बिक्रम उपाध्याय
गोवा में 4 और 5 मई के एससीओ के विदेश मंत्रियों के दो दिवसीय सम्मेलन में भारत ने अपना रूख और एजेंडा ना सिर्फ साफ किया, बल्कि उस पर सभी सदस्य देशों की सहमति भी प्राप्त की, जिस पर जुलाई में दिल्ली में एससीओ देशों के प्रमुख समझौते को अंतिम रूप देंगे। चीन के साथ सीमा पर शांति, रूस के साथ व्यापारिक और आपसी हितों में विस्तार, रुपये में कारोबार और सीमा पार आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भारत ने अपनी बात मजबूती से रख दी। एसीओ पर भारत के नेतृत्व को सभी सदस्यों ने ना सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि क्षेत्र में हमारी भूमिका को भी सराहा।
हालांकि एसएसीओ के मंच से कोई द्विपक्षीय मुद्दे नहीं उठाए जाते, फिर भी सदस्य देशों ने गोवा बैठक को भारत के साथ द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने में एक अवसर के रूप में देखा। चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने गोवा बैठक को लेकर भारत से बहुत उम्मीदें जाहिर की है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है – “भारत के गोवा में आयोजित एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक जुलाई में होने वाली एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले न केवल आपसी विश्वास को बढ़ाने में मदद करेगी, बल्कि सदस्य देशों के बीच संबंधों में स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने में संगठन की भूमिका को और मजबूत करेगी।” उल्लेखनीय है कि इस समय एससीओ की अध्यक्षता भारत के पास ही है।
एससीओ के विदेश मंत्रियों की इस बैठक में पाकिस्तान की भागीदारी को लेकर यह उत्सुकता थी कि क्या दोनों देशों के बीच संबंधों में जमीं बर्फ पिघलेगी, क्या नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान के प्रति अपनी कठोर नीतियों में कोई लचक दिखाएंगे? ऐसी अपेक्षा इसलिए थी कि पाकिस्तान का कोई विदेश मंत्री 13 साल बाद भारत के दौरे पर आया था। हालांकि पाकिस्तान को इस एससीओ बैठक से बहुत उम्मीदें नहीं है, क्योंकि वहां की राजनीतिक परिस्थितियां एकदम खराब हैं और उसके अलावा बिलावल भुट्टो को पाकिस्तान में ही लोग गंभीरता से नहीं लेते। उम्मीद के मुताबिक भारत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ औपचारिक व्यवहार के अलावा कोई तव्वजो नहीं दी।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बिना किसी लाग लपेट के पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी, चीन के विदेश मंत्री किन गैंग और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की उपस्थिति में खुलकर आतंकवाद का मुद्दा उठाया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि सभी प्रकार के आतंकवाद, जिसमें सीमा पार से आतंकवाद भी शामिल है, को रोकने और उसके लिए फंड जुटाने पर रोक और प्रतिबंध लगना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि एससीओ के गठन का एक मुख्य उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना भी है। हालांकि बिलावल भुट्टो ने सधे हुए अंदाज में यह कहकर भारत को जवाब देने की कोशिश की कि आतंकवाद के मुद्दे को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, पर भारत के सामने पाकिस्तान ने कश्मीर समेत कोई भी द्विपक्षीय मुद्दा नहीं उठाया।
भारत के विदेश मंत्री ने चीन के विदेश मंत्री किन गैंग से भी पूर्वी लद्दाख सीमा रेखा विवाद को हल करने और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एलएसी पर स्थाई शांति सुनिश्चित करने को कहा। एस जयशंकर ने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ द्विपक्षीय सहयोग के सभी मुद्दों के अलावा यूक्रेन संघर्ष पर भी बातचीत की।
यूं तो 1996 में ही एसएसीओ की नींव रख दी गई थी, लेकिन 15 जून 2001 को प्रारंभिक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद यह सक्रिय रूप में सामने आया। भारत 2017 में एक पूर्ण सदस्य के रूप में इसमें शामिल हुआ। वर्तमान में इसके सदस्यों में चीन, भारत, कजाकिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान हैं। अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया इसमें पर्यवेक्षक के रूप में सम्मिलित हैं।
एससीओ का मुख्य लक्ष्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के मुद्दे पर सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। साथ ही आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुकाबला करना, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना और परिवहन और संचार बुनियादी ढांचे का विकास करना भी इसके एजेंडे में शामिल हैं। अभी तक इसकी आधिकारिक भाषाएं रूसी और मंडारिन हैं, लेकिन भारत इसकी तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी को जोड़ने का प्रयास कर रहा है। चार्टर के अनुसार एससीओ के सदस्य देशों के बीच आम सहमति से निर्णय लिया जाता है और एक दूसरे के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है।
ऐेसे तो भारत दुनिया के कई बहुराष्ट्रीय सहयोग संगठनों का सदस्य है। जिसमें जी 20 और ब्रिक्स प्रमुख हैं लेकिन एससीओ के सदस्य के रूप में भारत के लिए कई संभावनाएं हैं। खासकर सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में। एससीओ के जरिए भारत मध्य एशियाई देशों के साथ तेजी से आर्थिक संबंध बढ़ा सकता है। मध्य एशिया क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है और यहां से भारत को लगातार सहयोग प्राप्त भी हो रहा है। भारत आसानी से एससीओ देशों के साथ मिलकर व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ा सकता है।
मध्य एशियाई देशों में तेल और गैस के विशाल भंडार हैं, और भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए इन संसाधनों का दोहन कर सकता है। यूक्रेन से युद्ध के बाद रूस से भारत लगातार सस्ता तेल प्राप्त कर रहा है। गोवा की बैठक में रूस के विदेश मंत्री के साथ भारत ने कच्चे तेल और रक्षा उपकरणों की आपूर्ति से संबंधित बातचीत साइडलाइन बैठकों में की है। पर्यटन के दृष्टिकोण से भी एससीओ के देशों में भारत के लिए काफी संभावनाएं हैं। एससीओ सदस्य देशों में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत के रूप में 207 पर्यटक स्थल यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं। भारत की काशी (वाराणसी) को एससीओ की पहली सांस्कृतिक राजधानी घोषित किया गया है।
आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में एससीओ एक महत्वपूर्ण सहयोग संगठन के रूप में काम कर सकता है। खासकर पाकिस्तान और चीन दोनों देश इसके सदस्य हैं इसलिए भारत के लिए इसे रोकने का कोई प्रस्ताव लाना आसान हो सकता है। भारत सीमा पर आतंकवाद का शिकार रहा है और इस क्षेत्र में आतंकवाद से निपटने के लिए एससीओ के सामूहिक प्रयास से कोई ठोस नतीजा हासिल हो सकता है।
आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (आरएटीएस) का गठन कर दिया गया है। आरएटीएस क्षेत्र में आतंकवाद को रोकने और मुकाबला करने के लिए खुफिया जानकारी साझा करने, संयुक्त अभ्यास और संचालन करने और कार्रवाई का समन्वय करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। अब नजरें जुलाई पर रहेंगी, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एससीओ की शिखर बैठक होगी।