नई दिल्ली. एक लड़की को शादी में पर्याप्त दहेज दिया गया, इसका ये मतलब नहीं है कि उसका अपने परिवार की संपत्ति पर अधिकार खत्म हो जाता है. ये कहना है बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच. भारत में लड़कियों की परवरिश कुछ इस तरह की जाती है कि शादी से पहले उन्हें सिखाया जाता है कि उनका अपना घर कोई और होगा. और शादी के बाद ये जताया जाता है कि वो किसी और घर से आई हैं. इन दोनों नैरेटिव्स के बीच उलझी कई औरतें अपने फाइनेंशियल और प्रॉपर्टी राइट्स जान नहीं पाती हैं. इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि एक औरत के पास प्रॉपर्टी के कौन-कौन से अधिकार होते हैं.
मायके की संपत्ति पर महिला का अधिकार
इसके दो पहलू हैं. पहला अगर संपत्ति खुद अर्जित की हुई संपत्ति है. इस केस में अगर किसी व्यक्ति की मौत बिना किसी वसीयत के हो जाती है तो संपत्ति उसके बेटों और बेटियों में बराबर बांटी जाएगी. इसके साथ ही अगर मरने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी जीवित हैं, या उनकी मां हैं तो उनको भी संपत्ति पर अधिकार मिलेगा.पर अगर वो व्यक्ति अपनी वसीयत बनाकर किसी एक बच्चे को, या किसी अजनबी को भी अपना उत्तराधिकारी बनाते हैं तो संपत्ति उस व्यक्ति को मिलेगी, कोई और उस पर अधिकार नहीं जता सकता है.
दूसरा पहलू है पैतृक संपत्ति का. पैतृक संपत्ति पर अधिकार जन्म से तय होता है. हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956 में पहले घर में पैदा होने वाले बेटों को संपत्ति पर अधिकार मिलता था, बेटियां परिवार की सदस्य मानी जाती थीं, जिनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी परिवार की होती थी. शादी के बाद परिवार में बेटी की सदस्यता खत्म हो जाती थी और उसके भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके ससुराल वालों की हो जाती थी. 2005 में कानून में बदलाव किया गया.
किसी घर में पैदा होने वाले पुरुष और महिला का उस परिवार की पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार होता है. शादीशुदा बेटी और गोद लिए बच्चे को भी बराबर अधिकार दिए गए हैं.
अब किसी घर में पैदा होने वाले पुरुष और महिला का उस परिवार की पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार होता है. बेटा और बेटी में से कोई भी अपना हिस्सा परिवार से मांग सकते हैं. पैतृक संपत्ति के लिए वसीयत नहीं बनाई जा सकती है. यदि किसी व्यक्ति की बिना वारिस के मौत हो जाती है, तो उसकी संपत्ति उसके भाई-बहनों और उनके बच्चों में बांट दी जाती है. गोद लिए बच्चे का भी पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार होता है. हालांकि, पैतृक संपत्ति में व्यक्ति की पत्नी या पति का कोई अधिकार नहीं होता है.
ससुराल की संपत्ति पर महिला का अधिकार
यहां भी दो पहलू हैं. पहला अगर संपत्ति पति की कमाई हुई है. इस केस में पत्नी पति की क्लास वन एअर होती है. क्लास वन एअर में पत्नी, बच्चे, मां आते हैं. यदि किसी शख्स की बिना वसीयत के मौत हो जाती है तो उसकी संपत्ति उसके सभी क्लास वन एअर्स में बराबर बंटती है. पर अगर वो शख्स वसीयत में किसी को अपना वारिस बनाकर जाता है तो वो प्रॉपर्टी उसके वारिस को ही मिलेगी.
दूसरा पहलू है कि अगर संपत्ति पैतृक है और पति की मौत हो जाती है तो उस संपत्ति से महिला को कोई हिस्सा नहीं मिलेगा. हालांकि, ससुराल के घर से उसे निकाला नहीं जा सकता है और पति की मौत के बाद ससुराल वालों को महिला को मेंटेनेंस देना होगा. ये मेंटेनेंस कितना होना चाहिए इसका फैसला कोर्ट करता है. महिला और ससुराल वालों की आर्थिक स्थिति के हिसाब से.अगर महिला के बच्चे हैं तो उनको पिता के हिस्से की पूरी संपत्ति मिलेगी. एक विधवा महिला को उसके ससुराल से तब तक मेंटेनेंस दिया जाएगा जब तक उसकी दूसरी शादी नहीं हो जाती.
तलाक की स्थिति में महिला के अधिकार
अगर एक महिला अपने पति से अलग होना चाहती है तो हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत वो पति से अपना भरण पोषण मांग सकती है. ये भरण पोषण पति और पत्नी दोनों की आर्थिक स्थिति के आधार पर तय होता है. ये तलाक का वन टाइम सेटलमेंट भी हो सकता है और मासिक भत्ता भी. तलाक के समय ही तय हो जाता है कि एकमुश्त एलिमनी दी जाएगी या मासिक भत्ता.
इसके साथ ही तलाक के बाद अगर बच्चे मां के साथ रहते हैं तो पति को उनका भरण पोषण भी देना होगा, ये भरण-पोषण बच्चे की उम्र के साथ बढ़ भी सकता है. तलाक की स्थिति में पत्नी अपने पति की संपत्ति पर हक नहीं जता सकती है. मगर उसके बच्चों का उनके पिता की प्रॉपर्टी पर पूरा अधिकार होगा. अगर कोई प्रॉपर्टी दोनों जॉइंटली ओन करते हैं, तो उस स्थिति में प्रॉपर्टी को बराबर बांटा जाएगा.
स्त्रीधन पर अधिकार
एक महिला को शादी से पहले, शादी में और शादी के बाद गिफ्ट में जो भी कैश, गहने या सामान मिलता है, उन सब पर महिला का ही पूरा अधिकार होता है. हिंदू सक्सेशन एक्ट का सेक्शन 14 और हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 27 ये अधिकार देते हैं. अगर उसे उसके इस अधिकार से वंचित किया जाता है तो महिला डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के सेक्शन 19ए के तहत पुलिस में शिकायत कर सकती है.
हिंदू सक्सेशन एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट के नियम हिंदू, बुद्ध, जैन और सिख समुदायों पर लागू होते हैं. मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए अलग कानून हैं.