नई दिल्ली : पुलिस ने 2017 में एक एटीएम क्लोनिंग घोटाले का पर्दाफाश किया था। बैंकों को कार्ड की सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद मिली। चिप आधारित प्लास्टिक कार्ड शुरु किया गया। इसमें पीड़ित बिना कोई गलत काम किए नुकसान झेलते हैं। अदालत ने समय पर सूचना देने वालों को क्षतिपूर्ति का निर्देश दिया था। यहां एक और साइबर फ्रॉड का जिक्र है। बैंक कर्मियों के अपराध का इसमें पुलिस पर्दाफाश करती है।
यह जानकर यकीन नहीं होता कि सुरक्षा अधिकारी की विधवा ने 15,000 रुपये के कुत्ते के लिए 66 लाख रुपये का भुगतान किया था। साइबर अपराधी गंभीर आर्थिक अपराध के लिए कॉल सेंटर चला रहे थे। ऐसा ही दूसरा समूह नोएडा और देहरादून जैसे स्थानों से बुजुर्ग अमेरिकी नागरिकों को धोखा दे रहा था। ऐसे अपराधियों ने ही रैंसमवेयर और मैलवेयर जैसे नए शब्द को जन्म दिया। उत्तराखंड में तीर्थयात्रियों को धोखा देने का व्यापार पुराना है। अब कॉल सेंटर आधारित साइबर क्राइम भी होता है। पुलिस ने धोखाधड़ी के एक ऐसे मामले को सुलझाया, जिसमें तीर्थयात्रियों के समूह ने केदारनाथ जाने के लिए हेलीकॉप्टर की सवारी के लिए भुगतान किया था। उन्होंने झारखंड के जामताड़ा, हरियाणा के मेवात और राजस्थान के भरतपुर से संचालित हो रहे कॉल सेंटरों की श्रृंखला का पर्दाफाश किया है।
एआई के रूप में विकसित हुई तकनीक से अपराधियों को मदद मिलती है। आज ऐसे अपराधों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। आधुनिक तकनीक की सभ्यता बढ़ती हुई समस्याओं को दूर करने का दावा करती। लेकिन इस प्रक्रिया में नई और अज्ञात भय की श्रंखला खड़ी करती। इससे पहले कि यह मानवता के मूल्यों का सफाया कर दे, विकास के इस नए मॉडल पर गंभीरता से विचार करना होगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के शीर्ष चैटबॉट चैटजीपीटी, बार्ड और बिंग इन दिनों चर्चा में है। 5जी के आगमन से इंटरनेट ऑफ थिंग्स में सुधार होगा। साइबर अपराधों का दायरा और बढ़ेगा। अपराधियों के हाथों में उपलब्ध आधुनिक टूल किट की तुलना में कानून अक्षम है। कानून लागू करने में लगी पुलिस के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा है। व्यवस्था में सुधार के बिना सरकार उस खतरे को दूर नहीं कर सकती है, जिसका सामना करने के लिए मानवता बाध्य है।
हाल में हिंटन ने कहा, “मैं अपने आप को सामान्य बहाने से सांत्वना देता हूं: अगर मैंने ऐसा नहीं किया होता, तो कोई और करता।” यही भाव अशोक और मनोचा की बात से प्रतिध्वनित होता है। उन्होंने 19वीं सदी के फ्रांसीसी लेखक और राजनीतिज्ञ विक्टर ह्यूगो का उल्लेख किया था, “जिस विचार का समय आ जाता है, उसे कोई भी ताकत रोक नहीं सकती है।” हालांकि इन तीनों विद्वानों के इरादे एआई और साइबर अपराधों के मामलों में स्थिति में सुधार पर केंद्रित हैं। लेकिन खुद को मिटाने में लगी मानवता को बचाने में कौन सक्षम होगा? निस्संदेह अगला युद्ध साइबर स्पेस में ही लड़ा जाएगा। दुनिया ऐसे युद्ध की तैयारी के लिए आज पुरजोर कोशिश कर रही है। 21वीं सदी के नेताओं को अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित सभ्यता के चंगुल से मानवता को बचाने का प्रयास करना चाहिए।
एक मौके पर आईआईटी ऑडिटोरियम में सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने इस संकट को दूर करने की कोशिश किया था। उस दिन उन्हें सेक्युलर मीडिया और सोशल मीडिया के ट्रोल्स से डर लग रहा था। इसलिए बात चंद लोगों तक सीमित रह गया। उन्होंने कहा था कि धर्म (शाश्वत नियम) की जगह धन (मुद्रा) ने ले लिया है, ऐसी दशा में मानव सभ्यता को पिछले क्रम को बहाल करने की जरूरत है। तकनीकी के आधुनिक जमाने में उपकरणों के पुराने युग की ओर फिर से देखने की जरूरत है।