नई दिल्ली: चीन का नया जासूसी विरोधी कानून (Anti-Espionage Law) शनिवार से लागू हो गया है। इससे विदेशी कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। चीन की सरकार का कहना है कि इस कानून का मकसद देश की नेशनल सिक्योरिटी को मजबूत करना है। इस बारे में मूल कानून 2014 में आयाा था। नए कानून के मुताबिक सभी तरह के जासूसी की आशंका के जुड़े किसी भी डॉक्यूमेंट्स, डेटा, मटीरियल्स और आर्टिकल्स की जांच हो सकती है। साथ ही इसके जरिए सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों को किसी भी संदिग्ध के सामान, इलेक्ट्रॉनिक डेवाइसेज और प्रॉपर्टी की जांच करने का अधिकार होगा। विदेशी कंपनियों ने इस पर खासी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि जल्दबाजी में बनाए गए इस कानून से बिजनस का माहौल खराब होगा। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव के कारण यह पहले ही मुश्किल में है।
Nikkei Asia के मुताबिक चीन में विदेशी कंपनियों के दो सबसे बड़े संगठनों के नेताओं ने कहा कि यह कानून जल्दबाजी में बनाया गया है। इससे विदेशी कंपनियों का चीन पर भरोसा और डगमगा जाएगा। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ रहे तनाव से पहले ही कंपनियों को मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। यूरोपियन यूनियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्रेसिडेंट Jens Eskelund ने कहा कि हमें और किस चीज का पालन करना है। स्टेट सीक्रेट क्या होता है। हमारे पास क्या जानकारी नहीं होनी चाहिए? इस कानून से कंपनियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पहले ही उन्हें डेटा सिक्योरिटी लॉ और नेशनल सिक्योरिटी लॉ जैसे कानूनों का सामना करना पड़ रहा है।
इकॉनमी का बुरा हाल
अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन इंडिया के प्रेजिडेंट माइकल हार्ट ने कहा कि अमेरिका की कंपनियां कानूनों का पालन करना चाहती हैं। लेकिन सामान्य बिजनस एक्टिवटी भी कानून के दायरे में आएगी तो इससे मुश्किल होगी। इंटरनेशनल लॉ फर्म Morgan Lewis ने मई में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि संदिग्धों की पहचान करने की शर्तें स्पष्ट नहीं है। इससे कंपनियों के लिए अनिश्चितता की स्थिति बनेगी। चीन की इकॉनमी कोविड महामारी के असर से बाहर आने की कोशिश में लगी है। सरकार ने बिजनस एक्टिविटी को बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कटौती की है। सरकार उम्मीद कर रही है कि इससे खपत बढ़ेगी। साल के पहले पांच महीनों में रियल एस्टेट की सेल्स में गिरावट आई है।