नई दिल्ली: रंगमंच के सफर में चलते रहना आसान कार्य नहीं है. आप गरीब परिवार से आते हैं. साधारण परिवार से आते हैं या फिर अमीर परिवार से आते हैं. तब भी बहुत कठिन है. थोड़े समय के लिए आप रंगमंच कर सकते हैं लेकिन लंबे समय तक अगर आपको रंगमंच में जीना पड़े तो अपने आप में एक बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है. जो लोग रंगमंच से प्रेम करते हैं या फिर रंगमंच उन्हें अपने प्रेम में सराबोर कर देता है तो उससे बाहर आना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन बाहर आने की ज़रूरत तब पड़ती है. जब आप धन नहीं कमाते हैं. यही मुख्य कारण है कि बहुत सारे रंगकर्मो ना चाहते हुए भी अपना रास्ता बदल लेते हैं. क्योंकि धन संसार का एक ऐसा सत्य है. जिसे झुठलाया नहीं जा सकता. आम जरूरत के लिए आपको धन तो चाहिए ही, परिवार भी एक समय तक आपका साथ दे सकता है लेकिन परिवार भी क्या ही करें लेकिन रंगमंच में धन की बात करें तो इसका बहुत ही अभाव है. रंगमंच से जुड़े चंद लोगों को या चंद्र ग्रुप को छोड़ दें तो बाकी तो यहां धन की कमी ही कमी है. जो बिना धन के रंगमंच कर रहे हैं. उनकी जितनी सराहना की जाए कम है. लेकिन इसके बावजूद भी चंद रंगकर्मी बरसों से शिद्दत के साथ रंगमंच करते नजर आते हैं. जिनके हौसले जैसे पहले दिन थे. बरसों बाद भी उतने ही बुलंद है. प्रेम के कारण उनमें से एक नाम है गजराज नागर का.
1985 में शुरू हुआ सफर
गजराज नागर 1985 से लगातार रंगमंच करते आ रहे हैं. गजराज नागर 1985 में पहली बार अभिकल्प थियेटर से जुड़े. जिसकी बागडोर जानेमाने निर्देशक गुलशन कुमार जी के हाथों में थी. उसके पश्चात 1986 में हीरा आर्टस थिएटर ग्रुप से जुड़े. इसके संस्थापक और निर्देशित थे. इन्होंने अजय मनचंदा के हीरा आर्टस थिएटर ग्रुप में रहकर रंगमंच से जुड़ी बहुत सारी बारीकियों को समझा सीखा, वहां पर रहकर वो रंगमंच के पीछे रह कर ही कार्य करते रहे.
अभिनय यात्रा
रंगमंच के पीछे कार्य करते-करते उन्होंने डॉ गोविंद चातक द्वारा लिखित नाटक बांसुरी बजती रही में एक छोटे से किरदार से अपने अभिनय की यात्रा आरंभ की. बांसुरी बस्ती रही नाटक गुजरात की एक लोक कथा पर आधारित था. जो की एक ट्रेजडी भरी प्रेम कथा है. बांसुरी बजती रही नाटक का नायक बीजू बहुत ही सीधा सच्चा और सरल हृदय का युवक है. जोकि बहुत ही मधुर बांसुरी बजाता है. वह वेद्या भाट के यहां घर नौकरी लग जाता है. नौकरी करते-करते वेद्या की लड़की श्रेणी और बीजू में प्रेम हो जाता है. जब इस बात का पता पिता को चलता है तो वह बीजू के सामने एक बेहद कठिन शर्त रखता है कि अगर वह शर्त पूरी कर दे तो वह अपनी बेटी से उसका विवाह कर सकता है. बीजू शर्त तो पूरी कर देता लेकिन जब वह शर्त पूरी करके लौटता है तो देर हो चुकी होती है. उसके पश्चात रेवतीशरण शर्मा द्वारा लिखित नाटक अंधेरे का बेटा में भी इन्होंने एक छोटा सा किरदार और फिर यह लगातार नाटकों में अभिनय का सिलसिला चलता रहता है.
1989 में गजराज नगर ने वाई एम सी ए थिएटर वर्कशॉप ज्वाइन कर ली. वहां पर जाने माने नाटक लेखक बादल सरकार द्वारा लिखित नाटक बड़ी बुआ जी, चार्ल्स डिकेंस द्वारा लिखित नोवल पर आधारित नाटक ए क्रिसमस कैरोल जिसका निर्देशन अशोक पुरंग जी ने किया. धीरेंद्र अस्थाना की कहानी दंगा 89 पर आधारित नाटक में भी अभिनय किया. जिसका निर्देशन आज के जाने माने फिल्म अभिनेता मनोज बाजपेई ने किया जो उस समय वाई एम सी ए थिएटर वर्कशॉप का हिस्सा थे. इस वर्कशॉप के हेड निर्देशक थे अशोक पुरंग जी. जोकि आज के जाने-माने अभिनय प्रशिक्षक, रंगमंच निर्देशक और फिल्मों के प्रोड्यूसर है. अनुभव सिन्हा भी उसे वर्कशॉप के हिस्सा थे जो कि आज के जाने-माने फिल्म निर्देशक हैं और भी तमाम लोग थे जो आज के जाने-माने चेहरे हैं. बादल सरकार द्वारा लिखित नाटक बाकी इतिहास जिसके निर्देशक थे. केके जॉर्ज फीड्स द्वारा लिखित नाटक द लेडी फ्रॉम मैक्सिम जिसका निर्देशन बैरी जॉन ने किया था और हिंदी में एडेप्टेशन चंपा चमेली के नाम से जे एन कौशल ने की थी. डॉ धर्मवीर भारती द्वारा लिखित नाटक अंधा युग, भीष्म साहनी द्वारा लिखित हानूश, अलबेर कामू द्वारा लिखित कालिगुला, डॉ गिरीश कर्नाड द्वारा लिखित तुगलक, अजय शुक्ला द्वारा लिखित ताजमहल का टेंडर, डॉ सुरेंद्र वर्मा द्वारा लिखित सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य पहली किरण तक जैसे अनेकों नाटक में अभिनय किया.
गजराज नागर 1989 से लेकर 1991 वाई एम सी ए के थिएटर ग्रुप से जुड़े रहे. अशोक पुरंग जी के सानिध्य में थिएटर करते रहे. उसी दौरान अशोक पुरंग जी ने प्रिय्रोट्स ट्रुप थिएटर ग्रुप की स्थापना की. गजराज नागर उसके संस्थापक सदस्य में से थे. उन्हें सचिव का कार्यभार दिया गया. यह उस समय का एक जाना माना थिएटर ग्रुप है. जिसका कार्यभार अब डॉ सईद आलम के कंधों पर हैं.
अभिनय प्रशिक्षण
गजराज नागर कई थिएटर ग्रुपस के साथ तो जुड़े ही रहे . उसके साथ-साथ उन्होंने श्री राम सेंटर फोर परफॉर्मिंग आर्ट से उनका 1991 में अभिनय प्रशिक्षण के लिए सलेक्शन हुआ. वहां से उन्होंने अभिनय प्रशिक्षण किया. 1993 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से तकनीकी वर्कशॉप की. 1993 में ही नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ़ इंडिया एंड सिनेमाया से फिल्म एप्रिसिएशन कोर्स किया. उसके पश्चात 1994 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से फुल टाइम समर थिएटर वर्कशॉप की जो अभिनय को समर्पित थी. वह एक तरह से उस समय की राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की निर्देशक कीर्ति जैन के समय में हुई. वह वर्कशॉप तीन साल के कोर्स की तरह से कैप्सूल कोर्स थी.
साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ाव
गजराज नागर युवा कवि प्रकाश मंच जैसी साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे. उन्हीं के द्वारा एक पाक्षिक पत्र युगप्रस्थ भारती में संपादक के पद पर रहे. उसमें नाटकों और फिल्मों पर समीक्षाएं भी लिखी. उन्होंने अनगिनत नाटकों में अभिनय और निर्देशन किया. लेखन किया, रंगमंच कार्यशालाओं का आयोजन किया. सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों, झुग्गी झोपड़ियों में, सरकारी–प्राइवेट स्कूलों इत्यादि में और लगातार थिएटर वर्कशॉप करते आ रहे है. गजराज नागर ने 1996 में रास थियेटर ग्रुप का गठन किया. जिसका उद्देश्य नेशनल इंटरनेशल लेखकों के नाटकों का मंचन करना. थिएटर वर्कशॉप का आयोजन करना.
नुक्कड़ नाटकों का मंचन
गजराज नागर ने विभिन्न संस्थाओं के लिए नुक्कड़ नाटकों का मंचन भी किया. नुक्कड़ नाटकों में लेखन अभिनय और निर्देशन भी किया. भारत सरकार की संस्था सॉन्ग एंड ड्रामा डिवीज़न के लिए भी नुक्कड़ नाटकों का मंचन किया.
बतौर निर्देशक
गजराज नागर ने अनेकों नाटकों का निर्देशन भी किया. सूर्य की अंतिम कारण से सूर्य की पहली किरण तक, ऑथेलो, ताजमहल का टेंडर, गधे की बारात, लिओ टॉलस्टॉय की कहानी व्हाट मेन लिव बाय पर आधारित द लास्ट लाफ्टर आदि.
नाट्य लेखन
गजराज नागर कई नाटकों का लेखन किया. उनके कुछ नाटक समय रचित है. उनके कुछ नाटक कहानियों पर आधारित है. द लास्ट लास्ट लाफटर लियो टॉलस्टॉय की कहानी व्हाट मैन लीव बाय पर आधारित है. बिहार जंक्शन हरिशंकर परसाई की कहानी हम बिहार में चुनाव लड़ रहे पर आधारित है. मंत्र मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित है. फूल शूल, बाय सुदामा, मैं तेरे शहर में आदि नाटक है.
रेडियो धारावाहिकों में लेखन निर्देशन एवं अभिनय
गजराज नागर ने बहुत सारे रेडियो धारावाहिकों में अभिनय भी किया है. निर्देशन भी किया है. लेखन भी क्या है. जिनमें से प्रमुख है- राजवधू, चरित्रहीत, भारत का सिरमौर, परमवीर चक्र, कोयला, मणिपुर की लोक कथाएं, मंजिल की तलाश, वरदान आदि. गजराज नागर 1985 से लगातार बहुत ही खामोशी से रंगमंच के क्षेत्र में अपनी भूमिका निरंतर निभाते आ रहे हैं.