कार्यपालिका और न्यायपालिका में एक तरह से शीतयुद्ध जैसा माहौल हो गया है। सरकार की तरफ से केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू और सोशल मीडिया के सरकारी योद्धाओं ने कमान संभाली है तो दूसरी ओर से खुद सर्वोच्च अदालत ने और उसकी मदद में हैं सुप्रीम कोर्ट के तमाम ऐसे वरिष्ठ वकील, जो सांसद बन गए हैं। मिसाल के तौर पर कानून मंत्री ने गुरुवार को संसद में लंबित मुकदमों, अदालत की छुट्टियों, जनहित याचिका आदि का मुद्दा उठाया और कहा है कि बड़ी संख्या में मुकदमे न्यायिक नियुक्तियों की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली की वजह से हैं और जब तक यह व्यवस्था नहीं बदलेगी, तब तक इस सिस्टम पर सवाल उठते रहेंगे।
इसके तुरंत बाद कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, मनीष तिवारी आदि ने संसद भवन के परिसर में कानून मंत्री और केंद्र सरकार दोनों पर निशाना साधा। पर असली बात खुद सुप्रीम कोर्ट की है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने तेवर दिखाए हैं और यह तेवर टिप्पणियों में नहीं, बल्कि फैसलों में दिखा है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले देकर सरकार को बताया है कि सरकार उसके काम में दखल न दे। यह भी मैसेज दिया है कि अगर सरकार दिशा निर्देश देने की कोशिश करेगी तो न्यायपालिका उसके उलट काम करने के लिए भी स्वतंत्र है।
जैसे केंद्रीय कानून मंत्री ने अदालतों में छुट्टियों का मामला उठाया और इसे लंबित मामलों से जोड़ा और उसके अगले ही दिन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऐलान किया कि सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टियां 17 दिसंबर से शुरू होंगी और दो जनवरी तक चलेंगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इस बार सर्दियों की छुट्टी में कोई अवकाशकालीन बेंच नहीं होगी। यानी अगले दो हफ्ते सर्वोच्च अदालत पूरी तरह से बंद रहेगी और किसी मामले की सुनवाई नहीं करेगी।
इसी तरह केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को जमानत के मामले नहीं सुनने चाहिए। इसका भी जवाब चीफ जस्टिस ने दिया है। उन्होंने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के एक ऐसे व्यक्ति को रिहा किया, जो बिजली चोरी के आरोप में तीन साल से जेल में बंद था। चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी मामला छोटा या बड़ा नहीं होता है। उन्होंने यह भी कहा कि सर्वोच्च अदालत ऐसे ही लोगों की सिसकियां सुनने को बैठी है। गौरतलब है कि उस व्यक्ति को बिजली चोरी के नौ अलग अलग मामलों में 18 साल की सजा हुई थी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के गोधरा कांड के दौरान पत्थरबाजी के आरोप में पकड़े गए और दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को भी जमानत दी और गुजरात सरकार की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए कहा कि वह व्यक्ति 17 साल से जेल में सजा काट रहा है और जमानत का हकदार है।