की बेहद दयनीय दशा बयां करती रहेगी। नवजीवन की आशा में कांग्रेस के नायक की नजरों में हनुमान बनने में लगे लोग संजीवनी की तलाश के क्रम में यहां अग्निपथ पर अग्रसर होते हैं। विवेक के क्षय से विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है।
एजेएल 1938 से ही हेराल्ड की प्रकाशक रही। 2010 में यंग इंडिया लिमिटेड नामक एक नई कंपनी में इसका विलय होता है। इस नॉट फॉर प्रॉफिट वेंचर में सोनिया और राहुल गांधी की हिस्सेदारी 76 फीसदी है। करोड़ो रुपए के कर्ज के कारण दो वर्ष पूर्व इनका प्रकाशन आखिरी बार बंद हुआ था। दसवीं लोक सभा चुनाव के दौरान अमेठी सीट पर प्रचार के लिए राजीव गांधी पहुंचे थे। एजेएल में पत्रकार भूख हड़ताल कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने इस मुद्दे पर भी बात किया था। चुनाव के बाद एक बार फिर नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज को नंबर वन बनाने की दिशा में काम करने के भरोसे पर धरना खत्म भी करवाते हैं।
सत्याग्रही पत्रकारों को दिए इस वचन को पूरा करने के बदले अग्निपथ पर बढ़ना राजनीतिक रोटियां सेंकने की नीति ही मानी जाएगी। कोटा स्कूल की फंडिंग से बिहार के विद्यार्थियों को उपद्रवी बनाने के बदले इस मोहब्बत का रुख नवजीवन की ओर करने से संजीवनी की प्राप्ति होगी। सोनिया और राहुल के युग में कांग्रेस पार्टी द्वारा 90 करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त कर्ज देकर क्या यही संदेश नहीं दिया गया था? इस काम से कभी नेहरु और गांधी के मुखपत्र रहे प्रतिष्ठान का ही पुनरुद्धार होगा।
प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ का कारण भले ही राजनीतिक विद्वेष बताया जा रहा है। परंतु सभी जानते हैं कि यह मुकदमा मनमोहन सिंह के कार्यकाल से ही चल रहा है। समाचार पत्र के प्रकाशन से भिन्न इसमें अचल सम्पत्ति के कारण धन शोधन का आरोप है। इस मामले में नेहरु गांधी परिवार के करीबी वरिष्ठ पत्रकार करण थापर के विश्लेषण के बाद कुछ और कहने की जरूरत नहीं रहती है। संभव है कि पिछली बार की तरह ही विवेचना के उपरांत फिर से इसे बंद कर दिया जाय। परंतु ऐसा होने से क्या राजीव गांधी का सत्याग्रहियों को दिया वचन पूरा होगा? इस सवाल से मुंह फेरने पर नेहरु गांधी परिवार और कांग्रेस की स्थिति की कल्पना असंभव नहीं रहती है।
ईश्वर करे कि सोनिया गांधी शीघ्र स्वस्थ हों। सत्याग्रह करने वाले नेशनल हेराल्ड के पत्रकारों से राजीव गांधी का वादा पूरा करने के लिए। और ईडी को शेष बचे सवालों का जवाब देने। ऐसा करने से न केवल कांग्रेस को संजीवनी मिलेगी, बल्कि नेहरु और गांधी द्वारा सिंचित भारतीय लोकतंत्र को भी मजबूती ही मिलेगी। इस मामले में अर्थ दंड का निर्णय हो। साथ ही यह भी संभव है कि जैसे 2011 की फरवरी में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने विदेशों में जमा धन के मामले में नेहरु गांधी परिवार को लिख कर खेद जताया था, इस बार भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी को खेद प्रकट करना पड़े। आज अग्निपथ पर नवजीवन की मृग मरीचिका में उलझे नौजवानों को अहिंसक विरोध प्रदर्शन की नीति भी सिखाने की जरूरत है। इन सूत्रों को साध कर ही नवजीवन की संकल्प सिद्धि होती है। हिटलर की मौत मरने की दुआएं देकर अपनी ही जड़ों में मट्ठा डालने के बदले चुनौतियों को स्वीकार कर उन्नत मार्ग पर बढ़ना चाहिए।