प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को लेकर दो खबरें शुक्रवार को चर्चा में थीं। देश के दो अलग-अलग हिस्सों से आने वाली ये खबरें बताती हैं कि आर्थिक अपराध को रोकने के लिए बनी यह संस्था किस तरह से राजनीतिक विवादों में फंस रही है। पहली खबर तमिलनाडु की है, जहां ईडी ने दो गरीब किसानों के खिलाफ धन शोधन का मामला दर्ज करा दिया और उनके खिलाफ सम्मन भी जारी कर दिया। वह भी उस मामले में, जिसमें अदालत का फैसला दोनों भाइयों के पक्ष में आ चुका था। हालांकि, यह बात छह महीने पुरानी है, लेकिन अब जब कुछ लोगों ने इस मामले को सोशल मीडिया पर शेयर किया, तो हंगामा हो गया।
इंडी ने अब अपनी गलती स्वीकार कर यह मामला वापस ले लिया है। इस बीच यह भी कहा गया कि ईडी ने राजनीतिक कारणों से दोनों भाइयों को फंसाया था। पुलिस द्वारा ऐसी ज्यादतियों के किस्से कभी-कभार सुनने को मिलते रहते हैं, मगर किसी विशिष्ट काम के लिए बनाई गई संस्था को लेकर ऐसी बात सामने आती है, तो निश्चित तौर पर संस्था के काम-काज का तरीका बदलने की जरूरत है।
राजनीतिक कारणों से कार्यवाही
राजनीतिक कारणों से कार्रवाई करने के आरोप ईडी के लिए नए नहीं हैं, बल्कि आजकल तो जैसे ही वह किसी मामले की जांच शुरू करती है, तुरंत ही आरोप लगने शुरू हो जाते हैं कि यह काम राजनीतिक चदले की भावना से किया जा रहा है। ऐसी संस्था कैसे निष्पक्ष दिखाई दे और उसे लेकर ज्यादा विवाद् न हों, इस पर पूरे देश को गंभीरता से कुछ सोचना और करना चाहिए, लेकिन इसे लेकर पश्चिम बंगाल में जो हुआ, वह उसका तरीका नहीं है, वह आपत्तिजनक और आपराधिक तो संदेशखली नामक स्थान पर राशन घोटाले की जांच के क्रम में छापा मारने पहुंची, तो भीड़ ने पहले उसके अधिकारियों का घेराव किया और फिर उन पर हमला किया गया। जिस गाड़ी में वे जा रहे थे, उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया। हमलावर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के नेता शेख सजहान के समर्थक बताए जा रहे हैं। ईडी की टीम उन्हीं के घर पर छापा मारने जा रही थी। पश्चिम बंगाल के लिए यह नई बात नहीं है, वहां ऐसे मामलों में भी राजनीति सड़कों पर की जाती है, जो अक्सर हिंसक भी हो जाती है।
ईडी को लेकर राजनीति
ईडी को लेकर राजनीति करने के आरोप अनेक जगहों पर लगाए गए हैं, लेकिन बंगाल जैसे दुखद व शर्मनाक दृश्य कहीं और देखने को नहीं मिले हैं। बहुत से मामले ऐसे हो सकते है, जिनको लेकर इंडी पर राजनीतिक कारणों से कार्रवाई करने के आरोप लगे हों। अभी कुछ ही महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी ईडी के काम करने के तरीके पर सख्त टिप्पणियां की थीं। सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि ईडी की कामयाबी की दर काफी कम है। पिछली जुलाई में संसद में सरकार ने बताया था कि ईडी ने अभी तक कुल 5,422 मामले दर्ज किए हैं, जिनमें से सिर्फ 23 मामलों में लोगों को सजा मिल पाई है। यानी इस संस्था की कामयाबी की दर आधा फीसदी से भी कम है।
इंडी पर ईडी का प्रभाव
जाहिर है, इंडी को ज्यादा प्रभावी और निष्पक्ष दिखने वाला संगठन बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है, लेकिन पश्चिम बंगाल में जो हआ है, वह नितांत आपत्तिजनक है। देश के सभी राजनीतिक दलों को इस घटना की निंदा करनी चाहिए। ईडी की केवल आलोचना करने से काम नहीं चलेगा। दोतरफा सुधार के लिए काम करना होगा, ताकि ईडी के प्रति विश्वास और सम्मान में बढ़ोतरी हो।
एक ऐसी सर्वोच्च जांच संस्था कैसे निष्पक्ष दिखाई दे और उसे लेकर ज्यादा विवाद न हों, इस पर गंभीरता से खैर है ही। इंडी की टीम राज्य के कुछ सोचना और कारगर कदम उठाना चाहिए – प्रकाश मेहरा