प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली। हिंदू पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है। साल 2025 में यह तिथि 26 जून को दोपहर 01:25 बजे से शुरू होगी और 27 जून को सुबह 11:19 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून 2025 से शुरू होगी। यह यात्रा ओडिशा के पुरी शहर में आयोजित होती है और आमतौर पर 9-10 दिनों तक चलती है, जो आषाढ़ शुक्ल दशमी तिथि तक समाप्त होती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म में एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा को समर्पित है। यह यात्रा न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और भक्ति का भी उत्सव है। निम्नलिखित बिंदुओं में इसका महत्व समझा जा सकता है
मान्यता है कि “रथ यात्रा में शामिल होने या भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति भगवान के नाम का कीर्तन करते हुए गुंडीचा मंदिर तक जाता है, वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है। रथ खींचने से सौ यज्ञों के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है, और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह यात्रा भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ की कृपा और मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से सौभाग्य प्रदान करती है।
क्या है पौराणिक कथा ?
एक कथा के अनुसार, सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की थी। इसके बाद, भगवान जगन्नाथ ने अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर नगर का भ्रमण किया। तब से यह परंपरा हर साल मनाई जाती है। गुंडीचा मंदिर, जहां रथ यात्रा समाप्त होती है, को भगवान की मौसी का घर माना जाता है, जहां वे 7 दिनों तक विश्राम करते हैं।
यह यात्रा सामाजिक समरसता का प्रतीक है। पुरी के गजपति महाराज स्वयं रथ के सामने सोने की झाड़ू से सफाई करते हैं, जिसे “छेरा पहरा” कहा जाता है। यह दर्शाता है कि भगवान के सामने सभी समान हैं। लाखों भक्त देश-विदेश से इस उत्सव में शामिल होते हैं, जिससे पुरी में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्साह का माहौल बनता है। रथ यात्रा को “पुरी कार फेस्टिवल” के नाम से भी जाना जाता है, जो पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
रथ और उनका निर्माण
यात्रा में तीन रथ शामिल होते हैं नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ) 45.5 फीट ऊंचा, 16 पहिए, लाल-पीले रंग का। तालध्वज (बलभद्र का रथ) 13.2 मीटर ऊंचा, 14 पहिए, लाल-हरे रंग का। दर्पदलन (सुभद्रा का रथ) 42 फीट 3 इंच ऊंचा, 12 पहिए, काले-लाल रंग का। रथों का निर्माण अक्षय तृतीया से शुरू होता है और नीम की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। हर साल नए रथ बनाए जाते हैं।
रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर लगभग 3-4 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर तक जाती है। भक्त रथों को मोटी रस्सियों से खींचते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान 7 दिन विश्राम करते हैं, और दशमी तिथि को “बहुड़ा यात्रा” के साथ वापस लौटते हैं।
क्या होती हैं विशेष परंपराएं !
छेरा पहरा में पुरी के गजपति महाराज रथों और मार्ग की सफाई करते हैं। गुंडीचा मार्जन में यात्रा से एक दिन पहले गुंडीचा मंदिर को शुद्ध जल से धोया जाता है। हेरा पंचमी में पांचवें दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं। रुष्ट होकर वे रथ का पहिया तोड़ देती हैं और अपने मंदिर लौट जाती हैं। बाद में भगवान उन्हें मनाते हैं।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक !
महाप्रसाद जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है, जहां महाप्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर पकाया जाता है। इसमें आलू, टमाटर, और फूलगोभी का उपयोग नहीं होता। रथ यात्रा के दिन अक्सर बारिश होती है, जिसे भगवान की कृपा माना जाता है। भगवान जगन्नाथ का रथ यात्रा के दौरान मुस्लिम भक्त सालबेग की मजार पर रुकता है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है, और इसकी मूर्तियां अधूरी हैं, जो एक पौराणिक कथा से जुड़ी हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा एक ऐसा उत्सव है जो भक्ति, परंपरा और सामाजिक एकता को एकसाथ जोड़ता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सनातन संस्कृति की जीवंतता को भी दर्शाती है। 27 जून 2025 से शुरू होने वाली इस यात्रा में शामिल होकर भक्त अपने जीवन को सुख, शांति, और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर कर सकते हैं।