भोपाल,31 जुलाई (आरएनएस)। जिला पंचायत चुनाव में भाजपा को मिली सफलता से जाहिर हुआ कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ग्रामीण क्षेत्र में लोकप्रियता का तोड़ कां्रेस के पास नहीं है। जिला पंचायत की 51 में से 41 यीटें जीतकर भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्र में एक तरफा दबदबा जाहिर किया हे। यदि फग्गन सिंह कुलस्ते, ओम प्रकाश धुर्वे जैसे नेता परिवारवाद नहीं चलाते तो भाजपा को चार जिला पंचायतों में और लाभ हो सकता था। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में मिली जीत से जाहिर हुआ कि जनपद अध्यखों के मामले में कमलनाथ द्वारा किए गए तमाम दावे खोखले थे। सनद रहे कमलनाथ ने 313 में से 167 जनपद अध्यक्ष कांग्रेस के दोने का दावा किया था। जिला पंचायत के अध्यक्षों के चुनाव ने कांग्रेस के इस दावे की पोल खेाल दी क्योंकि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जनपद और जिला पंचायत की सीटों में इतना अंतर नहीं हो सकता है। भाजपा ने कल फिर 277 जनपद पंचायत जीतने का दावा किया है। पंचायत चुनाव के साथ ही भाजपा ने छोटे और मझले शहरों में भी अपना परचम लहराया है। नगर निगम के चुनाव में जरुर उसे 16 में से सात नगर निगमों में पराजय मिली है। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव से जाहिर हुआ है कि शिव विष्णु की जोड़ी का जवाब कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी नहीं दे पा रही है। भाजपा को इन दोनों चुनावों में डबल इंजन की सरकार यानी इन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिला। ग्रामीण क्षेत्र में इन योजनाओं के कारण जो लाभार्थी वोट बैंक बना उसका लाभ भाजपा ने जमकर उठाया। लाभार्थी वोट बैंक के कारण एंटी इनकम्बेंसी दब कर रह गई। इन चुनाव की सफलता से पार्टी के लिए 2023 की राह आसान हो गई है। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव की जीत को यदि विधानसभा सीटों में परिवर्तित कर िदया जाए तो भाजपा की सफलता करीब 180 विधानसभा सीटों पर होती है। प्रदेश में दो तिहाई से अधिक जनता ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में जिस पार्टी का दबदबा होता है सरकार उसी की बनती है।
पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में मिली जीत के बावजूद भाजपा संगठन को अनेक मोर्चों पर काम करना होगा। पार्टी की सबसे बड़ी खामी तो यह नजर आई कि जिला स्तर पर भाजपा में भयंकर गुुटबाजी है। गुटबाजी के कारण पार्टी ने नगर निगमों मेु नुकसान उठाया है। इसके अलावा मतदान केंद्र की व्यवस्था को भी फिर से चाक चौबंद करने की आवश्यकता है। विधायकों और सांसदों को भी अपने कामकाज में सुधार लाना होगा और कार्यकर्ताओं की बात सुनना होगी। विधायक गण जिस तरह से संगठन की उपेखा कर रहे हैं उससे कार्यकर्ताओं में निराशा है। कार्यकर्ताओं के उदासीनता के कारण ही पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में मतदान का प्रतिशत गिरा है। कम मतदान के कारण भाजपा को ग्वालियर और रीवा में निर्णायक नुकसान उठाना पड़ा। इसलिए भाजपा के संगठन पुरुषों को कई स्तरों पर काम करना होगा। सबसे खास बात यह है कि भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चोहान पर निर्भर होती जा रही है। जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्षों के निर्वाचन में भी मुख्यमंत्री ने लगातार दो दिनों तक देर रात तक काम किया।
मुख्यमंत्री निवास भाजपा का कंट्रोल यम बना हुआ था जहां विष्णु दत्त शर्मा और संगठन महामंत्री हितांनद लगातार आवाजाही करते रहे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता यह साबित करती है कि कहीं न कहीं भाजपा संगठन कमजोर है। कमजोर साबित हुए नाथ और दिग्विजय – पंचायतों और नगरीय निकाय चुनाव की जीत से एक बार फिर यह साबित हुआ कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की जोड़ी का मुकाबला प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की जोड़ी नहीं कर पा रही है। कमलनाथ ने पंचायत चुनाव में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं ली। दिग्विजय सिंह ने जिला पंचायत की सीटों पर अपने समर्थकों का ख्याल रखा। नगरीय निकाय चुनाव में दिग्विजय सिंह पूरी तरह से भोपाल और गुना, राजगढ़ तक सिमट कर रह गए। कमलनाथ ने पहले चरण में कम दिलचस्पी ली लेकिन दूसरे चरण में उन्होंने जोश दिखाया। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के परिणामों का असर मिशन 2023 पर पड़ेगा। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में सफलता से भाजपा के लिए 2023 की राह आसान हो गई है। पार्टी के कार्यकर्ता अब ऊंचे मनोबल के साथ काम करेंगे, क्योंकि पंच, सरपंच, जनपद प्रतिनिधि, जिला प्रतिनिधि और पार्षद के रूप में हजारों कार्यक्र्ता स्थानीय सत्ता में भागीदार हो गए हैं। जिसका लाभ पार्टी को संगठन मजबूत करने में मिलेगा। दूसरी ओर कांग्रेस का मनोबल निश्चित रूप से प्रभावित होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में एंटी इनकमबेंसी का अधिक असर नहीं देखा गया। जो थोड़ी बहुत एंटी इनकमबेंसी थी उसे पार्टी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता के बूते पर असानी से निस्तेज कर दिया।
अनिल पुरोहित/अशफाक