भोपाल,26 जून (आरएनएस)। ग्वालियर की पत्रकारिता करने वाले वह लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ माधवराव सिंधिया के चुनाव लडऩे की वजह से महल की साख जो ग्वालियर के लोगों के सामने खड़ी हुई थी उस साख की वजह से अटल जी जैसे भाजपा के महारथी को उस स्थिति में जबकि स्वर्गीय विजयाराजे सिंधिया स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी को जिताने के लिए मशक्कत कर रही थीं, लेकिन ग्वालियर के पत्रकार यह भी जानते हैं कि उनकी इस भाजपा जिताऊ रणनीति के साथ-साथ ग्वालियर महल की इज्जत भी दांव पर लगी थी।
वर्षों बाद यह सवाल अब ग्वालियर के लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या पूर्व मंत्री और जनप्रिय नेत्री माया सिंह को भाजपा द्वारा महापौर को चुनावी मैदान में न उतारने के बाद ग्वालियर भाजपा के नेता सुमन शर्मा को महापौर के पद पर आसीन कर पाएंगे, लोगों में चर्चा का विषय यह भी है कि जिस ग्वालियर महल से जुड़ी माया सिंह (मामी) को भाजपा द्वारा टिकट न दिये जाने के कारण क्या ग्वालियर महल में आस्था रखने वाले लोग सुषमा शर्मा के पक्ष में मतदान कर पाएंगे या फिर वही अटल बिहारी वाजपेयी का इतिहास पुन: महापौर के चुनाव में दोहराया जाएगा, हालांकि भाजपा के नेताओं को सुमन शर्मा को विजयश्री दिलाने के लिये कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है अब यह चुनाव का परिणाम बतायेगा कि उन सब भाजपाई नेताओं की मेहनत क्या सुमन शर्मा को विजयश्री दिला पाएगी? ग्वालियर के लोगों में जो आम चर्चा है उसमें यह भी लोग बड़े चटकारे लेकर करते नजर आ रहे हैं कि इसी ग्वालियर में शिवराज सिंह मंत्रिमण्डल के विद्युत मंत्री प्रद्मुन सिंह तोमर के विधानसभा चुनाव के समय उनके ही एक निर्वाचन क्षेत्र में एक वार्ड के विकास के लिये तोमर ने क्या-क्या किया था यही नहीं लोकतंत्र के इस चुनाव के दौरान लोकतंत्र की प्रथम सीढ़ी चडऩे के लिए शराब और नोटों की परम्परा इस भारतीय लोकतंत्र में अब घर कर गई है उस परम्परा का भी निर्वाहन भी तोमर द्वारा अपने विधानसभा चुनाव के दौरान जमकर किया गया था उसके बाद भी उनके विधानसभा क्षेत्र में एक ऐसा वार्ड भी जहाँ से उन्हें लोकतंत्र की परम्परा के निर्वाहन के बाद भी कम वोट मिले थे, इससे यह भी साफ हो जाता है कि अब लोकतंत्र में शराब, नोट, साड़ी या जेवर के चुनाव के वितरण के पूर्व भी मतदाता किस तरह से प्रत्याशी को धोखा देता है।
अब देखना यह है कि जिस ग्वालियर क्षेत्र में ग्रामीण सरकार के निर्वाचन के दौरान जमकर कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ी हैं उसी ग्वालियर में जहां एक विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी के लोकप्रिय नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया के विरुद्ध वहां से एक जमादारनी को खड़ा किया था यह इतिहास भी ग्वालियर के निर्वाचन में लिखा जा चुका है, तो वहीं अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोकप्रिय नेता को पराजय का स्वाद भी इसी ग्वालियर के मतदाताओं ने चखाकर इतिहास रचा था अब देखना यह है कि महल से दूर माया सिंह को भाजपा के द्वारा महापौर का टिकट न देने के बाद भी क्या महल की नाराजगी को झेलते हुए भाजपा के नेता अपनी पार्टी के प्रत्याशी को विजयश्री दिला पाते हैं या नहीं यह अब नगर निगम चुनाव के परिणाम के बाद ही तय होगा, हालांकि सुमन शर्मा को जिताने के लिए भाजपा के नेताओं को पसीना आ रहा है।
अनिल पुरोहित/अशफाक