नई दिल्ली: सूर्य की सतह तक आज तक कोई नहीं पहुंच पाया. यह इतना गर्म है कि सही तापमान भी नहीं मापा जा सका है. सिर्फ वैज्ञानिकों ने एक तकनीक की मदद से अनुमान लगाया है. माना जाता है कि सूर्य का तापमान 1.5 लाख डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा होगा. सिर्फ उसकी सतह का तापमान ही 6000 डिग्री सेल्सियस हो सकता है. हमारे सौरमंडल में सूर्य से ज्यादा गर्म कोई ग्रह नहीं. लेकिन एक बार आश्चर्य करने वाली है कि इतना तापमान होने के बावजूद सैटेलाइट सूर्य के करीब तक कैसे पहुंच जाते हैं? पिघलते क्यों नहीं? आखिर वे किस मैटेरियल के बने होते हैं? ऑनलाइन प्लेटफार्म कोरा पर यही सवाल पूछा गया. आइए जानते हैं कि इसका सही जवाब क्या है.
भारत ने भी अपना सोलर मिशन ‘आदित्य-एल1’ (Aditya l1 launch) लांच किया है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचेगा और सूर्य के कुछ करीब जाकर रुकेगा. यहीं से वह सूर्य की गतिविधियों, आंतरिक और बाहरी वातावरण का अध्ययन करेगा. बता दें कि सूर्य से धरती की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है. इसमें सिर्फ 15 लाख किलोमीटर की ‘आदित्य-एल1’ जाएगा. 5 साल पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पार्कर सोलर प्रोब (Parker Solar Probe) भेजा था, जो सूर्य के बेहद करीब पहुंचा. वहां तापमान लगभग 1377 डिग्री सेल्सियस था. ऐसे में सवाल है कि इतने तापमान में भी यह अंतरिक्ष यान पिघला क्यों नहीं. जवाब खुद नासा ने दिया है.
साढ़े चार ईंच मोटी एक ढाल करती सुरक्षा
NASA के मुताबिक, पार्कर सोलर प्रोब को खास तरीके से डिजाइन किया गया था, ताकि यह 10 लाख डिग्री फॉरेनहाइट तक का तापमान भी सह सके. इसकी कुंजी एक खास तरह के डिस्क में है, जिसमें यान को रखा गया है. इसमें एक थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम लगा हुआ है. सूरज की भयंकर गर्मी से अंतरिक्षयान और उपकरणों की सुरक्षा इसमें लगाई गई साढ़े चार ईंच मोटी एक ढाल करेगी, जिसे कार्बन से तैयार किया गया है. यह पिघलेगा क्यों नहीं, इसके पीछे गर्मी बनाम तापमान की अवधारणा को समझना होगा.
तापमान और गर्मी दोनों अलग-अलग चीजें
असल में तापमान और गर्मी दोनों अलग-अलग चीजे हैं. कोई चीज कितनी गर्म होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहां का वातावरण कैसा है. वहां कितनी वस्तुएं मौजूद हैं. अगर वातावरण अंतरिक्ष की तरह खाली होगा तो वहां मौजूद कोई भी चीज कम गर्म होगी. जैसे सूर्य के आसपास बहुत ज्यादा चीजें नहीं है, इसलिए वहां तापमान ज्यादा होने के बावजूद गर्मी अपेक्षाकृत कम होगी. यानी अगर वातावरण में खालीपन हो तो आप हजारों डिग्री तापमान में भी बिना गर्मी महसूस किए रह सकेंगे.
ऐसे ट्रैवल करती ऊर्जा
नासा के मुताबिक, तापमान मापता है कि वातावरण में कण कितनी तेजी से घूम रहे हैं. जबकि उष्मा उनके द्वारा स्थानांतरित की जाने वाली ऊर्जा की कुल मात्रा को मापती है. यहीं पर सारा खेल हो जाता है. कण तेजी से आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन अगर वे संख्या में कम हैं तो अधिक तापमान लेकिन कम गर्मी लेकर जाएंगे. चूंकि अंतरिक्ष अधिकतर खाली है, इसलिए बहुत कम कण हैं जो अंतरिक्ष यान में ऊर्जा स्थानांतरित कर सकते हैं. आप इसे ऐसे समझें कि अगर अपने हाथ को गर्म ओवन में डालते हैं तो क्या होता है. ज्यादा गर्मी महसूस नहीं होती. लेकिन अगर उतनी ही गर्मी वाला गर्म पानी हाथ पर डालते हैं तो छाले आ जाएंगे. ओवन में आपका हाथ गर्म पानी की तुलना में ज्यादा तापमान सहन कर सकता है. क्योंकि वह कई कणों के संपर्क में नहीं है.