कौशल किशोर | twitter @mrkkjha
बाढ़ में डूब चुके धान के खेत में बेहोश हुए किसान की तस्वीर एक प्रतिष्ठित अमरीकी अखबार के अंतरराष्ट्रीय संस्करण में बीते दिनों मुखपृष्ठ पर छपी थी। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट भी मिलती है। पूर्वोत्तर के कई इलाकों से बाढ़ की खबरें पिछले दो महीने से बराबर आ रही है। पिछले महीने इसकी चपेट में न्यू हफलोंग रेलवे स्टेशन की तबाही की छवि मीडिया रिपोर्ट में थी। यह असम के दीमा हसाओ जिले की खूबसूरती बढ़ाने वाला हिल स्टेशन पूरब का स्विट्जरलैंड माना जाता है। दो हजार से ज्यादा रेलयात्रियों वाली ट्रेन की तबाही का दृश्य देखकर रुह कांपती है। आपदा राहत कर्मियों द्वारा सौ से ज्यादा यात्रियों को एयर लिफ्ट कर सिलचर तक पहुंचाया गया था। बाढ़ की पहली लहर से ही भारत और बांग्लादेश के गुवाहाटी, सिलचर और सिलहट जैसे क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन सेवा के जवानों की खूब सक्रियता दिखती है। जल प्रलय की वजह से दस करोड़ लोग मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
शुक्रवार, 17 जून को मेघालय के सोहरा (चेरापूंजी) और मौसिनराम में अधिकतम बारिश का रिकॉर्ड अपने नाम करने की होड़ लग गई। बादलों की घनी छांव में बसे मौसिनराम में चौबीस घंटे में ही 1003.6 मिलीमीटर बारिश दर्ज किया गया। साथ ही चेरापूंजी में 972 मिलीमीटर वर्षा हुई। नीचे उतरने पर यह जलराशि बांग्लादेश के सिलहट में तबाही का मंजर पेश करती है। इन दिनों बांग्लादेश के सिलहट, मैमनसिंह, रंगपुर और राजशाही जैसे क्षेत्र में भयानक तबाही मची है। पूर्वोत्तर में असम, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में भी बाढ़ का तांडव रुद्र रूप धारण किए है। इस संकट से उबरना आसान नहीं है।
बाढ़ का जायजा लेने पहुंचे मंत्रीजी मकान और झोपड़ी के निशान पानी की सतह पर देख आंसू बहा रहे हैं। ट्रेन पानी में बह गए हैं। कहीं ट्रैक के नीचे से जमीन ही खिसक गई है। मोबाइल के टावर से लेकर बिजली और फोन के टूटे खंभे संचार सेवाएं ध्वस्त करती हैं। जड़ से उखड़ चुके वृक्ष पानी में तैर रहे हैं। कहीं नदी नालों पर बने पुल का कोई पता नहीं हैं। असम में आज पचास लाख लोग इसकी जद में फंसे हैं। अस्सी लोग जान भी गंवा चुके हैं। घर से बेघर हुए ढाई लाख लोगों के लिए सैकड़ों राहत कैंप और वितरण केन्द्र बनाए गए हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान आकंठ डूबा हुआ है। इसके कारण जैवविविधता के लिए भी विकराल संकट की स्थिति बनी है। ब्रह्मपुत्र, बराक और खुशियारा जैसी नदियां उफान पर हैं। भूटान ने कुरिचू नदी पर बने बांध का पानी छोड़ दिया। नतीजतन असम के बारपेटा में कोहराम मचा है।
यह समस्या बांग्लादेश और भारत तक ही सीमित नहीं है। चीन के दक्षिण पूर्वी राज्यों में भीषण बारिश और बाढ़ से लाखों लोगों के लिए समस्या खड़ी हुई है। पिछले साल एटॉमिक रेडिएशन व पिछले माह कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से सुर्खियों में रहे चीन की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य गुआंगदोंग आज बाढ़ से परेशान है। इसके साथ ही पर्ल नदी की घाटी में बसने वाले जियांग्शी, गुआंग्शी, फुजियान, और हुनान जैसे राज्यों को भी बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। इन दिनों बाढ़ में डूबे इन सभी क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करने वाले अवयवों में समानता गजब की रही।
सागर से उठने वाला मॉनसून लंबी दूरी तय कर हिमालय से टकराती है। इसके कारण ही आकाश गंगा बूंदों में उतरकर भारतवर्ष को परिभाषित करती है। बरसात का यही क्रम जलवायु का चक्र है। एशिया के एक विशाल भूभाग को समेटते हुए यह बादल कई देशों की राजनीतिक सीमाओं को पार करता है। कंचनजंघा की चोटी और बंगाल की खाड़ी पर एक नज़र डालने से स्पष्ट है कि इस बीच मॉनसून न्यूनतम दूरी तय कर बरस सकती है। पूर्वोत्तर में प्रचूर जलराशि होने की यह एक अहम वजह है। तिब्बत से अरूणाचल प्रदेश होते हुए ब्रह्मपुत्र नदी असम पहुंचती है। बांग्लादेश पहुंचने तक यह असम को दो हिस्सों में बांट देती है। इस क्रम में यह माजुली नामक दुनिया की सबसे बड़ी नदी द्वीप भी गढ़ती है। सरकार हजारों करोड़ रुपए की लागत से आज ब्रह्मपुत्र तट पर 1300 किलोमीटर लंबी सड़क बना कर इस बाढ़ के नियंत्रण की बात करती है। हालांकि इसके कारगर होने की गारंटी नहीं है।
मार्ग में खड़े अवरोधों के कारण पानी आगे नही बढ़ रहा है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा इसकी समीक्षा कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन टीम की सेवा सुनिश्चित करते हैं। सप्लाई चेन दुरुस्त करने के लिए मेघालय के नेता कोनार्ड संगमा से संपर्क साधते हैं। साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति का संकट दूर करने के क्रम में असम को अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बनाने की बात कहते हैं। लोक सेवा के इस आधुनिक विचार के सामने आदिम जनजातियों की पुरानी रीति नीति पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने जल के मार्ग में व्यवधान खड़ा करना पाप माना। नतीजतन जल स्रोतों को जलमग्न करने का चक्र खूब घूमता रहा। इस क्रम में कुदरत धरती का विस्तार भी करती रही। जल के इस चक्र को आधुनिक तकनीकी बदलने का काम करती है। इस समस्या का समाधान करने से वास्तव में यह राज्य देश दुनिया की राजनीति का नया केंद्र बनेगा। निकट भविष्य में दुनिया भर के राजनेता जैवविविधता और जलवायु जैसे गंभीर मुद्दे पर विचार विमर्श के लिए चीन में जमा हो रहे हैं। इस अवसर का लाभ लेना चाहिए।
इस मॉनसून के लौटने में अभी दो महीने शेष हैं। बड़ी आबादी का घर से लेकर खेत खलिहान तक बाढ़ की भेंट चढ़ चुका है।इन जलमग्न इलाकों में मेघदूत कहर ढाना जारी रहने की संभावना है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में बाढ़ हर साल का व्यापार हो गया है। किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार चौमासा पूरा कर ही यह पानी नीचे उतरने वाला है। इसका स्थाई समाधान जरुरी है। इसके अभाव में जल प्रलय का संकट और विकराल होता रहेगा।