रविवार को प्रियंका गांधी ने आगामी मध्य प्रदेश चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी के प्रचार की शुरूआत वनवासी बहुल महाकोशल क्षेत्र से करते हुए प्रदेश के मतदाताओं को पांचसूत्रीय वादों की गारंटी का एलान किया। परंतु उनके दौरे की सबसे खास बात रही माँ नर्मदा का पूजन। ऐसा करके प्रियंका गांधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण की उस धारणा को तोड़ने का प्रयास किया जिसके चलते कांग्रेस से अधिसंख्य हिंदू दूर हो गए थे।
हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने खासकर गांधी परिवार के किसी सदस्य ने हिंदूवादी मतदाताओं को वापस अपनी ओर लाने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा लिया हो। राहुल गांधी का स्वयं को दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण बताना हो अथवा भारत जोड़ो यात्रा के दौरान देश के प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करना हो, कांग्रेस और गांधी परिवार दोनों सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलकर हिंदू हितैषी दिखने का प्रयास कर रहे हैं और भाजपा के हार्ड हिंदुत्व के मुक़ाबले उन्हें हिंदुओं का साथ भी मिल रहा है।
याद कीजिए मई, 2023 में संपन्न कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में बजरंग दल को प्रतिबंधात्मक संगठनों में डालने का निर्णय लिया तो भाजपा ने पूरा चुनाव प्रचार बजरंग बली को बंधक बनाने से जोड़ दिया। इसके उलट कांग्रेस ने सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ, सुंदरकांड का पाठ जैसे आयोजनों से जनता को जोड़ने की कवायद की और बजरंग दल के पदाधिकारियों से जुड़े विवादों को सार्वजनिक किया जिसके परिणामस्वरूप कर्नाटक में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला और भाजपा की झोली से दक्षिण का प्रवेश द्वार छिन गया।
इसी प्रकार 24 मई, 2023 को पुष्य नक्षत्र के अवसर पर राजस्थान की कांग्रेस सरकार के देवस्थान विभाग ने 593 मंदिरों पर ॐ लिखा पीला ध्वज लगाया और इसे सर्वधर्म सहिष्णु कदम बताते हुए सेवा परमो धर्म के रास्ते पर चलने का माध्यम बताते हुए जमकर प्रचार किया। वहीं 01 से 03 जून, 2023 तक छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन हुआ जिसमें रामायण के अरण्य कांड को आधार बनाकर विभिन्न प्रस्तुतियां हुईं। दण्डकारण्य अर्थात दक्षिण कोशल का भाग वर्तमान छत्तीसगढ़ में माना जाता है और प्रभुश्री राम ने वनवास के 10 वर्ष इसी क्षेत्र में बिताये थे अतः इस आयोजन की प्रासंगिकता बढ़ गई।
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खास बात यह थी कि आयोजन का शुभारम्भ और समापन हनुमान चालीसा के सामूहिक पाठ से हुआ। आयोजन के बहाने ही सही, छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार श्रीराम को सामाजिक समरसता का अग्रणी बताते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का दावा कर रही है। इससे पूर्व भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गाय के गोबर से बने सूटकेस में राज्य का बजट प्रस्तुत कर सॉफ्ट हिंदुइज्म की ओर कदम बढ़ा चुके हैं।
बजरंग दल से सभी परिचित हैं किन्तु मध्य प्रदेश में बजरंग सेना नाम का भी एक संगठन है जो उत्तर प्रदेश की हिन्दू युवा वाहिनी की तर्ज पर बना था। 06 जून, 2023 को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की उपस्थिति में जय श्रीराम के नारों के साथ बजरंग सेना का कांग्रेस में विलय हो गया। स्वयं कमलनाथ को हनुमान भक्त के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। उन्होंने मध्य प्रदेश में सबसे बड़ी हनुमान प्रतिमा बनवाकर यह साबित भी किया है।
तेलंगाना कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी जो छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सदस्य थे, तो तेलंगाना के 100 विधानसभा क्षेत्रों में राम मंदिर बनवाने का दावा कर रहे हैं। गौरतलब है कि तेलंगाना में 119 विधानसभा क्षेत्र हैं और यहां भी वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। अर्थात् जिन राज्यों में चुनाव हैं वहां कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ लोक-लुभावन वादों से अपने लिए संभावनाएं दिख रही हैं।
उपरोक्त सभी उदाहरण भाजपा के हार्ड हिंदुत्व के बरक्स कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुइज्म को बढ़ावा देते हुए हिन्दुओं को वापस एकजुट करने का प्रयास हैं। दरअसल, 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात देश की राजनीति में हार्ड हिंदुत्व के प्रवेश ने कांग्रेस की प्रो मुस्लिम पालिटिक्स को कड़ी चुनौती दी है। 2019 में पिछली बार से बड़ी जीत ने भाजपा को उन वादों को पूरा करने का अवसर दिया जिन्होंने पार्टी की नींव को मजबूत किया। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, जम्मू-कश्मीर से 370 की समाप्ति, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दों ने भाजपा के सियासी रथ को अजेय बना दिया था।
लेकिन दूसरे कार्यकाल में ही मोदी ने इसमें थोड़ी नरमी लाने का संकेत देना शुरु कर दिया। विवाद की स्थिति में अपने ही हिंदूवादी नेताओं के साथ न खड़ा होना, मुस्लिम समुदाय को जोड़ने का अति प्रयास, मुस्लिमों के लिए सरकारी योजनाओं का बढ़ता फंड, वक्फ बोर्ड जैसी जमीन कब्जाने वाली संस्थाओं पर अंकुश न लगा पाना, लव जिहाद पर कानून न बना पाना जैसे कई मुद्दों ने भाजपा और कांग्रेस के अंतर को समाप्त कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा तो यहां तक बोल गये कि भगवा मतलब भाजपा नहीं होता।
भाजपा में आये इस बदलाव से उस बड़े वर्ग का मोह-भंग हुआ है जो भाजपा को हिंदुत्ववादी राजनीति का अगुवा मानता था। इस वर्ग की अनदेखी ने भाजपा से उसके कोर वोटर को बड़ा सदमा दिया है। अब यह वर्ग या तो चुनाव में उदासीन है या मतदान करने नहीं जा रहा। स्वाभाविक है 2024 का आमचुनाव भाजपा के लिए कठिन हो सकता है क्योंकि उसका कोर सपोर्टर भाजपा की नयी सेकुलर नीति से निराश है। ऐसे में कांग्रेस अगर अपनी हिन्दू विरोधी छवि को सुधारती है तो उसे इसका फायदा मिलना तय है।
हालिया घटनाक्रमों को देखें तो लोक-लुभावन योजनाओं के साथ ही कांग्रेस जहां सॉफ्ट हिंदुइज्म अपना रही है वहीं भाजपा नये वोटरों की तलाश में पसमांदा मुसलमानों के पीेछे जा रही है। उसके पिटारे में लोक-लुभावन योजनाओं के वादे भी नहीं हैं क्योंकि यदि किसी राज्य में वह ऐसा करती है तो अन्य राज्यों में इसकी मांग उठेगी जिसे पूरा कर पाना भाजपा की राष्ट्रीय नीति में शामिल नहीं है। अतः यह कहना उचित होगा कि भाजपा के हार्ड हिंदुत्व के मुकाबले में अगर कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुइज्म मतदाताओं को आकर्षित करता है तो इसकी काट फिलहाल तो भाजपा के पास नहीं है।
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।