प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में प्रदूषण से हुआ बुरा हाल दुखद है। प्रदूषण से स्थिति इतनी खराब हो गई है कि दिल्ली सरकार ने बुधवार को सभी स्कूलों में 18 नवंबर तक के लिए अवकाश की घोषणा कर दी है। वैसे निचली कक्षाएं तो 3 नवंबर से ही नहीं लग रही है। इसे शीतकालीन सूटियां कहा जा रहा है, पर वास्तव में ये प्रदूषणकालीन छुट्टियों है। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण लगातार ‘गंभीर’ श्रेणी बना हुआ है। दीपावली तक प्रदूषण पटने की कोई उम्मीद नहीं है, इसके बाद ही प्रदूषण-रोधी नियमों को ठीक से लागू किया जाएगा और पराली जलाने की घटनाओं में भी कमी आएगी।
हालांकि ज्यादातर स्कूल ऑनलाइन कक्षाएं चलाएंगे और यह जरूरी भी है। कोरोना और लॉकडाउन ने ऑनलाइन पढ़ाई की क्षमता विकसित कर दी है और इसका लाभ लेने में कोई हर्ज नहीं है। अवकाश प्रदूषण से बचने- बचाने के लिए मंजूर हुए है, पर इसका मतलब यह नहीं कि बच्चे पढ़ना और शिक्षक पढ़ाना छोड़ दें। स्कूलों को सुनिश्चित करना होगा कि पढ़ाई में नुकसान न हो। शिक्षा केवल भविष्य से जुड़ा विषय नहीं है, यह रोजगार से भी जुड़ा क्षेत्र है, अतः प्रदूषण व अवकाश का कम से कम असर शिक्षा पर पड़ना चाहिए।
दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में जो धुआं व्याप्त है, उसमें एक तिहाई योगदान पराली का बताया जा रहा है। क्या पंजाब या हरियाणा में भी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है? वहां शायद दिल्ली की तरह पढ़ाई प्रभावित नहीं हो रही है, पर वहां लोगों का स्वास्थ्य तो खतरनाक रूप से प्रभावित हो रहा होगा। क्या वहां के लोग इस बारे में सोच रहे हैं? क्या वहां की सरकारें लोगों के स्वास्थ्य के प्रति पर्याप्त रूप से जागरूक हैं? मोटे तौर पर हवा में प्रदूषण की मात्रा सुरक्षित सीमा से सात से आठ गुना अधिक हो गई है। कुछ पैमानों पर तो दिल्ली में हवा सुरक्षित सीमा से 30 से 40 गुना अधिक है। गंगा के मैदानी इलाकों के कई शहरों में हवा की गुणवत्ता
खतरनाक बनी हुई है। यह बात बार-बार दोहराने की जरूरत है कि यह प्रदूषण सामान्य नहीं, जानलेवा है। ध्यान रहे, करोड़ों लोगों की दिनचर्या प्रभावित हुई है, सुबह-शाम गुलजार रहने वाले उद्यान सुने पड़ गए हैं, लोगों का बाहर टहलना तक बंद हो गया है। ऐसे में, जीवन शैली से जुड़ी अन्य बीमारियों को भी मौका मिलेगा। अच्छी बात है, एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण का संज्ञान
लिया है और तमाम सरकारों को फटकारते हुए उचित ही कहा है कि इस मुद्दे पर हर समय राजनीतिक लड़ाई नहीं हो सकती। शीर्ष अदालत ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाई जाए। अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि वह प्रदूषण के कारण लोगों को मरने नहीं दे सकती। दिल्ली आगे बढ़कर हरियाणा को जिम्मेदार ठहराए और हरियाणा ठीकरा पंजाब के माथे फोड़ दे. अब तक यही तो चलता आ रहा है। यह आम लोगों के लिए भी जागने का समय है। सबको अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि वह इस प्रदूषण में कितना योगदान दे रहा है? महात्मा गांधी ने इस देश के आम लोगों को बहुत पहले ही आगाह किया था कि सिर्फ सरकार के भरोसे मत रहना। वाकई प्रदूषण की चुनौती बहुत बड़ी हो गई है और हमें सोचना चाहिए कि हम व्यक्तिगत रूप से और सम्मिलित रूप से भी अपने प्रदेश, देश के लिए क्या कर सकते है।
यह आम लोगों के लिए भी जागने का समय है। अब सबको अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि वह इस प्रदूषण में कितना योगदान दे रहा है?