गीता में भगवान ने विभूति योग का वर्णन करते हुए बताया है कि जहाँ कहीं विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं, वहाँ मेरा विशेष अंश देखा, समझा जाना चाहिए। सर्व साधारण को जो विशेषताएँ, विभूतियाँ नहीं मिली हैं और वे यदि कुछ ही लोगों को मिलती हैं, तो यही माना जायेगा कि यह विशुद्ध अमानत है और उन्हें अपने परम प्रिय उद्यान को सुरम्य, सुविकसित बनाने के लिए ही दिया है। यदि विशेष अनुदान को अपने पूर्व कृत पुण्यों के कारण उपलब्ध प्रारब्ध माना जाए, तो भी उसका प्रयोजन यही है कि हर जन्म में उस प्रक्रिया को अधिकाधिक प्रखर किया जाय और अधिक पुण्य करते हुए, अधिक उत्तम प्रतिफल प्राप्त करते हुए उस प्रगति चक्र को तीव्र किया जाय और जीवन लक्ष्य तक जल्दी से जल्दी पहुँचा जाए।
यह सन्देश हर विभूतिवान व्यक्ति तक पहुँचाना युग निर्माण योजना का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। आग लगने पर फायर ब्रिगेड यूनिटों से अधिकाधिक तत्परता से काम करने की आशा की जाती है। यदि वे उपेक्षा बरतें तो उनकी भर्त्सना भी कठोरतापूर्वक की जाती है। जहाँ विभूतियाँ संग्रहीत हैं, वहाँ युग की पुकार पहुँचाई जा रही है कि उन विभूतियों के अधिकाधिक मात्रा में लोक-मंगल के लिए समर्पित करने का ठीक यही समय है। कहना न होगा कि भावनात्मक नवनिर्माण से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ सत्प्रयोजन हो नहीं सकता।
ईश्वर प्रदत्त यह पाँच विभूतियाँ हैं। भावना, विद्या, प्रतिभा, सम्पत्ति और कला। यह जहाँ भी हैं, जिनके पास भी हैं, उसे अनुभव करना चाहिए कि भगवान की कुछ अतिरिक्त कलाएँ, अतिरिक्त अनुकम्पाएँ उसे उपलब्ध हैं। इसमें उसे अपना सौभाग्य और भगवान का विशेष अनुग्रह मानना चाहिए कि जो सर्वसाधारण को नहीं मिला वह उन्हें विशेष अमानत और विशेष अनुग्रह के रूप में मिला है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य