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Home विशेष

चीन में आजादी की लहर

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
January 24, 2023
in विशेष, विश्व
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china
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अजय दीक्षित


नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोर के कथन के मुताबिक ‘तानाशाही का सबसे जोरदार हथियार है गोपनीयता, लेकिन लोकतंत्र का सबसे असरदार हथियार है खुलापन।’ ईरान, चीन, म्यांमार, थाइलैंड और सूडान में हुए विरोध प्रदर्शन इस बात का प्रमाण हैं कि सूचनाओं के जरिए ई- विलेज बनती दुनिया में कठोर कानून या तानाशाही से आम अवाम की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। ये सभी देश नागरिक अधिकारों के उत्पीडन के लिए बदनाम हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक फांसी देने के मामले में चीन और ईरान दुनिया के शीर्ष देश हैं।

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चीन ने करीब एक हजार और ईरान ने करीब 314 लोगों को फांसी दी । इन देशों में लोगों के खिलाफ किए जा रहे उत्पीडन से यह भी साबित होता है कि बदले हुए हालात में बंदूकों की नोक पर लंबी अवधि तक मानवाधिकारों को राष्ट्रीय एकता-अखंडता, संस्कृति या धर्म के नाम पर दबाया नहीं जा सकता। यही वजह रही कि आखिरकार ईरान और चीन जैसे कट्टर देशों की सरकार ने भारी खून-खराबे के बाद आंदोलनकारियों के आक्रोश के सामने झुकते हुए उनकी मांगें मंजूर कर ली। इन देशों में सरकार के खिलाफ बोलने, संस्कृति और धर्म के नाम पर फांसी की सजा दिया जाना आम बात है। किंतु इस बार हुए अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने वाले लोगों को जेल या फांसी का डर भी नहीं डरा सका।

ईरान ने भारी दबाव में आकर मोरैलिटी पुलिस को भंग कर दिया। इसी तरह चीन भी 70 सालों में पहली बार आंदोलनकारियों के सामने झुकते हुए कोविड में प्रतिबंधों में छूट देने के लिए सहमत हो गया। गौरतलब है कि ईरान में इस्लाम से जुड़े नियमों जैसे कि हिजाब, बुर्का आदि का पालन कराने के लिए मोरैलिटी पुलिस बनाई गई। इसका गठन पूर्व मेहमूदक अहमदीनेजाद के समय में किया गया था जो ईरान के एक कट्टरपंथी नेता और राष्ट्रपति के तौर पर जाने जाते हैं। उस दौर में इसका काम हिजाब की संस्कृति को बढ़ाने का था। सफेद और हरे रंग की वैन से चलने वाली इस पुलिस के कर्मचारी कहीं पर भी महिलाओं को टोकते दिख जाते। कई बार इस रोक- टोक ने हिंसा का रूप ले लिया। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब महिलाओं को उनके हिजाब को लेकर सरेआम बुरी तरह मारा-पीटा गया। जेलों में बंद करके लोगों को यंत्रणाएं दी गई।

ऐसा ही मामला बुर्के से चेहरा नहीं ढकने वाली महसा अमीनी का था । अमीनी की मौत से भडक़ी आक्रोश की चिंगारी ने दावानल का रूप धारण कर लिया। विरोध का यह मुद्दा न सिर्फ ईरान में बल्कि पूरे विश्व में फैल गया। कई देशों की महिलाओं और हस्तियों ने सार्वजनिक तौर पर बाल कटवा कर ईरान का विरोध किया। ईरान ने इस आंदोलन को दबाने के लिए हर तरह के हथकंडों का इस्तेमाल किया। हजारों लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए। प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाई गई। ईरान में सुरक्षा बलों के हाथों करीब 380 प्रदर्शनकारी मारे गए। मृतकों में 47 बच्चे भी शामिल हैं। इन देशों के नागरिक अपनी तकलीफों और मानवाधिकारों को लेकर लंबे अर्से से कसमसा रहे हैं। कठोर कानून और निर्दयी शासन तंत्र के खौफ के बावजूद नागरिकों ने सडक़ों पर उतर कर प्रदर्शन करने का दुस्साहस दिखाया।

हालांकि ईरान और चीन की कोशिश यही रही है कि अपने देश के नागरिकों पर चलाए गए दमन चक्र की सूचनाएं किसी भी तरह से देश से बाहर नहीं जाए, ताकि विश्वव्यापी बदनामी से बच सकें इन देशों से आ रही सूचनाओं से जाहिर है कि मौजूदा शासन तंत्र से आजिज आ चुके लोगों ने मौत और सजा के भय के बावजूद सडकों पर प्रदर्शन कर सरकारों का जम कर विरोध किया। ईरान की तरह चीन ने भी पहले कोविड प्रतिबंधों के खिलाफ सडक़ों पर उतरे चीनी नागरिकों पर कानून की आड़ में पुलिस और सैन्य बलों का इस्तेमाल किया, किंतु लंबे समय तक चीन भी अपने नागरिकों की आवाज को दबाने में सफल नहीं हो सका । लोगों ने नारे लगाते हुए चीन की सत्तारूढ़ .कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) से सत्ता छोडऩे की मांग की है।

इसी तरह सूडान की सेना ने प्रधानमंत्री अब्दुल्लाह हमदोक समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर इमरजेंसी घोषित कर दी। इसके बाद से सडक़ों पर लोग विरोध प्रदर्शन पर उतर आए। लोगों पर सैनिकों ने गोलियां भी दागीं जिसमें 10 लोगों के मारे जाने और कई अन्य के घायल होने की सूचना है। म्यांमार की सेना ने अपने ही लोगों पर एयर स्ट्राइक कर आतंक फैला दिया। हवाई हमलों में 80 से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। घटना स्थल पर सैन्य विमान की ओर से 4 बम गिराए गए थे । इसके उस पर 2300 से अधिक आम नागरिकों की हत्या का आरोप भी लगा है।

थाइलैंड में भी हालात कुछ दूसरे देशों की तरह ही हैं। धरना और विरोध पर यहां भी सख्त पाबंदी है । थाइलैंड में पहली बार 2019 में चुनाव हुए, पर आम नागरिकों को अभी अपने अधिकारों की मांग करने की छूट नहीं है। बैंकाक में सरकार ने पांच से अधिक लोगों के एक साथ खड़े होने पर रोक लगाई हुई है। ऐसे प्रतिबंधों का असली मकसद अवाम की आवाज को दबाना ही रहा है ।

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