प्रकाश मेहरा
भारतीय राजनीति ने फिर सिद्ध कर दिया कि यहां कुछ भी असंभव नहीं। अनेक विधायकों की उम्र बीत जाती है मुख्यमंत्री पद का इंतजार करते, पर र राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर एक ऐसा संदेश दिया है, जिसका असर पार्टी में निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक एक खुशखबरी की तरह पहुंचेगा। ऐसे फैसले कम होते हैं, पर जब होते हैं, तब लोकतंत्र और उसकी जमीनी राजनीति के प्रति आम लोगों का भरोसा बढ़ता है। यह भी गौर करने की बात है कि राजस्थान की राजनीति में अब पीढ़ी परिवर्तन का बिगुल बज गया है।
राजस्थान की कमान साल 1998 से ही अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे बारी- बारी संभालते आ रहे थे। अशोक गहलोत हठ के साथ तीन बार मुख्यमंत्री रहे, मगर वसुंधरा राजे को तीसरी बार से पहले मना लिया गया। हालांकि, राजस्थान की राजनीति में पूर्व-रजवाड़ों के अनुकूल रहने वाले समाज को निराश नहीं किया गया है। जहां पूर्व राजघराने से ताल्लुक रखने वाली दीया कुमारी को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया है, वहीं दलित नेता प्रेम चंद बैरवा भी उप-मुख्यमंत्री बनाए गए हैं।
वास्तव में, भाजपा ने इस बार जितने अध्ययन और चिंतन से अपने प्रादेशिक चेहरों का चयन किया है, वह एक मिसाल है। राजस्थान की ही बात करें, तो ब्राह्मण मुख्यमंत्री,राजपूत और दलित, दो उप- मुख्यमंत्री, साथ ही, सिंधी समाज से आने वाले वरिष्ठ नेता वासुदेव देवनानी को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। यह सामाजिक समीकरण के अनुरूप कुशल राजनीतिक अभियांत्रिकी है, जिसका अभ्यास सभी पार्टियों को करना चाहिए। ठीक यही अभियांत्रिकी मध्य प्रदेश में दिखी है, जहां मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर उत्तर प्रदेश और बिहार को भी संदेश दिया गया है। लगभग 32 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाकर जो राजनीतिक व्यूह रचना हुई है, उसका लाभ भाजपा को आगामी चुनावों में मिल सकता है। भाजपा को इन राज्यों में साफ तौर पर पता है कि वोटों के मामले में कांग्रेस उससे ज्यादा पीछे नहीं है। अतः वह इन तीनों राज्यों की सभी 65 लोकसभा सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाकर चल रही है। कांग्रेस और उसके इंडिया ब्लॉक को चुनाव जीतने के लिए भाजपा की राजनीतिक अभियांत्रिकी का तोड़ खोजना होगा। विपक्ष हमेशा की तरह सत्ता पक्ष में दरार पर निगाह लगाएगा, अतः भाजपा के लिए भी जरूरी है कि वह नए नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए पुराने कद्दावर नेताओं में कमतरी का एहसास न पैदा होने दे। इसलिए कहा जाता है, राजनीति अंदर और बाहर से निरंतर सेवा खोजती है।
छत्तीसगढ़ हो या मध्य प्रदेश या राजस्थान, तीनों ही जगह दिल्ली से गए भाजपा के पर्यवेक्षक नेताओं ने जो बेहतरीन काम किया है, उसकी प्रशंसा होनी चाहिए, पर शासन-प्रशासन और आगे राजनीति तय करने के लिए ये कुशल नेता रायपुर, भोपाल, जयपुर में नहीं रहेंगे। शासन- प्रशासन की जिम्मेदारी विष्णु देव, मोहन यादव और भजनलाल शर्मा को ही निभानी पड़ेगी। जैसी कवायद से ये तीनों मुख्यमंत्री बने हैं, वैसी ही कवायद के साथ उन्हें आगे भी बढ़ना चाहिए। ध्यान रखना होगा कि कई बार जमीन से उठे अच्छे नेता भी नौकरशाही के साये में जाकर चमक गंवा देते हैं। हिंदी पट्टी के इन राज्यों के नेतृत्व से यही उम्मीद रहेगी कि इन राज्यों में विकास की लकीरें तेजी से लंबी हों।