स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: चीन और अमेरिका के बीच हालिया टैरिफ विवाद ने वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था में एक बार फिर तनाव पैदा कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर 12 मई 2025 को हुए अस्थायी व्यापार समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है, जबकि चीन ने जवाब में अमेरिका पर इस समझौते का “गंभीर उल्लंघन” करने का आरोप लगाया है। यह विवाद दोनों देशों के बीच पहले से चले आ रहे व्यापार युद्ध का एक नया अध्याय है, जिसके वैश्विक अर्थव्यवस्था, आपूर्ति श्रृंखला और राजनयिक संबंधों पर दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। आइए इस मामले का विस्तृत विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा और प्रेजेंटर गैरेथ बारलो से समझते हैं।
टैरिफ विवाद और अस्थायी समझौता
टैरिफ युद्ध की शुरुआत में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की शुरुआत 2018 में हुई, जब ट्रम्प प्रशासन ने बौद्धिक संपदा (IP) चोरी, अनुचित व्यापार प्रथाओं और व्यापार घाटे के कारण चीन पर टैरिफ लगाए। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी सामानों पर जवाबी टैरिफ लगाए।
2020 में दोनों देशों ने “फेज वन ट्रेड एग्रीमेंट” पर हस्ताक्षर किए, जिसमें चीन ने अमेरिकी सामानों की खरीद बढ़ाने और IP संरक्षण को मजबूत करने का वादा किया था। हालांकि, चीन इस समझौते के तहत $200 बिलियन की अतिरिक्त खरीद के लक्ष्य को केवल 58% तक पूरा कर पाया।
2025 में नया तनाव !
ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल (20 जनवरी 2025 से शुरू) में टैरिफ नीति फिर से आक्रामक हो गई। 2 अप्रैल 2025 को ट्रम्प ने “लिबरेशन डे” पर चीन पर 34% टैरिफ की घोषणा की, जिसके जवाब में चीन ने भी 34% टैरिफ लगाए। इसके बाद टैरिफ की दरें तेजी से बढ़ीं, और 9 अप्रैल तक अमेरिका ने चीनी आयात पर 145% टैरिफ लागू कर दिया, जबकि चीन ने अमेरिकी सामानों पर 125% टैरिफ लगाए।
12 मई 2025 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा में दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद एक अस्थायी समझौता हुआ, जिसमें 90 दिनों के लिए टैरिफ को कम करने पर सहमति बनी। अमेरिका ने अपने टैरिफ को 145% से 30% और चीन ने 125% से 10% तक कम किया। इसके साथ ही चीन ने दुर्लभ मृदा खनिजों (rare earth minerals) पर निर्यात प्रतिबंधों को भी हटाने का वादा किया।
चीन ने लगाए उल्लंघन के आरोप
30 मई 2025 को ट्रम्प ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर दावा किया कि चीन ने इस समझौते का उल्लंघन किया है, विशेष रूप से दुर्लभ मृदा खनिजों पर निर्यात प्रतिबंधों को पूरी तरह से नहीं हटाया।
इसके जवाब में, चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने 20 मई 2025 को अमेरिका पर समझौते का “गंभीर उल्लंघन” करने का आरोप लगाया। चीन का दावा है कि अमेरिका ने चीनी टेक कंपनी हुआवे (Huawei) के Ascend AI चिप्स पर वैश्विक प्रतिबंध लगाकर और चीनी माइक्रोचिप्स पर “भेदभावपूर्ण उपाय” अपनाकर समझौते की भावना का उल्लंघन किया।
उल्लंघन के आरोपों का आधार
ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि “चीन ने अस्थायी समझौते के तहत दुर्लभ मृदा खनिजों पर निर्यात प्रतिबंधों को पूरी तरह से नहीं हटाया, जो कि तकनीकी और सैन्य उत्पादों के लिए महत्वपूर्ण हैं। अमेरिका ने यह भी आरोप लगाया है कि चीन ने फेंटानिल संकट को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए, जिसे ट्रम्प ने टैरिफ बढ़ाने का एक प्रमुख कारण बताया था। इसके अलावा, अमेरिका का मानना है कि चीन की आर्थिक नीतियां, जैसे कि गैर-बाजार आधारित सब्सिडी और बौद्धिक संपदा चोरी, वैश्विक व्यापार नियमों के साथ असंगत हैं।
चीन का दृष्टिकोण
चीन का कहना है कि “अमेरिका ने हुआवे और अन्य चीनी टेक कंपनियों पर प्रतिबंध लगाकर और चीनी माइक्रोचिप्स पर “राष्ट्रीय सुरक्षा” के आधार पर प्रतिबंधात्मक उपाय लागू करके समझौते का उल्लंघन किया। चीन का यह भी तर्क है कि अमेरिका की टैरिफ नीति “एकतरफा धमकाने” (unilateral bullying) का हिस्सा है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और तकनीकी नवाचार को नुकसान पहुंचा रही है। चीनी सरकार ने यह संकेत दिया है कि वह भविष्य में जवाबी टैरिफ नहीं बढ़ाएगी, बल्कि गैर-टैरिफ उपायों (जैसे निर्यात नियंत्रण और कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करना) पर ध्यान देगी।
अमेरिका पर आर्थिक प्रभाव
टैरिफ युद्ध के कारण अमेरिकी उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ रहा है। टैक्स फाउंडेशन के अनुसार, 2025 में टैरिफ के कारण प्रत्येक अमेरिकी परिवार पर औसतन $1,200 का अतिरिक्त कर बोझ पड़ेगा। अमेरिकी व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे व्यवसायों और आयातकों, को आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और लागत वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। उपभोक्ता विश्वास में कमी आई है, जैसा कि मिशिगन विश्वविद्यालय के उपभोक्ता भावना सूचकांक में 11% की गिरावट (50.8 तक, जो कोविड-19 महामारी के बाद का सबसे निचला स्तर है) से स्पष्ट है।
चीन पर क्या पड़ेगा प्रभाव
चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही रियल एस्टेट संकट और निर्यात पर निर्भरता के कारण दबाव में है। टैरिफ युद्ध ने इस स्थिति को और गंभीर कर दिया है। 2019 में व्यापार युद्ध के दौरान चीन की आर्थिक वृद्धि 30 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई थी, और 2025 में भी इसी तरह की चुनौतियां देखी जा रही हैं। चीन ने घरेलू खपत को बढ़ावा देने और निर्यात पर निर्भरता कम करने की नीति अपनाई है, लेकिन यह बदलाव धीमा है। चीन ने जवाबी उपायों के तहत अमेरिकी तेल आयात को 90% तक कम कर दिया और कनाडाई तेल की ओर रुख किया।
वैश्विक प्रभाव पड़ेगा ?
टैरिफ युद्ध ने वैश्विक शेयर बाजारों में अस्थिरता पैदा की है। 12 मई 2025 को टैरिफ में कमी की घोषणा के बाद शेयर बाजारों में उछाल आया, लेकिन हालिया तनाव ने फिर से अनिश्चितता बढ़ा दी है। गोल्डमैन सैक्स ने अनुमान लगाया है कि टैरिफ युद्ध के कारण वैश्विक मंदी की संभावना 45% तक बढ़ गई है। अन्य देश, जैसे वियतनाम, जापान और दक्षिण कोरिया, इस विवाद का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी अमेरिकी टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है।
राजनयिक और भू-राजनीतिक आयाम
चीन ने यूरोपीय संघ, दक्षिण अफ्रीका और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की है, ताकि अमेरिकी “धमकाने” का मुकाबला किया जा सके। चीनी नेता शी जिनपिंग ने वैश्विक व्यवस्था में बीजिंग को केंद्र में रखने की नीति अपनाई है, और टैरिफ युद्ध को अमेरिका के खिलाफ एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है। चीन ने BRICS देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया है, हालांकि भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता ने BRICS में दरार पैदा की है।
अमेरिका की क्या है स्थिति
ट्रम्प की नीति “अमेरिका फर्स्ट” पर आधारित है, जिसमें टैरिफ को राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एक उपकरण के रूप में देखा जाता है। हालांकि, अमेरिकी अदालत ने ट्रम्प के कुछ टैरिफ को अवैध करार दिया है, जिससे उनकी नीति की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं। अमेरिका ने ब्रिटेन और अन्य देशों के साथ व्यापार समझौते किए हैं, लेकिन चीन के साथ संबंधों में अनिश्चितता बनी हुई है।
विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका
चीन ने 2018 में अमेरिकी टैरिफ को WTO में चुनौती दी थी, और 2023 में WTO ने अमेरिका के कुछ टैरिफ को वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन माना। हालांकि, ट्रम्प प्रशासन ने WTO की अपीलीय संस्था को कमजोर किया है, जिसके कारण विवाद समाधान प्रक्रिया प्रभावी नहीं रही। दोनों देश अब द्विपक्षीय वार्ता को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे WTO की प्रासंगिकता कम हो रही है।
भविष्य की संभावनाएं..अल्पकालिक परिदृश्य
90-दिन की अस्थायी अवधि (14 मई से शुरू) के दौरान दोनों देशों के बीच वार्ता जारी रहेगी, लेकिन हालिया आरोप-प्रत्यारोप ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। यदि समझौता विफल होता है, तो टैरिफ फिर से बढ़ सकते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार लगभग ठप हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि “ट्रम्प की नीति ने अमेरिका को “पहले की तुलना में कमजोर” स्थिति में ला दिया है, क्योंकि चीन ने जवाबी उपायों में अधिक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया है।”
यह विवाद अमेरिका और चीन के बीच “डिकपलिंग” (आर्थिक अलगाव) को तेज कर सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और तकनीकी नवाचार प्रभावित होंगे। अन्य देश, जैसे भारत, वियतनाम और दक्षिण कोरिया, इस स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन उन्हें भी अमेरिकी टैरिफ और व्यापार नीतियों का सामना करना पड़ सकता है।
टैरिफ विवाद एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा
चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ विवाद एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है, जिसमें आर्थिक, राजनयिक और भू-राजनीतिक कारक शामिल हैं। ट्रम्प का दावा है कि चीन ने समझौते का उल्लंघन किया, जबकि चीन का कहना है कि अमेरिका की एकतरफा नीतियां वैश्विक व्यापार को नुकसान पहुंचा रही हैं। इस विवाद ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ा दी है, और इसका समाधान दोनों देशों की बातचीत और रणनीतिक दृष्टिकोण पर निर्भर करेगा। हालांकि, मौजूदा तनाव और परस्पर विरोधी हितों को देखते हुए, निकट भविष्य में पूर्ण समाधान की संभावना कम दिखती है।