सिद्धार्थ शंकर गौतम
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से धर्मांतरण का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। राजधानी के टीला जमालपुरा इलाके में मोहम्मद समीर, मोहम्मद साजिद और फैजान लाला नामक मुस्लिम युवकों ने हरिजन बस्ती में रह चुके 24 वर्षीय हिंदू युवक विजय रामचंदानी का अपहरण कर उसे धर्मांतरण के लिए मजबूर किया। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आया जब मुस्लिम युवकों द्वारा हिंदू युवक के गले में उसी के बेल्ट को पट्टा बनाकर पहनाने, उसे कुत्ते की तरह चलने और भौंकने को बाध्य करने का वीडियो सामने आया।
मुस्लिम युवकों द्वारा विजय की जमकर पिटाई की गई और आपत्तिजनक अश्लील शब्द बुलवाए गए। उसे गोमांश खाने को बाध्य किया गया। साथ ही उससे कई बार माफी भी मंगवाई गई। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। आरोपी युवक और पीड़ित युवक पूर्व में परिचित थे और पीड़ित युवक के परिवार के अनुसार आरोपी युवकों ने उसे न सिर्फ नशे का आदी बना दिया था वरन उससे अपने ही घर में चोरी भी करवाई थी। आरोपियों की प्रताड़ना से तंग आकर ही परिवार ने हरिजन बस्ती छोड़ी थी।
हालांकि आरोपी युवकों ने ऐसा क्यों किया इसका पता तो पुलिस की विस्तृत जांच से लगेगा किन्तु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की सक्रियता से पुलिस ने 6 में से तीन आरोपियों को पकड़कर उन पर एनएसए के तहत आरोप दाखिल कर दिए हैं और 3 आरोपियों बिलाल, मुफीद और साहिल बच्चा की तलाश जारी है।
घटना के 24 घंटे के भीतर आरोपियों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर कार्रवाई भी कर दी गई। किन्तु इस घटना से पुलिस की निष्क्रियता और रिपोर्ट पर जांच न करने की बात सामने आई है। उक्त घटना की परिवार ने 5 बार थाने पर शिकायत की किन्तु उन्हें भगा दिया गया। अब शासन स्तर पर मामले को प्राथमिकता से सुलझाने की प्रशंसा की जाना चाहिए किन्तु यह प्रश्न उठता है कि मध्य प्रदेश में 1968 से धर्मांतरण विरोधी कानून (धर्म स्वातंत्र्य विधेयक) है जिसे 2021 में संशोधित करके और कठोर कर दिया गया उसके बाद भी धर्मांतरण के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ने क्यों लगे हैं? क्या धर्मांतरण में लिप्त व्यक्तियों और संस्थाओं को कानून एवं प्रशासन का डर नहीं है?
हाल ही में जबलपुर के कैंट थाना क्षेत्र की विवाहित हिंदू महिला और दो बच्चों की माँ को नौकरी दिलाने के नाम पर मुस्लिम युवक द्वारा दुष्कर्म करने, धर्मांतरण करने, बुरखा पहनाकर कलमा पढ़वाने और गोमांस खिलाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। महिला से मारपीट भी की गई और जान से मारने की धमकी भी दी गई। मामला पुलिस जांच में है। वहीं बीते माह दमोह में एक स्कूल ने हाई स्कूल के परिणाम घोषित होने पर समाचार-पत्रों में पास हुई लड़कियों की तस्वीर छपवाई जिसके बाद प्रदेश में बवाल मच गया।
दरअसल, विज्ञापन में शामिल हिंदू लड़कियों को हिजाब पहनाकर उनकी तस्वीर ली गई थी। जब शासन स्तर पर बात बढ़ी तो स्कूल पर जांच बिठा दी गई जिसमें यह तथ्य सामने आया कि स्कूल धर्मांतरण में लगा हुआ था। बाल आयोग की जांच में यह भी पता चला कि स्कूल की प्रधानाचार्य अफसा शेख (पूर्व में श्रीवास्तव) और दो शिक्षिकाओं अनीता खान (पूर्व में यादव) और तबस्सुम बानो (पूर्व में जैन) ने धर्म परिवर्तन कर लिया था जिसका वे स्पष्ट कारण नहीं बता पाई थीं। इसके अलावा स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों को कुरआन की आयतें पढ़ाने के साथ ही हिजाब को स्कार्फ बताकर पहनने के लिए विवश किया जाता था। स्कूल में प्रार्थना स्थल के पास मस्जिद का निर्माण भी किया जा रहा था।
इस मामले में अब राजनीति भी हो रही है। इसी प्रकार नवंबर, 2022 में भोपाल के पॉश इलाके शिव नगर कॉलोनी के एक घर में ईसाई पादरियों द्वारा 15 हिंदुओं को सामूहिक रूप से प्रार्थना करवाते हुए पुलिस और हिंदू संगठनों ने पकड़ा था। इनमें मासूम बच्चों को भी बरगलाया जा रहा था। भोपाल से पहले बैतूल और रतलाम में भी ऐसे मामले सामने आए थे जहां ईसाई मिशनरी के लोग बड़ी तादाद में हिन्दुओं को प्रलोभन देकर धर्मांतरण के लिए प्रेरित कर रहे थे।
अप्रैल, 2022 में ग्वालियर जिले में हिंदू युवती के जबरन धर्मांतरण और दुष्कर्म मामले में आरोपी मौलाना इमरान को गिरफ्तार किया गया था जिसने अपनी पहचान बदलकर हिंदू नाम से हिंदू युवती को फंसाया, उससे शादी की और फिर धर्म बदलने के नाम पर प्रताड़ित किया।
मध्य प्रदेश में जबरन, दबाव डालकर, प्रलोभन देकर विधि विरुद्ध शादी तथा धर्मांतरण करवाने पर कड़े कानून के तहत अधिकतम 10 साल की कैद एवं 50 हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा सरकार ऐसे मामलों में आरोपियों के अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई भी कर रही है किन्तु धर्मांतरण के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं।
दरअसल, ऐसे मामलों में कानून सम्मत कार्रवाई के अतिरिक्त सब कुछ होता है, राजनीति भी। पुलिस भी ऐसे मामलों पर केस दर्ज करने से बचती है। मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति पर केस दर्ज होने की सूरत में पुलिस को क्षेत्र में शांति व्यवस्था भंग होने का डर रहता है क्योंकि मुस्लिम समुदाय भीड़ के रूप में थाने को घेर लेता है। वहीं पीड़ित हिंदू पक्ष यदि पुलिस के पास रिपोर्ट लिखवाने भी जाए तो उसे समझा-बुझाकर वापस भेज दिया जाता है जैसा उपरोक्त मामले में हुआ। जैसे-तैसे हिंदूवादी संगठनों के दबाव में आकर यदि पुलिस एफआईआर दर्ज भी कर ले तो धर्मांतरण के सबूत जुटाने और उन्हें न्यायालय में प्रस्तुत करने तक में इतनी राजनीति हो जाती है, पुलिस पर इतना दबाव बन जाता है कि मामले में अधिकतम सजा संभवतः ही मिल पाती हो।
इसके अलावा धर्मांतरण मजहब और रिलीजन की सेवा-विस्तार से जुड़ा मसला है अतः मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोगों को कानून का डर नहीं होता। उन्हें जहां अवसर मिलता है वे धर्मांतरण के धंधे को प्रारंभ कर देते हैं।
मध्य प्रदेश में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और प्रदेश भारत के उन 10 राज्यों में से एक है जहां धर्मांतरण विरोधी कानून लागू है किन्तु जहां भी कांग्रेस सत्ता में आ रही है, वह उक्त कानून को संशोधित कर इसके प्रावधान नरम कर रही है। ऐसे में धर्मांतरण में लिप्त व्यक्तियों और समुदायों को ताकत मिल रही है कि अगर गैर भाजपा सरकारें रहेंगी तो धर्मांतरण करने में कोई रोक टोक नहीं होगी। वहीं धर्मांतरण को धार्मिक और संवैधानिक स्वतंत्रता से जोड़कर भी राजनीति की जाती है जबकि जबरन धर्मांतरण के संकट को संवैधानिक स्वतंत्रता के साथ जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। इसके विरुद्ध कड़े कानून के साथ ही उसे पालन करने के लिए प्रशासन को सक्रिय करने का मार्ग ढूंढना होगा। अन्यथा कानून बनते रहेंगे, राजनीति होती रहेगी लेकिन धर्मांतरण में शामिल गिरोह अपना काम करते रहेंगे।
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।