प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र में लाखों नेता हैं, पर उनमें से चंद मजबूत नेताओं को ही बार- बार याद किया जाता है। देश प्रत्यक्ष या परोक्ष ढंग से 800 के करीब सांसद और 4000 से ज्यादा विधायक चुनता है। फिर भी देश में चंद कद्दावर चेहरे ऐसे होते हैं, जिनके पीछे देश चलता है। एक हालिया सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई है कि भारत में लोग मजबूत नेताओं को ज्यादा पसंद करते हैं। पेश है एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा की कलम से इस सर्वेक्षण पर आधारित विश्लेषण…
साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सा भारतीय जनता पार्टी की लगातार दो जीत ने भारत में राजनीति और यहां तक कि लोकतंत्र की स्थिति पर भी बड़ी बहस पैदा कर दी है। भाजपा के कुछ आलोचक टिप्पणीकार दावा करते हैं कि मोदी सरकार के तहत लोकतंत्र का क्षरण हुआ है, शासन की मनमानी बढ़ी है। दूसरी ओर भाजपा ने इन दावों का पुरजोर खंडन करते हुए कहा है कि भारत में लोकतंत्र मजबूत है और लोगों को विपक्ष पर कोई भरोसा नहीं है। हालांकि, प्यू रिसर्च सेंटर के ताजा सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि भारत में लोगों को मजबूत विपक्ष भी पसंद है।
लोकतंत्र से संबंधित विभिन्न सवाल पर राजनीतिक विचार!
बहरहाल, 24 देशों में प्रतिनिधि लोकतंत्र पर प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए सर्वेक्षण के निष्कर्ष हाल ही में जारी किए गए हैं, जो बताते हैं कि वास्तविकता अलग हो सकती है। वास्तव में, सर्वेक्षण के परिणाम बताते हैं कि जब प्रतिनिधि लोकतंत्र से संबंधित विभिन्न सवालों पर राजनीतिक विचारों की बात आती है, तो भारत सबसे आगे है। इस सर्वेक्षण में लोकतंत्र जिस तरह से काम कर रहा है, उससे संतुष्टि के मामले में 24 देशों में स्वीडन के बाद भारत दूसरे स्थान पर आता है। लोकतंत्र से संतुष्ट भारतीयों की हिस्सेदारी 72 प्रतिशत त है, है, जो 24 देशों के औसत से 32 प्रतिशत अंक अधिक है। वास्तव में, सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि अधिकांश देशों के विपरीत भारत में संतुष्टि एक द्विपक्षीय घटना है। न केवल सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों, बल्कि सत्ताधारी पार्टी का समर्थन नहीं करने वाले लोगों के बीच भी लोकतंत्र के प्रति संतुष्टि के मामले में भारत सर्वेक्षण में दूसरे स्थान पर है। इसी तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी, दोनों को अन्य देशों की तुलना में भारत में सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल के नेताओं के बीच उच्च स्वीकृति रेटिंग प्राप्त है।
सर्वेक्षण का आंकड़ा क्या बताता है!
हालांकि, सर्वेक्षण में एक अन्य आंकड़ा हमें बताता है कि इन निष्कषों को देखते समय सावधानी बरतनी चाहिए। भारत में ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि एक मजबूत नेता बिना किसी से प्रभावित हुए निर्णय ले सकता है और देश पर शासन करने का यह एक अच्छा तरीका है। मतलब, लोग अधिक शक्तिशाली नेता की आशा करते हैं। भारत में लोग न केवल लोकतंत्र से संतुष्ट है, साथ ही, उन्हें मजबूत नेता भी बहुत पसंद हैं। लोग ऐसे नेताओं को पंसद करते हैं, जो विधायिका या न्यायपालिका के नियंत्रण से भी मुक्त रहकर काम कर सकता है। सर्वेक्षण के आधार पर अगर देखें, तो लोकतांत्रिक देशों के बीच भारत एक अलग ही मुकाम पर खड़ा के नजर आता है।
अपने प्रतिनिधि के रूप लोगों की पसंद
भारत 85 प्रतिशत लोग मजबूत नेताओं के पक्षधर हैं। इंडोनेशिया में भी 77 लोग मजबूत ने नेताओं को चुनना पसंद करते हैं। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, जापान, ब्रिटेन का स्थान आता है। सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में भी 32 प्रतिशत लोग मजबूत नेताओं को चुनना ज्यादा पसंद करते हैं। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि अपनी में मजबूती दिखाने के लिए मशहर इजरायल के लोगों को मजबूत नेता ज्यादा पसंद नहीं आते हैं। वहां केवल 26 प्रतिशत लोग ही मजबूत नेताओं के पक्षधर हैं। स्वीडन में लोकतंत्र की अलग ही स्थिति नजर आती है, वहां महज 8 प्रतिशत लोग ही मजबूत नेताओं के हिमायती हैं। वहां लोग नए-नवेले और मध्यम शक्ति वाले राजनेताओं को अपने प्रतिनिधि के रूप में ज्यादा पसंद करते हैं।
राजनीतिक फंडिंग का हिस्सा भारत!
बहरहाल, चर्चा भारत की जरूरी है, जो चुनावी मुद्रा में आ चुका है। साल 2014 के बाद के चरण में भारतीय राजनीति में एक और दिलचस्प विरोधाभास यह भी आया है कि नेताओं की आर्थिक ताकत ज्यादा होती जा रही है। सत्तारूढ़ नेताओं को अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में ज्यादा धन या दान मिलता है। साथ ही, गरीब मतदाता से भी उन्हें समर्थन मिलता है। गौर करने की बात है कि राजनीतिक फंडिंग का एक बड़ा हिस्सा भारत में अत्यधिक अमीरों की जेब से ही आता है। इस मोर्चे पर भारतीय जनता पार्टी की क्षमता उल्लेखनीय रही है। सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि भाजपा ने उस भावना का लाभ उठाया है, जो देश में पहले से ही व्यापक है। सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि ज्यादातर उत्तरदाता नेता के रूप में उद्यमियों और श्रमिक नेताओं को पसंद करते हैं। यह भी एक विरोधाभास ही है कि अमीर भी पसंद हैं और श्रमिक नेता भी।
भारतीय लोकतंत्र में विपरीत बिंदु दिखने का मतलब!
यह अलग ही विश्लेषण का विषय है कि भारतीय लोकतंत्र में दिखने वाले इन विपरीत बिंदुओं का क्या मतलब है? इस तथ्य से शुरू होने वाली कई व्याख्याएं हो सकती हैं कि लोग ऐसे सर्वेक्षणों में प्रतिगामी विचारों को कम महत्व देते हैं। लोग ऐसे सर्वेक्षणों में यह नहीं बताते कि वह हाशिये की पृष्ठभूमि वाले लोगों को भी चुनना पसंद करते हैं। हालांकि, इस तथ्य की अधिक संभावना है कि भारत में मतदाताओं के आदर्श विचार ही काफी हद तक तय करते हैं कि यहां निर्वाचित प्रतिनिधि या नीति-निर्माता कौन बनेगा। एक दूसरा पहलू भी है कि आदर्श विचारों पर ज्यादातर राजनीतिक दल ध्यान नहीं देते हैं, शायद उन्हें पता होता है कि मतदाता आदर्शों से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होते हैं। ज्यादातर मतदाता प्रत्याशियों की मजबूती ही देखते हैं। जिधर सशक्त नेता नजर आते हैं, उधर ‘ही लोगों के वोट जाने लगते हैं।
राजनीतिक दल महिलाओं को उम्मीदवार क्यों बनाते हैं!
राजनीतिक दल अमीर उम्मीदवारों को मैदान में ज्यादा उतारते हैं। इसी प्रकार अधिकांश स्थापित राजनीतिक दल उम्मीदवार खड़ा करते समय महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं देते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि हमारे राजनीतिक दल भारतीय राजनीतिक प्रतिनिधित्व के बारे में आवश्यक रूप से सुसंगत विचार नहीं रखते हों।
कोई आश्चर्य नहीं, औसत भारतीय सांसद औसत भारतीय की तुलना में काफी अमीर हैं। सांसदों का संपत्ति मूल्य आम भारतीय के संपत्ति मूल्य से 106 गुना ज्यादा है। जब हम किसी मजबूत नेता को चुनना पसंद करेंगे, तो जाहिर है, उसका अमीर होना एक तरह से स्वाभाविक ही है।
भारत में शक्तिशाली राजनेताओं को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं लोग!
भारत में शक्तिशाली लोगों को ज्यादा पसंद किया जाता है। कमजोर लोगों का पक्ष लेना अलग बात है, लेकिन अपने प्रतिनिधि के रूप में कोई भी किसी कमजोर का साथ देना नहीं चाहता। हर मतदाता यही चाहता है कि उसका नेता मजबूत हो, सक्षम हो। वैसे दुनिया के कुछ दूसरे देशों में भी लोग यही चाहते हैं, पर अनेक ऐसे देश हैं, जो स्थापित मजबूत नेताओं से अलग सोचते हैं और आम या नए नेताओं पर विश्वास करते हैं। अमेरिका की अगर बात करें, तो वहां 30 प्रतिशत लोग मजबूत नेता को अपने प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करते हैं। ब्रिटेन में भी लगभग यही स्थिति है।
एक औसत भारतीय सांसद एक औसत भारतीय नागरिक की तुलना में काफी अमीर!
एडीआर से उपलब्ध 539 सांसदों के आंकड़ों के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में चुने गए एक सांसद की औसत संपत्ति का मूल्य – चुनावी हलफनामों के अनुसार, 20.93 करोड़ रुपये था। एआईडीआईएस के आंकड़ों के अनुसार, 30 जून, 2018 को यह एक भारतीय परिवार की औसत संपत्ति मूल्य से 106 गुना अधिक है। एक सांसद की औसत संपत्ति और एक औसत भारतीय परिवार की औसत संपत्ति में यह अंतर 2014 की तुलना में थोड़ा बढ़ा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक सांसद की औसत संपत्ति 14.7 करोड़ रुपये थी।
पंडित जवाहरलाल नेहरू
देश की आजादी के बाद सबसे मजबूत नेता जवाहरलाल नेहरू ही थे। देश में पहला चुनाव अक्तूबर 1951 से फरवरी 1952 तक चला था। चार महीने के समय में चुनाव के पहले और उसके बाद भी कांग्रेस के नेता के रूप में पंडित नेहरू की जीत पर शायद ही किसी को संदेह था। उस चुनाव में कांग्रेस 364 सीटें जीतने में सफल रही थी। सीपीआई को महज 16 और जयप्रकाश नारायण की सोशलिस्ट पार्टी को महज 12 सीटों से संतोष करना पड़ा था। पंडित नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस को 44.99 प्रतिशत वोट मिले थे। साल 1957 के चुनाव में सीटों की संख्या बढ़कर 371 हो गई थी। साल 1962 के अपने अंतिम चुनाव में भी वह 361 सीटें लेने में कामयाब रहे थे और कांग्रेस को तब भी 44 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे।
इंदिरा गांधी
इंदिरा गांधी को हमेशा मजबूत नेता के रूप में याद किया जाता है। साल 1967 लोकसभा चुनाव में पार्टी में फूट के बावजूद वह 283 सीटों के साथ प्रधानमंत्री बनी थीं। साल 1971 के चुनाव में उन्हें 363 सीटें और 1980 के चुनाव में 353 सीटें मिली थीं।
जय प्रकाश नारायण
देश की राजनीति को बदलने वाले नेता के रूप में लोकनायक को हमेशा याद किया जाता है। कांग्रेस को सदैव चुनौती देने वाले लोकनायक को जब लगा कि देश में तानाशाही बढ़ रही है, तब उन्होंने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। नेताओं की एक पूरी पीढ़ी को सामने ला खड़ा किया। साल 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को 295 सीटें मिली थीं और मतदान प्रतिशत 41 से ज्यादा रहा था, उन्होंने कांग्रेस को महज 154 सीटों पर समेटकर पहली बार सत्ता से बेदखल किया था।
राजीव गांधी
महज 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव गांधी भी भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदलने वाले मजबूत नेता के रूप में याद किए जाते हैं। युवा, शिक्षा, तकनीक, राजनीति, समाज इत्यादि सभी मोर्चों पर उन्होंने देश को प्रभावित किया। साल 1984 के लोकसभा चुनाव में वह अब तक की रिकॉर्ड 414 सीटों के साथ प्रधानमंत्री बने थे। वह 50 प्रतिशत के करीब वोट लेने में कामयाब रहे थे।
लालकृष्ण आडवाणी
भारतीय राजनीति को एक निर्णायक मोड़ पर लाने का श्रेय लालकृष्ण आडवाणी को दिया जाता है। अपने कद्दावर वरिष्ठ सहयोगी अटल बिहारी वाजपेयी को आगे रखकर पार्टी को दो सीट से देश की सत्ता तक पहुंचाने में वह सर्वाधिक सक्रिय रहे। देश चलाने वाले नेताओं की एक पूरी पीढ़ी को उन्होंने अपने मार्गदर्शन में तैयार किया।
नरेंद्र मोदी
लगभग 15 साल स्वयंसेवक के रूप में, लगभग 15 साल भाजपा के संगठन में, लगभग 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में और अब दस साल देश के प्रधानमंत्री के रूप में पूरे करने जा रहे नरेंद्र मोदी की गिनती दुनिया के मजबूत नेताओं में होती है। उनके नाम पर सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव लड़ती है। वह साल 2014 में भाजपा को अकेले 282 सीटें जितवाने में कामयाब रहे थे। साल 2019 लोकसभा चुनाव में 303 सीटों के साथ वह सत्ता में और मजबूत होकर उभरे थे। आज भी उनकी लोकप्रियता का ग्राफ किसी सर्वेक्षण में कम नहीं दिखता है।