प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। कनाडा सरकार की नीतियों की साफ शब्दों में निंदा होनी चाहिए और भारत सरकार ने सोमवार को कनाडा के उप-उच्चायुक्त को बुलाकर ऐसा ही किया था। अब बुधवार को कनाडा के प्रधानमंत्री का एक ऐसा साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है, जिससे दोनों देशों के संबंधों में कटुता बढ़ने के कारक साफ नजर आ रहे हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो अपनी स्थानीय सियासत को तात्कालिक रूप से मजबूत त रखने के लिए खालिस्तान के समर्थन में खड़े हो गए हैं। खालिस्तान का विचार कतई नया नहीं है, पर उसकी अव्यावहारिकता अनेक बार उजागर हो चुकी है। स्वयं सिख समुदाय में बहुमत इस विचार से सहमत नहीं है और परदेश में जा बसे, वहां की नागरिकता ले चुके चंद अलगाववादियों को संतुष्ट रखने के लिए टूडो ने जो बयान दिए हैं, वे सोचने पर मजबूर करते हैं। एक संभावना यह है कि कनाडा की स्थानीय राजनीति की मजबूरी समझने हुए वहां के प्रधानमंत्री की बात को गंभीरता से न लिया जाए, पर क्या इससे चंद अलगाववादियों के मानसिक दुराग्रह का समाधान हो जाएगा?
धार्मिक आधार पर भूगोल बदलने की कल्पना !
अव्वल तो कनाडा के प्रधानमंत्री टूडो ऐसे किसी अलगाववादी कार्यक्रम में गए ही क्यों थे, जहां भारत विरोधी नारे लग रहे थे? क्या भारत में धर्मों की पृष्ठभूमि या इतिहास का उन्होंने अध्ययन किया है? कनाडा सरकार के सलाहकारों के ज्ञान पर तरस आता है। ये कैसे लोग हैं, जो आज की दुनिया में भी धार्मिक आधार पर भूगोल बदलने की कल्पना कर पा रहे हैं? ये कैसे देश हैं, जिनका मजहबी विभाजनों से अभी भी जी नहीं भरा है? एक अलगाववादी आतंकी निज्जर की हत्या का टूडो के लिए इतना बड़ा मामला है कि वह भारत के साथ संबंधों में इसे एक समस्या मान रहे हैं। आज आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है, पर कनाडा जहां खड़ा है, वह जमीन नीचे से खोखली है।
सियासी भावुकता में टूडो ?
शायद सियासी भावुकता में टूडो ने यहां तक कह दिया कि खालिस्तान का समर्थन यदि शांतिपूर्ण ढंग से किया जाता है, तो ओटावा द्वारा रोका नहीं जाएगा। कनाडा के नेता को बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि अलगाववाद और मजहबी हिंसा की कितनी भारी कीमत अनेक बार भारतवर्ष की माटी ने चुकाई है। क्या ट्र्डो ने उस पंजाब की ओर एक नजर भी देखा है, जो आज पाकिस्तान के हिस्से में है? जहां गुरु नानकदेव जी का जन्म हुआ था, क्या उस धरती के बारे में कोई वाकई चिंतित है? पहली नजर में यही लगता है कि कनाडा की वर्तमान सरकार अलगावादियों के बहकावे में आ गई है।
लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता !
आज के समय में दुनिया की किसी भी सरकार को सांप्रदायिकता के आधार पर नहीं सोचना चाहिए। पंजाब ही नहीं, कश्मीर में भी अलगाववादियों का समर्थन करते हुए पाकिस्तान किस स्थिति तक पहुंच गया है, यह जरूर देखना चाहिए। हिंसक तत्वों की घातक सियासत को समझदार लोग लोकतांत्रिक रूप से ठिकाने लगाएं, तो ज्यादा बेहतर है। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिंसा व अलगाववाद को बढ़ावा देने के नतीजे हमेशा घातक ही सिद्ध हुए हैं। भारतीय राजनय के लिए यह जरूरी है कि वह कनाडा ही नहीं, कुछ अन्य देशों में भी फैल रहे भारत विरोध के पटाक्षेप के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम करे। भारत अपने बंटवारे और अलगाववाद से आगे लोकतांत्रिक उदारता की ओर बढ़ चुका है. अब उसके लिए विविधता में एकता ही जीत का एकमात्र फॉर्मूला है।
देखिए पूरी रिपोर्ट एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा के साथ !