प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: पांच राज्यों में हुई विधानसभा चुनाव में भाजपा और मजबूत होकर उभरी है जहां आगे के लिए भाजपा की राह आसान है वहीं विपक्षी दलों की राह में मुश्किलें बढ़ गई है ऐसी जीत हार के मायने क्या है क्या सोच रहे हैं लोग ? और किसको दे रहे हैं समर्थन ? पेश है विशेष संवाददाता प्रकाश मेहरा की कलम से एक आंकलन ।।
जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए उनमें से तीन में भाजपा की बड़ी जीत कई महत्वपूर्ण संदेश देती है। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात, मोदी मैजिक अब भी काम कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुनियोजित चुनाव अभियान ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
चुनावी नतीजे इस धारणा को भी मजबूत करते हैं कि कांग्रेस हिंदी पट्टी के राज्यों में भाजपा से मुकाबला करने में असमर्थ है, क्योंकि भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में कांग्रेस तीनों राज्यों में चुनाव हार गई। हालांकि, दक्षिणी राज्यों में उसकी मौजूदगी अभी भी बनी हुई है। पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में भी कांग्रेस बुरी तरह हारी है।
ये नतीजे भारतीय चुनावों में महिला वोटों के बढ़ते महत्व का भी संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को दिए अपने संबोधन में इसका बार-बार उल्लेख किया है। महिलाओं के योगदान को स्वीकारा है। यह जनादेश मतदाताओं को एकजुट करने की पार्टी की रणनीति में कल्याणकारी योजनाओं के बढ़ते महत्व का भी संकेत देता है। हालांकि, तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की हार यह चेतावनी देती है कि केवल योजनाओं से चुनाव नहीं जीता जा सकता। योजनाएं केवल सोने पर सुहागा हो सकती हैं। मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए अन्य बहुत से कार्य करना और सबसे महत्वपूर्ण रूप से मतदाताओं का विश्वास जीतना सबसे जरूरी है।
क्या केंद्र सरकार से संतुष्ट?
मोदी फैक्टर के तहत केंद्र सरकार के प्रति उच्च स्तर की संतुष्टि ने भी वोटों को भाजपा के पक्ष में झुका दिया। मध्य प्रदेश में 67 प्रतिशत मतदाता केंद्र सरकार से संतुष्ट थे, राजस्थान में 79 प्रतिशत मतदाता केंद्र सरकार के काम से संतुष्ट थे, जबकि छत्तीसगढ़ में 80 प्रतिशत लोग केंद्र सरकार द्वारा किए गए काम से खुश थे।
ऐसा नहीं है कि भाजपा के अन्य नेताओं ने प्रचार नहीं किया, उनमें से कई ने अपने राज्य के नेताओं के साथ आक्रामक रूप से प्रचार किया, पर भाजपा का अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति इतना केंद्रित था कि भाजपा यहां तक पहुंच गई कि ‘एमपी के मन में मोदी’ है। यह स्पष्ट रूप से भाजपा के बा चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी की केंद्रीयता का चि संकेत है। लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए स पोस्ट पोल सर्वेक्षणों के साक्ष्य यह भी बताते हैं कि भाजपा को वोट देने वालों में से लगभग 20 प्रतिशत क ने केवल नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिए हैं।
क्या घाटे में रही कांग्रेस?
याद कीजिए, 2018 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत ने 2019 में भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करने की उम्मीद जगाई थी, पर इन तीन राज्यों में ही नहीं, कई अन्य राज्यों में भी भाजपा की प्रचंड जीत हुए हुई थी और कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया स था। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद हुए राज चुनावों में कांग्रेस हारती रही, लेकिन हिमाचल प्रदेश क और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली जीत ने मक उत्तर भारतीय हिंदी पट्टी के राज्यों में कांग्रेस के छन् पुनर्जीवित होने की उम्मीद फिर से बढ़ा दी थी। इस कि बीच मध्य प्रदेश में कांग्रेस में उलटफेर हुआ। कांग्रेस यह ने भाजपा पर मध्य प्रदेश में उसकी सरकार चुराने लो का आरोप भी लगाया। साथ ही बढ़ती कीमतों और बढ़ती बेरोजगारी के बारे में लोगों की नाखुशी और चिंता के चलते भी कांग्रेस के पुनरुत्थान की संभावना थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
खैर, हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस की हार का मतलब – उत्तर भारत से कांग्रेस का सफाया हो गया है। उत्तर भारतीय राज्यों में कांग्रेस केवल हिमाचल प्रदेश की सत्ता में रह गई है। इसके अलावा वह झारखंड और बिहार की गठबंधन सरकारों में छोटे सहयोगी के रूप में शामिल है।
मतदाता चिंतित हैं, लेकिन…
पिछले कुछ वर्षों के दौरान जिन राज्यों में चुनाव हुए, उनमें लोकनीति-सीएसडीएस पोस्ट पोल सर्वेक्षण से स्पष्ट संकेत मिलता है कि विभिन्न राज्यों में 70-80 प्रतिशत मतदाता बढ़ती कीमतों को लेकर चिंतित हैं और लगभग 60-70 प्रतिशत मतदाता बढ़ती बेरोजगारी को लेकर चिंतित हैं। छत्तीसगढ़ में 76 प्रतिशत मतदाताओं का मानना है कि कीमतें बढ़ी हैं, मध्य प्रदेश में 80 प्रतिशत का यही मानना है, जबकि राजस्थान में 72 प्रतिशत लोग ऐसा मानते हैं।
राजस्थान में 40 प्रतिशत लोगों का मानना है कि बेरोजगारी बढ़ी है, मध्य प्रदेश में 44 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 40 प्रतिशत लोग मानते हैं कि बेरोजगारी बढ़ी है। इसके बावजूद कुछ राज्यों (हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक) को छोड़कर अधिकांश राज्यों में भाजपा फिर से चुनी गई, लेकिन बढ़ती बेरोजगारी और बढ़ती कीमतों के इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता। उम्मीद थी कि कांग्रेस इन चुनावों में इसे मुद्दा बनाने में कामयाब रहेगी और मतदाता इन मुद्दों पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए मतदान करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सत्ता विरोधी लहर नहीं
पहले इस बारे में विरोधाभासी राय थी कि मध्य प्रदेश में चुनावी फैसला क्या हो सकता है। खासकर भाजपा के मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 18 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा था। भाजपा द्वारा कुछ केंद्रीय मंत्रियों समेत करीब 10 सांसदों को मध्य प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से उम्मीदवार बनाए जाने के अलग-अलग मायने लगाए जा रहे थे, जिसका एक कारण सत्ता विरोधी माहौल भी था।
इसी अक्तूबर के अंत में लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए प्री-पोल सर्वेक्षण से पता चला कि कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है, क्योंकि 63 प्रतिशत मतदाताओं ने शिवराज सिंह चौहान सरकार द्वारा किए गए काम को पसंद किया और शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता रेटिंग 39 प्रतिशत रही, जबकि कमलनाथ की लोकप्रियता 32 प्रतिशत पर थी। चुनाव बाद सर्वेक्षण से यह भी संकेत मिला था कि चुनाव प्रचार के शुरुआती दिनों में पार्टी द्वारा कुछ हद तक दरकिनार किए जाने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान लोकप्रिय बने रहेंगे।
महिलाओं का समर्थन
कुछ ऐसे मजबूत कारक हैं, जिन्होंने शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में योगदान दिया। जैसे महिला मतदाताओं के बीच उनकी व्यापक लोकप्रियता काफी हद तक बहुचर्चित लाडली बहना योजना के कारण थी।
दरअसल, इन तीनों राज्यों में भाजपा की जीत में महिला मतदाताओं का बड़ा योगदान रहा है। राजस्थान में महिलाओं का मतदान पुरुषों के बराबर 74 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 76 प्रतिशत मतलब पुरुषों की तुलना में दो प्रतिशत कम, छत्तीसगढ़ में 78 प्रतिशत मतलब पुरुषों की तुलना में तीन प्रतिशत अधिक और तेलंगाना में महिलाओं का मतदान 72 प्रतिशत मतलब पुरुषों से एक! प्रतिशत अधिक रहा है। महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया है। न केवल महिलाएं बड़ी संख्या में सामने आईं, बल्कि उन्होंने पुरुष मतदाताओं की तुलना में थोड़ी-बड़ी संख्या में (4- 6 प्रतिशत के बीच) भाजपा को वोट दिया, जिससे भाजपा को तीन राज्यों में कांग्रेस पर निर्णायक बढ़त हासिल करने में मदद मिली।
जन योजनाओं की भूमिका
एक और महत्वपूर्ण बिंदु जो जनादेश से उभर कर सामने आया है, वह यह है कि चुनाव में जनकल्याण योजनाएं पहले की तुलना में अब अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन केवल योजनाएं पार्टी को चुनाव नहीं जिता सकतीं, पार्टी को चुनाव जीतने के लिए और भी कुछ करने की जरूरत पड़ती है। मध्य प्रदेश में भाजपा की बड़ी जीत का श्रेय काफी हद तक लाडली बहना योजना को दिया जाता है, पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार और तेलंगाना में बीआरएस सरकार की समान रूप से लोकप्रिय योजनाएं थीं, लेकिन फिर भी कांग्रेस छत्तीसगढ़ और राजस्थान, दोनों में चुनाव हार गई और तेलंगाना में बीआरएस हार गई।
केसीआर सरकार की रायथुबंधु योजना, गहलोत सरकार की शहरी गारंटी और चिरंजीव योजनाएं और भूपेश बघेल सरकार की राजीव गांधी भूमि किसान न्याय योजना, मुख्यमंत्री हाट बाजार योजना अपने-अपने राज्यों में लोकप्रिय थीं, लेकिन ये तीनों सरकारें चुनाव हार गईं। योजनाओं के शुभारंभ से कहीं अधिक महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में योजनाओं के माध्यम से लोगों को वास्तविक लाभ दिए जाने की तुलना में लोगों को प्रधानमंत्री द्वारा किए गए वादों पर अधिक भरोसा है। इसी तरह, तेलंगाना में मतदाताओं को बीआरएस सरकार की योजनाओं से मिलने वाले लाभों की तुलना में कांग्रेस के वादों पर अधिक भरोसा है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मतदाताओं का विश्वास कांग्रेस सरकार के वादे से ज्यादा भाजपा के वादे पर था और यही कारण है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर मोदी की गारंटी मतलब गारंटी की गारंटी’ का उल्लेख करते हैं।