मनोज कुमार मिश्र
आठ साल से प्रचंड बहुमत से दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी(आप) नारों से हटकर दिल्ली के लिए कुछ ठोस काम करने की योजना बनाई है। 22 मार्च 2023 को पेश किए गए दिल्ली के बजट में दिल्ली के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने हर भाषण में इसे दोहरा भी रहे हैं।
यह आम तौर पर कहा जाता रहा है कि दिल्ली के बुनियादी ढ़ांचे को बेहतर करने का जो काम कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने जो किया, वह दिल्ली के लिए मील का पत्थर है। यह अलग बात है कि आप के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दिल्ली में चुनाव जीतने का फार्मूला शीला दीक्षित से बेहतर साबित हुआ।
भले ही दीक्षित तीन बार मुख्यमंत्री रहीं लेकिन कभी उतनी सीटें नहीं जीत पार्इं जितनी केजरीवाल जीत पाए। इसका कारण मुफ्त बिजली-पानी या दिल्ली के मतदाताओं को अपनी बातों से प्रभावित करने की उनकी कला हो सकती है लेकिन यह तो साबित हो गया कि बिना ठोस काम किए कोई दल एकतरफा जीत हासिल कर सकता है।
इस बार 78,800 करोड़ के बजट में 21 हजार करोड़ रुपए दिल्ली के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रावधान किया गया है। भाजपा के साथ आप की लड़ाई तो जारी है ही, उसमें बजट पेश करने के बहाने नई लड़ाई शुरू कर दी गई। केजरीवाल सरकार ने बिना केंद्र से बजट मंजूरी की औपचारिकता पूरी किए 21 मार्च, 2023 को साल 2023-24 का बजट पेश करने की घोषणा कर दी।
सरकार की हर कमी पर टोकने वाले उपराज्यपाल ने कई मामलों पर एतराज जता दिया और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उसे तुरंत मंजूरी नहीं दी। कैलाश गहलोत ने बजट पेश किया। दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होते है फिर भी उसे स्वतंत्र राज्य की तरह बजट पेश करने का अधिकार सालों से मिला हुआ है। वित्त मंत्रालय के एक आला अधिकारी बताते हैं कि यह अधिकार केंद्र में संयुक्त मोर्चा की 1996-98 की सरकार के दौरान गृह मंत्री रहे इंद्रजीत गुप्त ने तब की दिल्ली की भाजपा सरकार को दिलाए। उसके बाद यह परंपरा बन गई।
दिल्ली सरकार के इन्हीं अधिकारों के बूते ही शीला दीक्षित ने दिल्ली के बुनियादी ढाचे में सुधार के काम करवाए। कई विश्वविद्यालय बने।दिल्ली की पहली निर्वाचित भाजपा सरकार (1993-98) ने कई कालेज बनवाए। भाजपा सरकार ने स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय और अस्पताल बनाने की शुरुआत की। बड़ी संख्या में फ्लाईओवर, अंडरपास, सामुदायिक केन्द्र शीला दीक्षित सरकार ने बनवाए।
मेरी दिल्ली में ही सवारूं नारे को उन्होंने सार्थक किया। शीला दीक्षित ने राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी के नाम पर मिले पैसे से दिल्ली मेट्रो को गति दी। बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरे राज्य में उस राज्य से मिलकर बिजली घर बनाए। चार हजार नई बसें खरीदी।
इस सरकार की प्राथमिकता बिजली- पानी मुफ्त करके चुनाव जीतना था। ठोस काम के बजाय रंग-रौगन के बूते देश-विदेश में दिल्ली माडल का डंका बजाना था। इस बजट से वह हकीकत के करीब आती दिख रही है। राजनेता तो राजनीति करेंगे ही लेकिन सरकार के ठोस कामों को बताने के लिए किसी विज्ञापन के सहारे की जरूरत नहीं है।
शीला दीक्षित ने दिल्ली में ठोस विकास कार्यों की इतनी बड़ी लकीर खींच दी कि उनकी सरकार के जाने के दस साल बाद और उनके न रहने के चार साल बाद भी लोग हर काम की तुलना उनकी सरकार से करते हैं। शायद अब केजरीवाल सरकार भी ठोस काम करने पर ज्यादा ध्यान देने वाली है। उसकी शुरुआत इस बजट से हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ दिल्ली की अफसरशाही पर किसका नियंत्रण हो यह तय करने के लिए सुनवाई कर रही है। यह तो आप को तय करना है कि वे दिल्ली के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाकर इसको राजधानी जैसा बनाए रखेंगे या केवल राजनीतिक फायदे के लिए बयानबाजी और हवाई दावे करेंगे। इस बजट से तो सकरात्मक काम होने की ही उम्मीद बंध रही है। शायद उन्हें लगने लगा है कि ठोस विकास से ही उन्हें दूरगामी लाभ मिलेगा।
बार-बार उपराज्यपाल बदलने के बावजूद दिल्ली सरकार से केंद्र सरकार का टकराव कम नहीं हुआ। चार जुलाई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने चार अगस्त, 2016 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि गैर आरक्षित विषयों में दिल्ली की सरकार फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार का मतलब उपराज्यपाल है।
नौकरशाही पर अधिकार के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई कर रहा है। तब तक दिल्ली सरकार की उपराज्यपाल से इस कदर टकराव बढ़ा थी कि उपराज्यपाल ने आरक्षिक विषयों पर सरकार और विधान सभा में चर्चा करानी तक बंद करवा दी थी। उसके बाद पिछले साल मार्च महीने में संसद के दोनों सदनों से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन)-2021 विधेयक पास करवाकर उपराज्यपाल को पहले से ज्यादा ताकतवर बना दिया। इसी बदलाव के कारण हर फैसले में उपराज्यपाल की सहमति जरूरी है। जो हालात हैं उसमें इस टकराव का अंत नहीं दिख रहा है। इससे दिल्ली के कामकाज काफी प्रभावित हो रहा है।