विवेक तिवारी
नई दिल्ली। अगले कई दिनों तक उत्तराखंड और तराई वाले इलाकों में भीषण बारिश का दौर जारी रहेगा। हिमाचल के भी कुछ इलाकों के लिए मौसम विभाग ने रेड अलर्ट जारी किया है। हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों जैसे रोहतांग और लाहौल स्पीति में बर्फबारी हो रही है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक बारिश के पैटर्न में इस तरह के बदलाव के पीछे क्लाइमेट चेंज की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक साथ तीन सिस्टम बनने के कारण हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और आसपास के इलाकों में भीषण बारिश दर्ज की गई।
पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉपिकल मेट्रोलॉजी के निदेशक डॉ. आर. कृष्णन कहते हैं कि दिल्ली सहित पहाड़ों में हो रही भीषण बारिश के पीछे क्लाइमेट चेंज की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि अगर एक डिग्री तापमान बढ़ता है तो वाष्पित होने वाले पानी की मात्रा 7 फीसदी तक बढ़ जाती है। ज्यादा वाष्प ऊपर जा कर संघनित होता है तो अचानक, और तेज बारिश दर्ज की जाती है। आने वाले दिनों में भी पहाड़ों में भारी बारिश या बादल फटने जैसी घटनाएं देखी जा सकती हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते मानसून के मौसम में बनने वाले सर्कुलेशन के पैटर्न में भी कुछ बदलाव देखे जा रहे हैं। इन बदलावों पर शोध किए जाने की जरूरत है। वहीं हमें इस बात पर भी अध्ययन करना होगा कि उत्तर और दक्षिण ध्रुवों सहित आर्टिक रीजन में बढ़ रही गर्मी का मानसून पर किस तरह से असर होगा।
मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि सामान्य तौर पर बारिश के मौसम में पश्चिमी विक्षोभ काफी ऊंचाई से निकल जाते हैं, जिसका मौसम पर असर नहीं होता है। लेकिन इस बार पश्चिमी विक्षोभ की ऊंचाई काफी कम थी। जिसके प्रभाव के चलते पहाड़ों में ऊंचाई वाले हिस्सों में बर्फबारी और भारी बारिश देखने को मिली। कुछ सालों पहले तक मानसून के मौसम में बादलों की एक चादर सी देखी जाती थी। जिससे एक बड़े इलाके में रिमझिम बारिश होती थी। कई बार इस तरह की बारिश कई दिनों तक चलती थी। लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते देखा जा रहा है कि बादल के छोटे-छोटे टुकड़े किसी भी हिस्से में अचानक से काफी ज्यादा बारिश कर देते हैं। कभी कई दिनों तक बारिश ही नहीं होती है।
मौसम वैज्ञानिक कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं, तीन सिस्टम एक साथ बनने की वजह से हिमाचल, दिल्ली और आसपास के इलाकों में भारी बारिश देखी गई। एक तो पश्चिमी विक्षोभ काफी नीचे से गुजर रहा है। मानसून रेखा भी गंगा के तराई वाले इलाकों से होकर गुजर रही है। वहीं एक कम दबाव का क्षेत्र बना जिससे अरब सागर से काफी आर्द्रता आई। इन तीन कारणों से तेज बारिश देखी गई। अगले तीन दिन उत्तराखंड के कई हिस्सों और हिमालय के तराई वाले इलाकों में अच्छी बारिश दर्ज की जाएगी। हिमाचल और उत्तराखंड के कई इलाकों के लिए रेड अलर्ट भी जारी किया गया है। जम्मू कश्मीर के ऊंचाई वाले इलाकों में हल्की बर्फबारी देखी जा सकती है।
जलवायु परिवर्तन के चलते पहाड़ों में बढ़ेगी मुश्किल
जलवायु परिवर्तन के चलते पहाड़ों में रहने वाले लोगों की मुश्किलें आने वाले दिनों में बढ़ सकती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में बढ़ोतरी से पहाड़ों में तेज बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड की घटनाएं तेजी से बढेंगी। नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया है कि एक डिग्री तक तापमान बढ़ने से पहाड़ों में होने वाली बारिश लगभग 15 फीसदी बढ़ जाएगी। इस गर्मी के बढ़ने से एक तरफ पहाड़ों में होने वाली बर्फबारी में कमी आएगी वहीं ग्लेशियर गलने की रफ्तार भी बढ़ जाएगी। मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता की ओर से किए गए अध्ययन में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में आने वाले बदलाव से उत्तरी गोलार्ध के पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी से लेकर बारिश तक में बदलाव हो सकता है, जिससे बारिश की चरम सीमा कुछ घंटों से लेकर एक दिन तक बढ़ सकती है।
इस शोध के प्रमुख अध्ययनकर्ता मोहम्मद ओमबादी कहते हैं कि दुनिया की आबादी का एक चौथाई हिस्सा पहाड़ी क्षेत्रों में या नीचे की ओर रहता है। पहाड़ों में बढ़ने वाली बारिश का असर इन लोगों पर सीधे तौर पर पड़ेगा। इन्हें बादल फटने या फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएं ज्यादा देखने को मिलेंगी। इस अध्ययन में उत्तर अमेरिकी प्रशांत पर्वत श्रृंखला (कैस्केड, सिएरा नेवादा और कनाडा से दक्षिणी कैलिफोर्निया तक की तटीय श्रृंखला) और हिमालय सहित उच्च अक्षांश क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इन क्षेत्रों के 1950 से लेकर 2019 तक के डेटा के आधार पर ये स्टडी की गई है। लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी, बर्कले और मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 1950 से 2019 के बीच के आंकड़ों के लिए यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट्स एटमॉस्फियरिक रीएनालिसिस (ईआरए 527) का उपयोग किया। वहीं कंप्यूटर मॉडल के जरिए किए गए अध्ययन के आधार पर ये पता चलता है कि आने वाले दिनों में तापमान बढ़ने के साथ ही पहाड़ों पर होने वाली बारिश में बढ़ोतरी होगी। ऐतिहासिक रिकॉर्ड (1950 से 2019) डेटासेट को जलवायु मॉडल अनुमान (2024 से 2100) के साथ जोड़कर, शोधकर्ताओं ने अवधि और डेटासेट दोनों में वर्षा की चरम सीमा में वृद्धि होने का पता लगाया।
बदल रहा है बारिश का पैटर्न
मौसम विज्ञान महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र ने हाल ही में कहा कि 1901 से अब तक के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद ये परिणाम सामने आए हैं कि बारिश के पैटर्न में बदलाव आया हैं। ये देखा गया है कि सौराष्ट्र, कच्छ और राजस्थान जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अब अधिक वर्षा हो रही है। असम, मेघालय, बिहार और झारखंड जैसे कभी उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में अब कम वर्षा हो रही है। इस बदलाव का बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है।
क्यों भर जाता है दिल्ली में पानी
दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम 1957 में तब तैयार किया गया था, जब यहां की आबादी महज 30 लाख थी। आज यह आबादी बढ़कर 2 करोड़ से अधिक पहुंच गई है। दिल्ली का ड्रेजेन सिस्टम 50 मिलीमीटर तक की बारिश के लिए डिजाइन किया गया है। 8 से 9 जुलाई के बीच 153 मिलीमीटर बारिश होने के चलते शहर के कई हिस्सों में पानी भर गया। सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर सतीश चंद्र कहते हैं कि दिल्ली में पानी भरने की सबसे बड़ी वजह ड्रेनेज सिस्टम की क्षमता का कम होना है। किसी भी सड़क को बनाने के साथ ही उसके अगल बगल कच्ची जमीन छोड़ी जाती है जिससे पानी रिस कर जमीन में चला जाता है। दिल्ली में ऐसी जगहों को भी कंकरीट कर दिया गया है। ऐसे में पानी जमीन में नहीं जा पाता और लम्बे समय तक सड़क पर बना रहता है। फरीदाबाद मेट्रोपॉलिटेंड डेवलपमेंट एथारिटी के चीफ टाउन प्लानर सुधीर सिंह चौहान कहते हैं कि दिल्ली में ड्रेनेज सिस्टम की क्षमता काफी कम है। हर साल बारिश के मौसम में चिन्हित जगहों पर ही पानी भरता है फिर भी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। इसपर ध्यान देने की जरूरत है। दिल्ली में नालों की सफाई की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी भी किए जाने की जरूरत है। गौरतलब है कि गुरुग्राम में जो डवलपमेंट हुआ है उसमें सरकार, प्राइवेट सेक्टर और अवैध बिल्डर्स की भूमिका है। वहीं नोएडा और ग्रेटर नोएडा को पूरी तरह से सरकार ने विकसित किया है। जबकि दिल्ली में ज्यादातर हिस्सा अवैध कॉलोनियों का है। ऐसे में दिल्ली में थोड़ी बारिश से ही मुश्किल हो जाती है जबकि नोएडा में सड़कों पर ज्यादा देर तक पानी नहीं टिकता।