हरिशंकर व्यास
हां, भारत की हिंदू सत्ता की माचिस में तिलियां बहुत बाकी हैं। एक के बाद एक अग्निपथ बनने हैं। चिंता का ताजा मामला सेना का है। सेना और सेना के प्रमुखों के साथ रक्षा मंत्री ने सैनिकों की भर्ती की बुनियादी बात पर जो घोषणा की उसका नौजवानों में जो रिएक्शन बना है तो उसका सैनिकों के मनोबल पर क्या असर होगा? ध्यान रहे राजस्थान, बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड, यूपी आदि में नौजवानों में सैनिक बनने का आइडिया इलाके में सैनिकों के घर-परिवार- रिश्तेदारी से बना होता है। सैनिक जिंदगी के स्थायित्व, सुविधाओं, वेतन आदि का क्रेज नौजवानों में है। इसलिए भर्ती की नई प्रक्रिया का असर गहरा होगा।
पता नहीं ‘अग्निपथ’ योजना प्रधानमंत्री मोदी की सर्वज्ञता से बनी या अधिकारियों ने इसे बनाया लेकिन इतने बड़े परिवर्तन को बिना पायलट अनुभव या सार्वजनिक फीडबैक के अचानक अपना लेना वैसा ही मामला है जैसा नोटबंदी का था या कृषि विधेयकों का था। इस योजना में नंबर एक लोचा 75 प्रतिशत भर्ती का चार साल बाद नौकरी से बाहर होना है। तभी सेना के ‘अग्निवीर’ आंगनवाड़ी के सेवादार से अधिक क्या होंगे? छोटी सी ट्रेनिंग से कैसे सैनिक बनेंगे और कितनों की सीमा पर रियल पोस्टिंग होगी? याकि सैनिक वाला ठसका होगा? इनका उपयोग अफसरों के अर्दलियों के रूप में न हो और अधिकारियों को खुश करके शेष 25 प्रतिशत का स्थायी सैनिक बनने का तनिक भी अंदरखाने का यदि सिस्टम बना तो सैनिकों के मनोबल की भविष्य में क्या दशा-दिशा होगी, ये गंभीर सवाल है।
तभी अपना मानना है कि भर्ती की पुरानी प्रक्रिया को जारी रखते हुए इस नई प्रक्रिया को पायलट रूप में शुरू करना था। पायलट प्रोजेक्ट के अनुभव, प्रक्रिया निर्माण के बाद फैसला लिया जाना चाहिए था। लेकिन माचिस से एक तीली निकाली, एक तरफ 10 लाख नौकरियां एक ट्विट करके प्रधानमंत्री ने पैदा कर दी तो उधर प्रेस कांफ्रेंस की हेडलाइंस से ‘अग्निपथ’ और ‘अग्निवीर’ पैदा कर दिए। परिणाम सामने है। लाखों ‘अग्निवीर’ तीली की चिंगारी के बाद क्या-क्या स्वाहा करते हुए नहीं हैं।
बहरहाल, इस सप्ताह माचिस की तिलियों से आर्थिकी तेजी से जलती दिखाई दी। तमाम झूठे आंकड़ों के बावजूद विदेशी निवेशक लगातार भारत से भागते हुए हैं। उनकी जगह भारत की सरकारी संस्थाएं, म्यूचुअल फंड बेइंतहां शेयर खरीद कर, भारत के बेचारे छोटे-छोटे बचतकर्ताओं का पैसा सेन्सेक्स को ऊंचा बनाए रखने की कोशिश में जाया करते हुए हैं। सुबह देशी पासा लगता है और दोपहर होते-होते विदेशी निवेशकों के शेयर बेचने से बाजार गिरता होता है। इकोनॉमी का हर तरह से भ_ा बैठते हुए है। रुपया आगे भारी लुढक़ना है।
सवाल है सेना, आर्थिकी, लोकतंत्र, सामाजिक सौहार्द के मध्य विपक्ष और राहुल गांधी व राष्ट्रपति चुनाव की हलचल का क्या कोई मतलब है? कुछ नहीं। इस तरह के तमाम मामलों का रोडमैप गुजरात मॉडल से बना चला आ रहा है। अग्नि से जन्मा अग्निनायक यदि भारत को अग्निपथों पर न दौड़ाए, भारत को अग्नि में नहीं पकाए, हिंदुओं से अग्नि में होम न कराए तो हिंदू राष्ट्र की तेजस्विता का दुनिया कैसे लोहा मानेगी? नरेंद्र मोदी इतिहास के वे युग पुरूष होने हैं जो सब कुछ की राख की भस्म से वह अजूबा हिंदू राष्ट्र बनाएंगे, जिसे देखकर दुनिया अंगुलियां दबा सिटी बजाएगी।