पहल स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: दिल्ली-NCR के 150 स्कूलों को बम से उड़ाने की मिली धमकी की जांच मुश्किल हो गई है. दरअसल, इन ईमेल के IP ऐड्रेस को जब ट्रेस किया गया, तो उसकी लोकेशन रूस की मिली. हालांकि, प्रॉक्सी सर्वर के इस्तेमाल की पुलिस को आशंका है. पुलिस का कहना है कि इन ईमेल के तार डार्क वेब से जुड़े हो सकते हैं. इन्हें भेजने में विदेशी सर्वर और डार्क वेव का इस्तेमाल हुआ होगा. इस कारण इन्हें ट्रैक करना आसान नहीं.
पुलिस का कहना है कि ईमेल भेजने में विदेश में एस्टेब्लिश सर्वर और डार्क वेब का इस्तेमाल किया हो सकता है. डार्क वेब की वजह से पुलिस के लिए ईमेल भेजने वाले को खोज पाना मुश्किल हो जाता है.
पहले भी कई स्कूलों को ईमेल के जरिए बम से उड़ाने की धमकी दी गई है, और ज्यादातर मामलों में ईमेल भेजने वालों का पता नहीं चलता. आइए जानते हैं साइबर अपराधों के जानकार प्रकाश मेहरा के साथ कि डार्क वेब में ऐसा क्या है, जो यहां सब कुछ खो जाता है.
क्या होता है Dark वेब ?
डार्क वेब कुछ अलग नहीं है, ये भी इंटरनेट का ही हिस्सा है, लेकिन इस तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल होता है. ये इंटरनेट की दुनिया का वो काला हिस्सा है, जहां अवैध और वैध हर तरह के काम होते हैं. यहां तक आपका सर्च इंजन आसानी से नहीं पहुंच सकता है. इसके लिए स्पेशल ब्राउजर का इस्तेमाल किया जाता है.
इंटरनेट की दुनिया तीन हिस्सों में बटी हुई है. हम जिस हिस्से का इस्तेमाल अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कर रहे हैं, इसे सरफेस या सेफ इंटरनेट कहते हैं. ये इंटरनेट की पूरी दुनिया का महज 4 परसेंट हिस्सा ही होता है. इसके बाद 96 परसेंट हिस्सा डीप वेब और डार्क वेब होता है.
आप इसे समुद्र के उदाहरण से समझ सकते हैं. जिस तरह के समुद्र तीन हिस्सों में होता है. पहला समुद्र की सतह, जहां गूगल और दूसरे सर्च इंजन मौजूद होते हैं. इस स्तर पर आपको वे कंटेंट्स दिखते हैं, जो सर्च इंजन पर इंडेक्स होते हैं. इसके बाद आता है डीप वेब (Deep Web), जो समुद्र के उस हिस्से जैसा होता है, जहां गोता लगाया जाता है.
ये इंटरनेट का वो हिस्सा है, जहां ऐसे कंटेंट मौजूद होते हैं, जिन्हें वेब ब्राउजर या सर्च इंजन आईडेंटिफाई नहीं करते हैं. हो सकता है आपके रोजमर्रा के काम में कई ऐसे कंटेंट मौजूद हों, जो डीप वेब का हिस्सा हों.
इंटरनेट की दुनिया का अंडरवर्ल्ड !
वही डार्क वेब को आप इंटरनेट की दुनिया का अंडरवर्ल्ड समझ सकते हैं. यहां पर यूजर्स के डेटा की खरीद-फरोख्त होती है. लीक हुए डेटा को हैकर्स डार्क वेब पर ही बेचते हैं. इसे एक्सेस करने के लिए आपको स्पेशल ब्राउजर की जरूरत होती है. इसके आप TOR (The Onion Router) के जरिए एक्सेस कर पाएंगे.
इस दुनिया में ज्यादातर वे वेब पेज और कंटेंट होते हैं, जिन्हें सामान्य सर्च इंजन इंडेक्स नहीं कर सकते हैं. इसे बहुत ही खतरनाक माना गया है. यहां पर आप किसी हैकर का शिकार भी बन सकते हैं. इतना ही नहीं डार्क वेब में किसी को ट्रैक करना बहुत ही मुश्किल है. यही वजह है कि हैकर्स इसका इस्तेमाल करते हैं.
VPN और प्रॉक्सी नेटवर्क का इस्तेमाल
IP ऐड्रेस को बदलने के लिए VPN और प्रॉक्सी नेटवर्क का इस्तेमाल होता है. VPN यानी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क ऐसी टेक्नोलॉजी होती है, जो आपके कनेक्शन को सिक्योर और प्राइवेट रखने में मदद करती है. इसमें एन्क्रिप्शन का इस्तेमाल होता है, जिससे यूजर का IP सुरक्षित रहता है.
VPN यूजर के लिए एक फेक IP ऐड्रेस क्रिएट करता है. इसकी वजह से यूजर की सही लोकेशन का पता लगा पाना मुश्किल हो जाता है. – IP ऐड्रेस यानी इंटरनेट प्रोटोकॉल किसी डिवाइस के लिए आधार कार्ड की तरह होता है यानी यूनिक. इसकी मदद से ही डिवाइस की पहचान होती है.
यूजर की लोकेशन डिटेल्स
IP ऐड्रेस कुछ नंबर्स का एक सेट होता है. इसमें यूजर की लोकेशन डिटेल्स भी होती हैं. IP ऐड्रेस को IANA (इंटरनेट असाईड नंबर अथॉरिटी) जारी करती है. किसी भेजे गए ईमेल से किसी की लोकेशन पता करने के लिए पहले उसका IP ऐड्रेस हासिल किया जाता है और फिर उसे ट्रेस किया जाता है.
साइबर टीम्स के सामने बड़ी चुनौती !
अब दिल्ली पुलिस और साइबर टीम्स के सामने बड़ी चुनौती है कि कैसे डार्क वेब और प्रॉक्सी सर्वर के नेटवर्क को फ्रैक करके उस शख्स या संदिग्ध संगठन का पता लगाया जा सके, जिसने दिल्ली-NCR के 150 स्कूलों को खौफ से भर दिया. जिससे स्कूल गए अपने बच्चों को लेकर हर पेरेंट परेशान हुआ और साथ ही सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती सामने आई.
देखिए पूरी रिपोर्ट प्रकाश मेहरा के साथ