बीते कुछ समय से परिदृश्य से ओझल सोनम वांगचुक एक बार पुनः चर्चा का केंद्र बन गये हैं। दरअसल, सोनम वांगचुक लद्दाख को बचाने के लिए भूख हड़ताल पर हैं। 27 जनवरी को एक वीडियो जारी करके उन्होंने बताया कि उन्हें हाउस अरेस्ट में रख दिया गया है और प्रशासन उनके ऊपर दबाव डाल रहा है कि वो एक अंडरटेकिंग साइन करके दें। सोनम का आरोप है कि केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि उनकी आवाज बाहर न जाए।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो सोनम वांगचुक धारा 370 के हटने और लद्दाख के यूनियन टेरिटरी बनने का समर्थन कर रहे थे, आज वही विरोध में धरना दे रहे हैं। असल में सोनम वांगचुक सहित कई दूसरी लद्दाखी संस्थाएं इस बात से नाराज हैं कि आर्टिकल 370 हटने के बाद स्थानीय लोगों को प्रशासन में कोई भागीदारी नहीं मिली। सोनम अपने वीडियो संदेश में कहते हैं कि पहले हमें श्रीनगर से शासन करते थे, अब दिल्ली से कर रहे हैं। न तब हमारी कोई भागीदारी थी और न अब है।
इसके लिए वो लद्दाख को पूर्वोतर राज्यों की भांति संविधान की छठी अनुसूची में लाना चाहते हैं ताकि उसे विशेष प्रावधान प्राप्त हों। इस अनुसूची के तहत असम, त्रिपुरा और मेघालय के जनजाति क्षेत्रों में स्वायत्त जिले बनाने का प्रावधान है।
सोनम की भूख हड़ताल में लेह एपेक्स बॉडी ऑफ पीपुल्स मूवमेंट फॉर सिक्स्थ शेड्यूल तथा कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेता भी सम्मिलित हैं जिन्होंने लद्दाख के लिये संविधान की छठी अनुसूची की मांग दोहराई है। आखिर सोनम वांगचुक की मांगें कितनी संविधान सम्मत हैं और क्यों उनके समर्थन में लेह से लेकर शिमला तक आम नागरिक भी हड़ताल और अनशन पर बैठ रहे हैं?
हिमालय के पर्यावरण को बचाना है मुख्य उद्देश्य
चूंकि हिमालय क्षेत्र में बेतरतीब विकास परियोजनाओं से केदारनाथ जैसे आपदाओं को देश झेल चुका है अतः पहाड़ी राज्यों के लोग अब इन विकास परियोजाओं से तौबा करने लगे हैं जो हिमालय के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
सोनम वांगचुक का भी कहना है कि सरकारों को कॉरपोरेट घरानों को खुश करने की बजाय ग्लेशियर समेत हिमालय क्षेत्र को बचाने का प्रयास करना चाहिए। उनका कहना है कि बाहर से आने वाले लोग लद्दाख को समझ नहीं सकते तो फिर यहां के लिए आवश्यक योजनाएं कैसे बनायेंगे? जब तक स्थानीय लोगों की प्रशासन में कोई भागीदारी नहीं होगी, लद्दाख के बारे में कोई व्यावहारिक योजना कैसे बन पायेगी?
सोनम की चिंता महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग ने पहले ही हिमालय के ग्लेशियरों को समय से पूर्व पिघलाने का काम किया है वहीं अत्यधिक विकास परियोजनाएं भी कहीं न कहीं हिमालय का सीना चीर रही हैं। पहाड़ी राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं के साथ ही कृत्रिम आपदाएं अत्यधिक विकास परियोजनाओं की ही देन हैं अतः हिमालय के पर्यावरण को बचाने के लिये पहाड़ी राज्यों से सोनम वांगचुक को भरपूर समर्थन प्राप्त हो रहा है और केन्द्र सरकार बैकफुट पर है।
विदेशी षड्यंत्र को कम करने के प्रयास में सरकार
चाहे हल्द्वानी से आगे रेल विस्तार की बात हो या चार धाम जाने के लिये ऑल वेदर रोड, सरकार इन परियोजनाओं से दूरगामी हित साधने का दावा करती है। कई हिमालयी राज्यों की सीमा पाकिस्तान, चीन, नेपाल और तिब्बत से लगती है और भारत के इन हिमालयी राज्यों में विकास की रफ्तार अपेक्षाकृत कम रही है जिसके कारण सीमाओं पर आवागमन के साधन आज भी नाकाफी हैं।
केन्द्र सरकार चाहती है कि पड़ोसी देशों खासकर चीन की सीमाओं तक इन हिमालयी राज्यों में सड़कों का जाल बिछे, विकास की परियोजनाएं प्रारंभ हों ताकि सामरिक दृष्टि से चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। साथ ही अवैध घुसपैठ तथा युद्ध की स्थिति में सेना के आवागमन में सुविधा हो। सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठाये जा सकते किन्तु अत्यधिक विकास परियोजनाओं से हिमालय को नुकसान पहुंच रहा है, इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में सरकार को जनभागीदारी से किसी ऐसे निर्णय पर पहुंचना होगा जिससे देश की सीमाओं की सुरक्षा हो, हिमालयी क्षेत्र बचा रहे और पर्यावरण की भी रक्षा हो।
संविधान की छठी अनुसूची के लिये जिद क्यों?
05 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के पश्चात लद्दाख को केंद्र-शासित प्रदेश बना दिया गया था। लद्दाख के जम्मू-कश्मीर से अलग होने के बाद विधान परिषद में लद्दाख का प्रतिनिधित्व खत्म हो गया था और हिल डेवलपमेंट काउंसिल लेह और कारगिल के माध्यम से जनता का प्रतिनिधित्व होता है।
हालांकि केंद्र-शासित राज्य बनने से पहले हिल डेवलपमेंट काउंसिल लेह और कारगिल के पास कैबिनेट के बराबर अधिकार थे किन्तु केंद्र-शासित राज्य बनने के बाद इनकी शक्तियां कागजी हो गई हैं। यहां तक कि काउंसिल के पास आर्थिक प्रबंधन अधिकार भी नहीं हैं। इसलिए यहां के निवासियों की मांग है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए ताकि इसके प्रावधान के चलते स्वायत्त जिलों में स्वायत्त जिला परिषदों का गठन हो। जंगल, जमीन, ग्राम पुलिसिंग, शहर पुलिसिंग, कृषि, स्वास्थ्य, स्वच्छता, खनन, ग्राम परिषद, सामाजिक नियम आदि से जुड़े कानून तथा नियमावली बनाने का अधिकार स्थानीय लोगों के हाथ में रहे। इससे जनजाति संरक्षण में भी सहायता मिलेगी।
छठी अनुसूची की मांग कितनी जायज?
संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए है और लद्दाख को इसमें शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन का विधेयक लाना होगा। संसद में उस पर चर्चा होगी, वोटिंग होगी और फिर यदि इसके पक्ष में बहुमत मिलता है तो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसे लद्दाख के लिए लागू किया जा सकता है।
भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में लद्दाख के लिए इस मांग को अपने चुनावी वादे में शामिल किया था। 2020 के लद्दाख हिल काउन्सिल चुनाव के लिए जारी घोषणापत्र में भी इस वादे को भारतीय जनता पार्टी ने शामिल किया था। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि भाजपानीत केंद्र सरकार चाहे तो संविधान संशोधन विधेयक के माध्यम से वह इस प्रावधान को लद्दाख में लागू कर सकती है किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि चीन की हाल में बढ़ी सीमा चुनौतियों के मद्देनजर केन्द्र सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।
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बहरहाल, गृह राज्यमंत्री की निगरानी में एक कमेटी बना दी गयी है जो इस मामले पर विचार करेगी। लेकिन सोनम वांगचुक के बहाने ही सही लद्दाखी लोगों की आवाज दूर दिल्ली तक पहुंची है। उम्मीद करनी चाहिए कि लद्दाख के लोगों को जैसे यूनियन टेरिटरी मिली वैसे ही स्थानीय शासन में भागीदारी भी मिल जाएगी।