अयोध्या : अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुए कई दिन हो चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी तमाम लोग इस प्रक्रिया के बारे में जानने के लिए बेहद उत्सुक है. सोशल मीडिया से लेकर गूगल पर लोग प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े तमाम सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं. बड़ी संख्या में लोग यह जानना चाहते हैं कि क्या देवी-देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान उसके सामने रखा शीशा टूट जाता है. अगर ऐसा होता है, तो इसकी वजह क्या है. ज्योतिषाचार्य की मानें तो प्राण प्रतिष्ठा होने तक भगवान की मूर्ति की आंखों को पट्टी से ढका जाता है और फिर कई दिनों तक वैदिक मंत्रोच्चारण होता है. इसकी वजह से मूर्ति में दैवीय ऊर्जा आ जाती है और आंखें खुलने पर उस ऊर्जा से शीशा टूट जाता है.
यूपी के कासगंज के तीर्थक्षेत्र सोरों के ज्योतिषाचार्य डॉ. गौरव दीक्षित के मुताबिक भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की पूरी विधि होती है और कई दिनों तक पूजा-पाठ व वैदिक मंत्रोच्चारण किया जाता है. कई जगहों पर प्राण प्रतिष्ठा के अंतिम चरण में एक शीशा मूर्ति की आंखों के सामने रखा जाता है, जो प्राण प्रतिष्ठा संपन्न होने के बाद दैवीय ऊर्जा से टूट जाता है. शास्त्रों की मानें तो मूर्ति की आंखों को प्राण प्रतिष्ठा तक पट्टी से ढक दिया जाता है और करीब एक सप्ताह तक पूजा-पाठ और मंत्रोच्चारण किया जाता है. पूरे विधि विधान से पूजा करते हैं, तो मूर्ति के अंदर विशिष्ट ऊर्जा आ जाती है. शीशा रखने की प्रक्रिया प्राण प्रतिष्ठा का आखिरी चरण है. प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद जैसे ही मूर्ति की आंखों से पट्टी हटाई जाती है, वैसे ही मूर्ति से विशिष्ट ऊर्जा निकलती है. यह ऊर्जा इतनी तेज होती है कि उसके सामने रखा शीशा टूट जाता है.
ज्योतिषाचार्य की मानें तो शास्त्रों में इस प्रक्रिया को चक्षु उन्मीलन कहा जाता है. वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ प्राण प्रतिष्ठा होने से मूर्ति में विशिष्ट ऊर्जा का संचार होता है और प्राण प्रतिष्ठा संपन्न होने तक भगवान के चरणों की ओर देखना चाहिए. इसके बाद ही भगवान के शरीर और चेहरे को देखना चाहिए. कई जगहों पर प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मूर्ति के सामने शीशा रखा जाता है, जबकि कई जगहों पर ऐसा नहीं किया जाता है. इसे लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. प्राण प्रतिष्ठा कराने के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण कराना बहुत जरूरी होता है. इसके बिना यह प्रक्रिया अधूरी मानी जा सकती है. प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति जीवंत हो जाती है और प्राण प्रतिष्ठा के बाद की मूर्ति की झलक देखने लायक होती है.