नई दिल्ली l कोविड-19 महामारी के दौरान सिविल सेवा मेन्स परीक्षा में शामिल नहीं हो सके उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर कर परिक्षा देने के लिए अतिरिक्त प्रयास की मांग रखी है, जिसका केंद्र सरकार द्वारा विरोध किया जा रहा है। सरकार का तर्क है कि इस याचिका को स्वीकार करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस तरह की मांगे देश भर में कराई गई अन्य परिक्षाओं को लेकर भी उठ सकती हैं।
केंद्र ने अपने बयान में कहा है कि इस तरह की याचिकाएं अन्य उम्मीदवारों की संभावनाओं को भी प्रभावित करेगी। जो मौजूदा प्रावधानों के अनुसार परिक्षा के पात्र हैं। क्योंकि इससे उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि होगी और इससे पूरे देश में आयोजित अन्य परीक्षाओं के उम्मीदवारों द्वारा भी इसी तरह की मांग उठाए जाने की आशंका रहेगी।
केंद्र ने बताया है कि कुछ श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए छूट के साथ सिविल सेवा परीक्षा के लिए मौजूदा आयु मानदंड 21 से 32 वर्ष है। कुछ श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए छूट के साथ प्रयासों की अनुमेय संख्या भी छह है। इस तरह मौजूदा नियम उम्मीदवारों को उचित अवसर प्रदान करते हैं। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने कहा है कि यदि आयोग पुन: परीक्षा का प्रावधान करता है, तो इसका अन्य चल रही परीक्षाओं के कार्यक्रम पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
मामले में यूपीएससी ने साफ किया है कि इस तरह की याचिकाओं को समायोजित करने से अराजक स्थिति पैदा होने की आशंका है। ऐसे में कोई भी परीक्षा समय पर पूरी नहीं हो सकेगी। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में, यूपीएससी ने अतिरिक्त प्रयास की मांग वाली याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इस तरह की मांग के कोई मायने नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट में यूपीएससी के पक्ष का विरोध करते हुए, याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वर्ष 2014 में, यूपीएससी ने उन उम्मीदवारों के लिए अतिरिक्त प्रयास बढ़ाए थे जो यूपीएससी द्वारा सिविल सेवा मुख्य परीक्षा, 2013 के पैटर्न और पाठ्यक्रम में अचानक हुए बदलाव से परेशान थे। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि कोविड -19 के कारण वो अपना अंतिम प्रयास में शामिल नहीं हो पाए थे। जिसके चलते वो प्रतिपूरक प्रयास के हकदार हैं।