कौशल किशोर
राम मंदिर की चर्चा के साथ नया साल शुरु हो गया है। भारत के मानस में बसने वाले राम राज की परिकल्पना साकार होने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते प्रतीत होते हैं। इसकी भूमि आज अयोध्या है। युद्धविहीन होने का यह सपना रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग और मध्य पूर्व में इजरायल और हमास के बीच हिंसक युद्ध के इस अंधी दौर में वैश्विक फलक पर भी प्रासंगिक हो गई है। भरत का राम राज तुलसी के मानस और वाल्मीकि के महाकाव्य की बात है। गांधी युग में इसका पुनर्पाठ हुआ। आज मोदी योगी युग में एक बार फिर पुनर्पाठ होने लगा है।
अयोध्या में सरयू के पावन तट पर राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की चर्चा के बीच आज अंग्रेजी कैलेंडर करवट बदल रहा है। आधुनिक भारत के इतिहास की यह एक ऐसी महत्वपूर्ण घटना है, जिसकी जड़े मध्य युग से पौराणिक काल तक फैली है। निश्चय ही आने वाले समय पर भी इसका व्यापक असर पड़ेगा। अयोध्या पर्व में इस पर पहले भी चर्चा होती रही है। मंदिर निर्माण से शुरु हुआ यह महायज्ञ हम सभी को अयोध्या और राम राज से रु-ब-रु कराती रहेगी।राजनीति के सबसे पवित्र सूत्र और शब्द के तौर पर राम राज और अयोध्या की ही बात होती है। पहले विश्व युद्ध के समय से ही भारतीय राजनीति में आधुनिक काल में संभव हो पाने वाले राम राज की चर्चा जारी है। इक्कीसवीं सदी में इस पर खुल कर प्रयास भी होने लगा है। शांति और प्रगति को ओर इंगित करता यह प्रतीक ऐतिहासिक महत्व का है।
राम राज का सपना साकार करने हेतु ब्रिटिश राज के दौर से ही लोक शक्ति जागृत करने का काम देशप्रेमियों ने किया है। इस बीच सरयू ही नहीं, बल्कि गंगा और यमुना में भी बहुत पानी बह चुका है। चरखाधारी मोहन का राम राज राजनीति का वह पाठ है, जिसने पूरी दुनिया के सामने भारतीय पक्ष की उदारता को व्यक्त किया। बीसवीं सदी में अवध के किसानों को जागृत करने के लिए बाबा राम चन्द्र तुलसी दास कृत मानस लिए गांव गांव घूम रहे थे। उनका दिन राम धुन से शुरु हो कर राम धुन पर ही खत्म होता था। इसका उद्देश्य राम राज की पैरवी करना ही था। मिथिला क्षेत्र में यही काम रामनंदन मिश्र कर रहे थे। जय प्रकाश नारायण को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान रांची जेल से भगाने वाले दल के इस नेता के जीवन में हिंसा और अहिंसा की खूब समझ दिखती है। राजनीति, अध्यात्म और धर्म जैसे विषय इसमें एक साथ प्रकट होते हैं।
भारतीय जनजीवन, कला और साहित्य में रचे बसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर अवध ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों के भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में राम राज का सपना तभी से आकार प्रकार ले रहा है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ इसको जमीन पर उतारने में लगे हुए हैं। राम को कल्पना करार देने वाले राजनीतिक दलों ने भी इसका समर्थन शुरु किया है। तीर्थ यात्रा के आयोजन भी होने लगा है। इन सब के साथ ही अल्पसंख्यकों और सर्वाहारा वर्ग के लोगों को भड़काने वाले अलगाववादी तत्व भी सक्रिय हैं।
हिन्दू राष्ट्र का ही दूसरा नाम राम राज है। बीसवीं सदी से सुराज और स्वराज्य जैसे एक शब्द में इसे समेटने का प्रयास विद्वानों द्वारा किया जा रहा है। पर अयोध्या कहने पर यह वाकई एक ही शब्द में अभिव्यक्त होता है। युद्ध से परे की स्थिति को व्यक्त करना आधुनिकता को चुनौती देने का ही मामला है। खतरनाक हथियारों की होड़ में लगी यह आधुनिकता सारी दुनिया को एक झटके में नष्ट करने का दावा करती है। इसने एक ऐसी परिस्थिति का निर्माण किया है, जिसमें अयोध्या शब्द का वाचन भी मुमकिन नहीं रह गया है।
लोकसभा चुनाव की वैतरणी पार करने में लगे तमाम राजनीतिक समूहों के बीच हावी वैमनस्य और कटुता के बीच अयोध्या की बात अमृत काल की स्पिरिट के अनुकूल है। युद्धविहीन होने की स्थिति की कल्पना रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग और मध्य पूर्व में इजरायल व हमास के बीच की हिंसा के इस अंधी दौर में वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक हो जाता है। इसकी मीमांसा मध्यकाल की कृपणता को दूर कर खड़ी की गई आधुनिक सभ्यता के दोषों के की ओर भी बराबर इंगित करता रहेगा। आज राम राज का प्रवक्ता होने के नाते अयोध्या व्यापक महत्व का हो जाता है। प्रतिदिन एक लाख तीर्थ यात्रियों की आशा पूरी करने की क्षमता के साथ यह नए भारत की पहचान हो सकती है।
अयोध्या के महाराज आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण और मराठी साहित्यकार शेषराव मोरे के बगैर अयोध्या, राम राज और रामावतार जैसे जुमले उछालने का कोई खास मतलब नहीं रहता है। अमरीकी पादरियों और जापानी बौद्ध भिक्षुओ ने आधुनिक काल में जीसस और बुद्ध के नए अवतार को खोज निकाला। आचार्य जी पुराण काल और आधुनिक काल के महानायक का दो चित्र पेश करते हैं। इसमें रामावतार और राम राज की अनुपम छवि उभरती है। गाम राम का गायन होता है और हिन्द स्वराज का पुनर्पाठ होता है। भारतीय राजनीति के इस बोध में उदारता की सबसे पवित्र मिसाल है। आज उत्तरी ध्रुव से लेकर दक्षिणी ध्रुव तक इसका पाठ करने की जरूरत है। मोरे पाकिस्तान निर्माण का रहस्य समझाते हैं। हिंदू राष्ट्र के निर्माण में गांधीजी की भूमिका से वाकिफ कराते हैं। हालांकि इसे स्वीकार करने वाले दक्षिण पंथी जमात में कम लोग हैं। पर वहां भी समझदार लोगों की कोई कमी नहीं है। यदि महाराष्ट्र और गुजरात को छोड़ दें तो ऐसा भी लग सकता है। इसके अलावा दक्षिण में अंतिम जन तक पहुंचने के सवाल पर गांधीवादी समाजवाद की पैरवी करने वाले भी मौजूद हैं।
सरयू नदी के पावन तट पर स्थित अयोध्या का इतिहास राम से पुराना है। अयोध्या और राम राज की व्याख्या अयोध्या शब्द के ही व्युत्पत्ति में संनिहित है। युद्ध विहीन होने की उन्नत अवस्था बापू के अहिंसा का स्मरण भी है। उत्तरी ध्रुव से लेकर दक्षिणी ध्रुव तक लोग यदि आपस में जुड़ कर राम राज के लिए प्रयास करें तो परिणाम की कल्पना किया जा सकता है। यह महायज्ञ राजनीति के बदले लोकनीति की मर्यादा पर केन्द्रित होने पर ही लक्ष्य साध सकेगी।