एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। उन्होंने कहा है कि यह शिव सेना का आंतरिक संकट है और उसे ही निपटाना चाहिए। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि महाविकास अघाड़ी में कोई समस्या नहीं है। इसके कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। एक तो यह है कि उन्हें कोई परवाह नहीं है कि शिव सेना टूट जाए या सरकार गिर जाए। दूसरा अर्थ यह है कि वे सरकार नहीं गिरने को लेकर भरोसे में हैं। लेकिन जानकार नेताओं का कहना है कि शरद पवार की तटस्थता अनायास नहीं है। उनको पहले से संकट के बारे में पता था और उन्होंने उद्धव ठाकरे को आगाह भी किया था लेकिन सवाल है कि जब संकट गंभीर हो रहा था तो उन्होंने उसे काबू करने का प्रयास क्यों नहीं किया?
महाराष्ट्र में चाहे किसी पार्टी का नेता हो वह शरद पवार की अनदेखी नहीं कर सकता है। एकनाथ शिंदे तो महाविकास अघाड़ी सरकार में शामिल थे, जिसका अघोषित रूप से समन्वय का काम शरद पवार ही कर रहे थे। इसलिए संकट के बारे में जानने के बावजूद उनका चुप रहना सवाल खड़े करता है। संकट पैदा हो जाने के बाद भी वे इसे सुलझाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं, इससे भी शिव सेना और कांग्रेस के नेता हैरान हैं। सरकार पर आए संकट को शिव सेना का आंतरिक संकट बता कर वे कैसे पल्ला झाड़ सकते हैं? ध्यान रहे महाराष्ट्र में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडऩवीस की शपथ शरद पवार की पार्टी के समर्थन से ही हुई थी। उसके बाद फडऩवीस की दूसरी शपथ शरद पवार के भतीजे अजित पवार के समर्थन से हुई। क्या तीसरी शपथ पवार परिवार के परोक्ष समर्थन से होगी?